जांच के हर पहलू पर मजिस्ट्रेट से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं, सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जांच के हर पहलू के लिए मजिस्ट्रेट से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है।
इस मामले में सीबीआई झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSP) द्वारा आयोजित संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करने के संबंध में एक प्राथमिकी (एफआईआर) की जांच कर रही थी।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि एक व्यक्ति जो अभियुक्त है, उसके पास जांच के तरीके को चुनौती देने का कोई कारण नहीं है, जब तक कि यह जांच उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता या अधिकारों पर हमला नहीं करती। इसमें कहा गया है कि जांच को जिस तरीके से अंजाम दिया जाना है, वह जांच एजेंसी द्वारा तय किया जाना चाहिए।
इस विवाद से निपटने के लिए कि उत्तर लिपियों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए सीबीआई को फिर से निर्देश लेने के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क करना चाहिए।
प्रवीण कुमार प्रकाश बनाम झारखंड राज्य में पीठ ने कहा,
"इसके अलावा यह सीआरपीसी की धारा 156 के तहत मजिस्ट्रेट की शक्ति के उपयोग के लिए है कि जांच ठीक से की गई है या नहीं। यह जांच एजेंसी के लिए एक अपराध की जांच उस तरह से करने के लिए है, जिस तरह एजेंसी इसे सबसे अच्छा मानती है।
यह जांच एजेंसी के कार्यक्षेत्र से परे कुछ सहायता या विशिष्ट आदेशों के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकता है, जिसके लिए मजिस्ट्रेट के आदेशों की आवश्यकता होती है, लेकिन जांच एजेंसी मजिस्ट्रेट के आदेशों के बिना जांच कर सकती है। यह आवश्यक नहीं है कि जांच के प्रत्येक पहलू के लिए मजिस्ट्रेट से आदेश की आवश्यकता हो। यह सीआरपीसी का उद्देश्य नहीं है।"
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