डीएमए के सक्षम प्राधिकारी के निर्देश के बिना COVID-19 मरीजों के घरों के बाहर पोस्टर नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-12-09 06:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि COVID-19 मरीजों के घरों के बाहर पोस्टरों को तभी चिपकाया जा सकता है, जब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी से ऐसा करने का कोई निर्देश हो।

न्यायालय ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर पहले ही इस रुख को स्पष्ट कर दिया है और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यही करने का निर्देश दिया है।

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिसबीआर गवई और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने उस रिट याचिका का निस्तारण किया, जिसमें विभिन्न राज्यों की सरकारों के फैसले को चुनौती दी गई थी कि COVID​​- 19 रोगियों के घरों के बाहर पोस्टर चिपकाए जाएं, जो आइसोलेशन में हैं।

इसके बाद 3 दिसंबर को याचिका में आदेश सुरक्षित रखे गए।

पिछली सुनवाई में , पीठ ने केंद्र के लिए उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को कहा था कि क्या केंद्र द्वारा इस संबंध में एक एडवाइजरी जारी की जा सकती है, ताकि राज्य पॉजिटिव रोगियों के घरों की दीवारों पर पोस्टर चिपकाने से बचे। कानून अधिकारी ने अदालत को बताया कि इस तरह की एक एडवाइजरी पहले से ही थी।

अधिवक्ता चिनॉय शर्मा ने कहा,

"पोस्टर और आरडब्ल्यूए के व्हाट्सएप ग्रुप पर ऐसे मैसेज घूम रहे हैं जिनमें पॉजिटिव लोगों के नाम लिखे हैं। सरकार और अदालत से सकारात्मक दिशानिर्देश होने चाहिए जिससे ये अभ्यास समाप्त हो सके। "

उपरोक्त सबमिशन को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने कहा कि वह उपरोक्त दलील पर फैसला सुरक्षित रखेगा।

1 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने कहा था कि COVID19 पॉजिटिव रोगियों के निवास के बाहर पोस्टर को स्पष्ट रूप से चिपकाए जाने की प्रथा कलंकित करती है और अक्सर ऐसी स्थिति पैदा होती है, जहां रोगियों को "अछूत" कहा जा सकता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि केंद्र ने 30 नवंबर को इस मामले में अपना हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि ऐसे पोस्टर यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि कोई भी व्यक्ति कोविड पॉजिटिव रोगी के घर में प्रवेश न करे।

मेहता ने कहा,

"अगर कोई पोस्टर किसी व्यक्ति को अपमानित या कलंकित करता है तो उसे हटा लेना चाहिए। लेकिन अगर यह किसी व्यक्ति को अनजाने में प्रवेश से चेतावनी देता है तो यह राज्य सरकार के ऊपर है।"

न्यायमूर्ति एमआर शाह ने टिप्पणी करते हुए कहा,

"वास्तविकता यह है कि ऐसे कई रोगियों के साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है।"

जनहित याचिका में पहचान के निशान के रूप COVID-19 रोगियों के घरों के बाहर पोस्टर लगाने को चुनौती दी है, साथ ही ऐसे रोगियों के नाम आवास समितियों के प्रबंधन और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों को सौंपते पर कहा गया है कि मरीजों की पहचान का ऐसा खुलासा निजता के उनके मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है।

याचिका में आगे नामों के इस तरह के प्रकटीकरण को बंद करने को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए गए हैं और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कार्यकारी आदेशों को रद्द करने के लिए प्रार्थना की है जो COVID​​-19 रोगियों के घरों के बाहर पोस्टर चिपकाए जाने की अनुमति देते हैं।

यह कहा गया है कि संविधान बीमारी और शारीरिक पीड़ा के आधार पर भेदभाव की अनुमति कभी नहीं दे सकता है, ऐसे व्यक्तियों के नामों को सार्वजनिक रूप से प्रचारित करना और उन्हें जनता की जांच के अधीन करना गरिमा के साथ रहने के लोकाचार के खिलाफ जाता है।

याचिका में कहा गया है,

" घरों के बाहर पोस्टर लगाने से उनकी बीमारी को कॉलोनी या अपार्टमेंट परिसर के अन्य निवासियों और पड़ोसियों, विक्रेताओं, राहगीरों, घरेलू कर्मचारियोंऔर अन्य असंबंधित व्यक्तियों के के बीच व्यापक रूप से प्रचारित किया जा रहा है।"

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