अगर किसी नॉन-स्पीकिंग आदेश से विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज किया गया हो तो उस पर विलय का सिद्धांत लागू नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विशेष अनुमति याचिका को निरस्त करने के लिए कोई नॉन-स्पीकिंग आदेश संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत क़ानून का उद्घोष नहीं है और न ही यह विलय का सिद्धांत इस पर लागू होता है।
पी सिंगरवेलन बनाम ज़िला कलेक्टर, तिरुपुर का यह मामला तमिलनाडु सरकार के एक आदेश की व्याख्या से जुड़ा था। अदालत ने पाया कि ऐसे बहुत सारे आदेश आए हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने ड्राइवरों को राहत दिए जाने से संबंधित विशेष अनुमति याचिकाओं को ख़ारिज किया जा चुका है पर इस तरह के सारे आदेश याचिका को स्वीकार करने के स्तर पर ही ख़ारिज किए गए थे।
इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि उक्त सभी आदेश इस अर्थ में नॉन-स्पीकिंग आदेश थे कि विशेष अनुमति याचिका दायर करने की अनुमति ही नहीं दी गई थी। इस स्थिति में यह याद रखना ज़रूरी है कि किसी निचली अदालत या मंच के आदेश के ख़िलाफ़ किसी विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज करना उस आदेश की पुष्टि नहीं है। अगर इस अदालत का ऐसा कोई आदेश नॉन-स्पीकिंग है तो यह संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत क़ानून की उद्घोषणा नहीं है साथ ही यह विलय का सिद्धांत भी इस पर लागू नहीं होता।"
अदालत ने कहा कि कुन्हैयाम्मेद बनाम केरल राज्य के एक मामले में अदालत ने कहा था कि
"एपल की विशेष अनुमति याचिका की अनुमति नहीं देना नॉन-स्पीकिंग या स्पीकिंग आदेश हो सकता है और दोनों ही स्थितियों में इस पर विलय का सिद्धांत लागू नहीं होता। विशेष अनुमति याचिका की अनुमति नहीं देने का आदेश चुनौती दिए गए आदेश का स्थान नहीं लेता। इसका मतलब यह कि अपील दाख़िल करने की अनुमति देने के बारे में अदालत अपने विशेषाधिकार के प्रयोग की इच्छुक नहीं थी।"
इसलिए पीठ ने इस अपील पर इस अदालत के पूर्व के आदेश से प्रभावित हुए बिना अपना निर्णय दिया। अंततः, अदालत ने अपील को निरस्त कर दिया। एक मुद्दा यह भी था कि क्या अपीलकर्ता ड्राइवरों के साथ समानता का दावा कर सकता है या नहीं क्योंकि ड्राइवरों को पूर्व के मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में लाभ पहुंचाया गया है।
पीठ ने इस संदर्भ में बासवराज बनाम भूमि अधिग्रहण अधिकारी (2013) 14 SCC 81 मामले में आए फ़ैसले का ज़िक्र किया और कहा,
अब तक यह पूर्ण रूप से स्थापित हो चुका है कि एक ही तरह के मामले में आए फ़ैसले के आधार पर अनुच्छेद 14 के अधीन किसी अन्य मामले में किसी व्यक्ति को हुए फ़ायदे के आधार पर इसी तरह के फ़ायदे का दावा नहीं कर सकता।अनुच्छेद 14 सकारात्मक समानता के सिद्धांत को समेटे हुए है न कि नकारात्मक समानता या अनियमितता का।
दरअसल इस अदालत का मत रहा है कि अन्य न्यायिक मंचों के फ़ैसलों पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। इस तरह किसी निचली अदालत के ग़लत फ़ैसले के आधार पर हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता।
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