" अगर वाणिज्यिक विवादों में दशक लगते रहे तो यूपी में कोई निवेश नहीं करेगा" : सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और हाईकोर्ट को लंबित मामलों के मुद्दों को हल करने को कहा

Update: 2022-10-11 16:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट की बुनियादी ढांचा समिति के सदस्यों व हाईकोर्ट की नियुक्ति समिति और यूपी राज्य के मुख्य सचिव, वित्त सचिव, कानून सचिव और राजस्व सचिव के बीच एक सप्ताह की अवधि के भीतर निचली न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे और अन्य बजटीय प्रावधानों के संबंध में मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बैठक होनी चाहिए।

न्यायालय ने आगे कहा कि हाईकोर्ट को इस मामले को राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी के साथ उठाना चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि जिला न्यायपालिका में विभिन्न कैडर जैसे आशुलिपिक आदि में विभिन्न पदों की भर्ती प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए और नियुक्तियां जल्द से जल्द और विशेष तौर पर दो महीने की अवधि के भीतर की जा सकें।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच उस मामले की सुनवाई कर रही थी जहां कोर्ट ने मई में यूपी राज्य में वाणिज्यिक विवादों से संबंधित मामलों को तय करने में देरी की समस्या से निपटने के लिए कुछ निर्देश जारी किए थे। उत्तर प्रदेश राज्य में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत मध्यस्थता अवार्ड और आवेदनों के निष्पादन की कार्यवाही में बढ़ते लंबित मामलों से अवगत होने के बाद निर्देश जारी किया गया था। पीठ ने इससे पहले दो क़ानूनों यानी मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 और वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 के तहत दायर मामलों की बड़ी संख्या पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी, जिसमें मामलों के त्वरित निपटान की परिकल्पना की गई है।

पीठ ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि,

"आज जब आगे की सुनवाई के लिए वर्तमान कार्यवाही की गई है, तो हाईकोर्ट के वकील निखिल गोयल ने कहा है कि पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश के जिलों में और उत्तर प्रदेश के वाणिज्यिक न्यायालयों में वाणिज्यिक मामलों के निपटान में काफी प्रगति हुई है। हालांकि, वाणिज्यिक विवादों के जल्द से जल्द निपटान के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। "

पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"जैसा कि पहले के आदेशों में कहा गया था, निष्पादन याचिकाएं और वाणिज्यिक विवादों से उत्पन्न कार्यवाही कई दशकों से लंबित हैं। ये अंततः राज्य में अर्थव्यवस्था के विकास को प्रभावित कर सकता है। राज्य और साथ ही प्रशासनिक पक्ष में हाईकोर्ट को समाधान खोजने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है और यह देखना चाहिए कि अदालत तक पहुंचने वाले वाणिज्यिक विवादों को जल्द से जल्द निपटाया जाए। "

पीठ ने अपने आदेश में आगे दर्ज किया, "श्री गोयल द्वारा यह बताया गया है कि हालांकि इस अदालत द्वारा पारित पूर्व के आदेशों के अनुसार यूपी राज्य द्वारा चार अतिरिक्त वाणिज्यिक अदालतों को मंज़ूरी दी गई है, हालांकि, वे केवल कागज पर हैं और कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं और राज्य द्वारा अन्य बजटीय प्रावधान नहीं किए गए हैं। उपरोक्त बयान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के निर्देश पर दिया गया है।

पीठ ने निर्देश दिया,

"राज्य सरकार का भी समान रूप से यह कर्तव्य है कि वह बेहतर और पर्याप्त बुनियादी ढांचा प्रदान करे और वाणिज्यिक अदालतों और अन्य अदालत भवनों के लिए बजटीय प्रावधान करे। हम यूपी राज्य को बजटीय प्रावधानों के तहत आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर स्थापित अतिरिक्त वाणिज्यिक अदालतों में बुनियादी ढांचे की सुविधाओं के लिए प्रावधान करने का निर्देश देते हैं, यदि अब तक नहीं किया गया है। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल सुनवाई की अगली तारीख पर उपरोक्त की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। "

पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा कि

"हाईकोर्ट की ओर से दायर दिनांक 25.9.2022 की स्टेटस रिपोर्ट से, ऐसा प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट की जिला न्यायपालिका में विभिन्न कैडरों में पद पिछले चार वर्षों से लंबित हैं। रिपोर्ट में जिस आंकड़े का उल्लेख किया गया है, ऐसा प्रतीत होता है कि निचली न्यायपालिका 50% स्वीकृत आशुलिपिकों के साथ कार्य कर रही है। यहां तक ​​कि कुछ न्यायालय कक्ष/ ट्रिब्यूनल भी किराए के परिसर में कार्य कर रहे हैं।" 

बेंच ने आदेश दिया,

"हाईकोर्ट के वकील श्री गोयल ने हाईकोर्ट और राज्य प्रशासन के बीच बुनियादी सुविधाओं आदि के लिए बजटीय प्रावधान करने के लिए एक पत्राचार की ओर इशारा किया है। हाईकोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट की बुनियादी ढांचा समिति के सदस्यों व हाईकोर्ट की नियुक्ति समिति और यूपी राज्य के मुख्य सचिव, वित्त सचिव, कानून सचिव और राजस्व सचिव के बीच एक सप्ताह की अवधि के भीतर निचली न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे और अन्य बजटीय प्रावधानों के संबंध में मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बैठक होनी चाहिए, और यदि कोई समस्या हो तो वो दूर हो। हाईकोर्ट को यह मामला राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी के साथ भी उठाना चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि विभिन्न पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया में तेज़ी आए और नियुक्तियां की जाएं। जल्द से जल्द और अधिमानतः आज से दो महीने की अवधि के भीतर हाईकोर्ट और राज्य सरकार द्वारा सभी प्रयास किए जाएंगे कि सभी कार्रवाई किए गए पदों को आज से दो महीने की अवधि के भीतर जल्द से जल्द भरा जाए। साथ ही हाईकोर्ट राज्य प्रशासन और हाईकोर्ट प्रशासन के साथ बैठक के परिणाम पर सुनवाई की अगली तारीख को एक और रिपोर्ट दायर करे, जैसा कि ऊपर बताया गया है।"

जस्टिस शाह ने मंगलवार को मौखिक रूप से गोयल और उत्तर प्रदेश राज्य के लिए एएजी सीनियर एडवोकेट गरिमा प्रसाद से कहा,

"तालुका स्तर पर भी न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे और भर्ती के संबंध में ठोस सुझाव के साथ आइए! आपको गुजरात देखना चाहिए, जिस तरह का बुनियादी ढांचा है! राज्य में बुनियादी ढांचे और भर्ती के लिए आपको पर्याप्त बजटीय प्रावधान आवंटित करना होगा! धन की अनुपलब्धता के आधार पर कोई भी चल रही परियोजना या अन्य परियोजना को रोका नहीं जाना चाहिए। इसे उच्चतम प्राधिकारी को बताएं! यदि अंततः यह पाया जाता है , हम परमादेश जारी करेंगे! न्यायिक अधिकारियों को भूल जाइए, हमें आम लोगों पर भी विचार करना होगा! वे अदालत के बाहर कैसे बैठते हैं! हम किस लिए, किसके लिए हैं? वादी के लिए। यदि उन्हें सुविधाएं नहीं मिलती हैं, तो क्या? वे पेड़ के नीचे बैठने के लिए अदालत में नहीं आते हैं।"

जस्टिस शाह ने गोयल को संबोधित करते हुए मौखिक रूप से कहा,

"अभी भी मध्यस्थता मामलों में 40,000 निष्पादन याचिकाएं लंबित हैं? कोई भी नहीं आएगा और यूपी में पैसा निवेश नहीं करेगा यदि 20 साल या 30 साल का समय वाणिज्यिक विवादों में लिया जाता है! 'आसानी' कहां है। हाईकोर्ट यह नहीं कह सकता कि यह राज्य की समस्या है! आप भी राज्य का हिस्सा हैं। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समस्या से निपटना है। आप केवल न्यायिक अधिकारियों या लंबित मामलों की संख्या को दोष नहीं दे सकते।"

केस: मेसर्स चोपड़ा फेब्रिकेटर्स एंड मैन्युफैक्चरर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत पंप्स एंड कंप्रेशर्स लिमिटेड और अन्य।

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