हम अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट या मजिस्ट्रेट नहीं हैं: सुप्रीम कोर्ट ने 'योर ऑनर' कहे जाने पर जताई आपत्ति
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने सोमवार को एक लॉ स्टूडेंट के संबोधन पर तब आपत्ति जताई, जब उसने जजों को 'योर ऑनर' कहकर संबोधित किया। छात्र पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश हुआ था।
सीजेआई एसए बोबेडे ने याचिकाकर्ता से कहा, "जब आप हमें योर ऑनर कहते हैं, तो या तो आपके ध्यान में सुप्रीम कोर्ट ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स या मजिस्ट्रेट होते हैं, जबकि हम दोनों नहीं हैं।'
याचिकाकर्ता ने उक्त टिप्पणी के बाद तुरंत माफी मांगी और कहा कि वह "माई लॉर्ड्स" शब्द का उपयोग करेगा। सीजेआई ने जवाब दिया, "जो कुछ भी हो। हमारा विषय यह नहीं है कि आप हमें क्या कहते हैं। लेकिन गलत शब्दों का प्रयोग न करें"।
याचिका अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियों को भरने से संबंधित थी। जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन, जो पीठ का हिस्सा थे, ने याचिकाकर्ता से कहा कि उन्होंने अपना "होमवर्क ठीक से" नहीं किया है क्योंकि उन्होंने मलिक मजहर सुल्तान मामले में निर्देशों को छोड़ दिया है।
जस्टिस रामसुब्रमण्यन ने बताया कि अधीनस्थ न्यायपालिका में नियुक्तियां मलिक मजहर सुल्तान मामले में निर्धारित समय-सीमा के अनुसार की जाती हैं।
जब याचिकाकर्ता जवाब देने में लड़खड़ा रहा था, तो सीजेआई ने उसे सलाह दी कि "ऐसी स्थिति में, आपको मामले का अध्ययन करने के लिए समय चाहिए"। सीजेआई ने कहा, कि "मामले का अध्ययन कीजिए और अगले सप्ताह वापस आइए।"
सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने मामले को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया। अगस्त 2020 में सीजेआई की अदालत में भी ऐसा ही एक वार्तालाप हुआ था, जब एक वकील ने 'योर ऑनर' का इस्तेमाल किया था।
Lawyer: "Your honour"#CJI: Are you appearing before the US Supreme Court? The use of "ʏᴏᴜʀ ʜᴏɴᴏᴜr"
— Live Law (@LiveLawIndia) August 13, 2020
is in US & not Indian SC"
Lawyer: Theres nothing in law that prescribes address by lawyers. #CJI: May not be the law, it is about practice of the court.
माई लॉर्ड या योर ऑनर? ': भारत में न्यायाधीशों को कैसे संबोधित करें?
6 जनवरी 2014 को, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एचएल दत्तू और एसए बोबडे की बेंच ने एक वकील, शिव सागर तिवारी की जनहित याचिका को सुनावाई के बाद खारिज कर दिया था, जिन्होंने 'माई लॉर्ड' और 'माई लॉर्डशिप' शब्दों का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी ।
उन्होंने दलील दी थी कि ये शब्द गुलामी के प्रतीक हैं, पूरे भारत में न्यायालयों में इसका इस्तेमाल करने पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह देश की गरिमा के खिलाफ है। ''
बेंच ने पीआईएल को खारिज करते हुए कहा था, "हमने कब कहा कि यह अनिवार्य है। आप हमें केवल गरिमापूर्ण तरीके से बुला सकते हैं ... अदालत को संबोधित करने के लिए कि हम क्या चाहते हैं। केवल संबोधन का एक सम्मानजनक तरीका।
आप (जजों को) सर बुलाते हैं, यह स्वीकार है। आप इसे योर ऑनर कहते हैं, यह स्वीकार किया जाता है। आप लॉर्डशिप कहते हैं, इसे स्वीकार किया जाता है। ये अभिव्यक्ति के कुछ उपयुक्त तरीके हैं,, जिन्हें स्वीकार किया जाता है।"
कई जजों ने 'माई लॉर्ड' और 'माई लॉर्डशिप' का उपयोग नहीं करने का अनुरोध किया है
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस के चंद्रू ने 2009 में वकीलों को 'माई लॉर्ड' शब्द का उपयोग करने से परहेज करने के लिए कहा था। इस साल की शुरुआत में, जस्टिस एस मुरलीधर ने वकीलों से औपचारिक रूप से अनुरोध किया था कि वे उन्हें 'योर लॉर्डशिप' या 'माई लॉर्ड' के रूप में संबोधित करने से बचें।
"कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थोट्टिल बी बैर राधाकृष्णन ने हाल ही में रजिस्ट्री के सदस्यों सहित जिला न्यायपालिका के अधिकारियों को पत्र लिखा था, जिसमें "माई लॉर्ड" या "लॉर्डशिप" के बजाय "सर" के रूप में संबोधित करने की इच्छा व्यक्त की गई थी।
पिछले साल, राजस्थान हाईकोर्ट ने वकीलों और माननीय जजों को "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" के रूप में संबोधित करने से रोकने के लिए एक नोटिस जारी किया था। 14 जुलाई को हुई एक बैठक में फुल कोर्ट द्वारा लिए गए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के बाद यह नोटिस जारी किया गया था।
भारत के संविधान में निहित समानता के जनादेश का सम्मान करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया था।
'योर लॉर्डशिप', 'माई लॉर्ड' औपनिवेशिक अवशेष; न्यायाधीशों को संबोधित करने के लिए वकील 'सर' का उपयोग भी कर सकते हैं - 2006 का बीसीआई संकल्प
6 मई 2006 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भारत के राजपत्र में एक प्रस्ताव प्रकाशित किया था, जो इस प्रकार है:
"न्यायालय के प्रति सम्मानजनक रवैया प्रदर्शित करने के बार के दायित्व के साथ और न्यायिक कार्यालय की गरिमा को ध्यान में रखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों या अधीनस्थ न्यायालयों में अपनाए जाने वाले संबोधन का रूप इस प्रकार होना चाहिए: "सर्वोच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालयों "योर ऑनर" "या" "ऑनरेबल कोर्ट" और और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में "यह वकीलों पर है कि वो कोर्ट को "सर" या संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं में समकक्ष शब्द से संबोधित करें।
स्पष्टीकरण: "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" जैसे शब्द औपनिवेशिक पद के अवशेष हैं, इसलिए उपरोक्त नियम को न्यायालय के प्रति सम्मानजनक रवैया दिखाते हुए शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया है।
इस प्रकार नियम [बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स अध्याय IIIA,भाग VI] सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में "योर ऑनर" या "ऑनरेबल कोर्ट" का उपयोग करने की सिफारिश करता है और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में "सर" या समकक्ष शब्द की सिफारिश करता है।
स्पष्टीकरण में आगे कहा गया है कि "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" शब्द औपनिवेशिक पद के अवशेष हैं।
उपरोक्त नियम से यह स्पष्ट है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" के उपयोग को अस्वीकार कर दिया है और "योर ऑनर" या "ऑनरेबल कोर्ट" या "सर" के उपयोग की सिफारिश की है।
रोचक बात यह है कि यह प्रस्ताव बार काउंसिल ने प्रोग्रेसिव एंड विजिलांट लॉयर्स फोरम की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद किया था।
इसके बाद, 2007 में, केरल उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ ने सर्वसम्मति से न्यायाधीशों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित नहीं करने का संकल्प लिया था।