दस्तावेजी सबूतों के अभाव में मात्र मौखिक गवाही नागरिकता का सबूत नहींः गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2020-03-04 06:44 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने दोहराया है कि फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के तहत की गई कार्यवाही में दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में दी गई मौखिक गवाही नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

जस्टिस मनोजीत भुयन और जस्टिस पार्थिवज्योति सैकिया की खंडपीठ ने 25 अक्टूबर, 2018 को फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूनल, मोरीगांव के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें नूरुल अमीन नामक एक व्यक्ति को 1971 असम समझौते के अनुसार विदेशी घोषित किया गया था।

अपनी नागरिकता साबित करने के लिए याचिकाकर्ता ने 10 दस्तावेज पेश किए थे, अपने अनुमानित पिता के नाम के सबूत के रूप में 1965 और 1970 की मतदाता सूची; अपनी और अपनी पत्नी के नाम के सबूत के रूप में 1997 और 2014 की मतदाता सूची; अपनी पत्नी के पिता के नाम के सबूत के रूप में 1970 की मतदाता सूची; अनुमान‌ित पत्नी से विवाह की पुष्टि के लिए गांवबुराह का प्रमाण पत्र, अपने बेटे और बेटियों का जन्म प्रमाण पत्र।

हालांकि इन दस्तावेजों को न्यायालय में सबूत नहीं माना गया।

डिवीजन बेंच ने पाया कि 1997 और 2014 की मतदाता सूची, जिनमें याचिकाकर्ता का नाम था, और 1965 और 1970 की अन्य दो मतदाता सूची, जिनमें उनके पिता का नाम था, दो अलग-अलग गांवों की सूच‌ियां हैं। पहली सूच‌ियां मूलाधारी गांव की थीं, जबकि बाद की दोनों मोइराध्वज गांव की सूच‌ियां थीं।

याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष मोइराध्वज गांव से मूलाधार गांव स्थानांतरित होने का बयान दिया था, हालांकि अपने बयान के समर्थन में कोई दस्तावेज पेश नहीं कर पाए थे।

इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा-

"सबूत या दस्तावेजों के समर्थन के दिया गया बयान से यह साबित नहीं हो सकता है कि 1997 और 2014 की वोटर लिस्ट में गांव मूलाधारी के याचिकाकर्ता के नाम के साथ दिखाया गया नाम आबेद, 1965 और 1970 की वोटर लिस्ट में दिखाय गया गांव मोइरध्वज का आबेद अली है। मात्र बयान को सबूत नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने अपने साक्ष्य में कहा है कि वे तीन भाई हैं लेकिन कोई भी भाई याचिकाकर्ता का समर्थन करने के लिए गवाह के रूप में आगे नहीं आया है।"

अदालत ने अपीलकर्ता की पत्नी की मौखिक गवाही पर विचार करने से भी इनकार कर दिया। अदालत का कहना था कि पत्नी की गवाही भी किसी दस्तावेज के जरिए प्रमाणित नहीं की जा सकती है।

"याचिकाकर्ता की पत्नी होने का दावा करने वाली बचाव पक्ष की गवाह संख्या-2 (डीडब्ल्यू -2) यानी हलीमा खातून के बयान पर, अबेद अली और याचिकाकर्ता के बीच संबंध दिखाने वाले किसी भी दस्तावेज के अभाव में, भरोसा नहीं किया जा सकता है। दस्तावेजों के बिना डीडब्ल्यू -2 की मौखिक गवाही मात्र पर्याप्त नहीं माना जा सकती है।"

कोर्ट ने आगे कहा-

"हम यह दोहराते हैं कि फॉरेनर्स एक्‍ट, 1946 और फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत की गई कार्यवाही में दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में मौखिक गवाही का प्रमाणिक मूल्य पूरी तरह से महत्वहीन है। मौखिक गवाही नागरिकता का सबूत नहीं है।"

अदालत ने कहा कि गांवबुराह का प्रमाणपत्र भी स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि जारीकर्ता प्राधिकरण की मौखिक गवाही से इसे प्रामाणित नहीं करवाया गया है।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट पहले ही राबिया खातून बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, WP(C)NO. 6369/2019 के मामले में कह चुका है, जब तक कि जारीकर्ता प्राधिकारण की कानूनी गवाही से साबित न हो पाए, तब तक सभी प्रमाण पत्र सबूत के रूप में अस्वीकार्य हैं।

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की ओर से पेश अन्य दस्तावेज, मतदाता की पत्नी के पिता की नाम वाली 1970 की मतदाता सूची और उनके बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र भी कोई मायने नहीं रखते हैं।

"एक्ज़िबिट-एफ की इस मामले में कोई प्रासंगिकता नहीं है। एक्ज़िबिट्स-जी, एचआई और जे याचिकाकर्ता के बेटे और बेटियों के जन्म प्रमाण पत्र हैं। ये प्रमाणपत्र याचिकाकर्ता की नागरिकता स्थापित करने का उद्देश्य पूरा नहीं करते हैं।"

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता फॉरेनर्स एक्ट की धारा 9 के अनुसार नागरिकता साबित करने की अपनी ‌जिम्‍मेवारी का निर्वहन करने में विफल रहा, इसलिए रिट याचिका खारिज कर दी गई।

अदालत ने कहा-

"फॉरेनर्स एक्ट, 1946 और फॉरेनर्स पेज # 4/4 (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत होने वानी कार्यवाही का प्राथमिक मुद्दा यह निर्धारित करना है कार्यवाही में शमिल व्यक्ति विदेशी है या नहीं, और चूंकि सभी प्रासंगिक तत्या विशेष रूप से उसी व्यक्त‌ि की जानकारी में हैं, इसलिए, नागरिकता साबित करने की जिम्‍मेवारी पूरी तरह से उसी व्यक्ति की है।

मौजूदा मामले में और जैसा कि ऊपर पाया गया है, याचिकाकर्ता न केवल नागरिकता साबित करने की जिम्‍मेवारी का निर्वहन करने में विफल रहा, बल्कि नागर‌िकता साबित करने के सबसे महत्वपूर्ण पहलू यानी अपने अपने अनुमानित पिता के साथ संबंध स्थापित करने में भी पूरी तरह विफल रहा।

मामले का विवरण:

केस टाइटल: नुरुल अमीन बनाम भारत संघ व अन्य।

केस नं: WP (C) NO 8640/2018

कोरम: जस्टिस मनोजीत भूयनऔर जस्टिस पार्थिवज्योति सैकिया

पेशी: एडवोकेट ए राशिद (याचिकाकर्ता के लिए); जी हजारिका, जे पेयेन्ग, बी दास और एस खानिकर (उत्तरदाताओं के लिए)

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