'किसी भी व्यक्ति पर आईटी एक्ट की धारा 66 A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल जजमेंट को लागू करने के निर्देश जारी किए

Update: 2022-10-12 10:23 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) 2000 की धारा 66 A के तहत किसी पर भी मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए।

बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में श्रेया सिंघल मामले में इस धारा को असंवैधानिक करार दिया था।

अदालत ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और गृह सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए कि सभी लंबित मामलों से धारा 66A का संदर्भ हटा दिया जाए।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रकाशित आईटी अधिनियम के बेयरएक्ट्स को पाठकों को पर्याप्त रूप से सूचित करना चाहिए कि धारा 66 A को अमान्य कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के उल्लंघन के मामलों में व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक लगाने के निर्देश पारित किए।

भारत के चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ एनजीओ 'पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज' (पीयूसीएल) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें श्रेया सिंघल बनाम यूओआई (2015) 5 एससीसी 1 में फैसले के बावजूद धारा 66 ए आईटी अधिनियम लागू होने के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है।

अपनी पिछली सुनवाई में, अदालत ने केंद्र सरकार को उन राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने के लिए कहा था, जहां 2015 में अदालत द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत एफआईआर दर्ज की जा रही थी।

कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वह ऐसे राज्यों पर जल्द से जल्द उपचारात्मक उपाय करने के लिए दबाव डाले।

आज की सुनवाई में भारत सरकार की ओर से पेश वकील जोहेब हुसैन ने धारा 66ए के तहत शिकायतों के संबंध में एक अखिल भारतीय स्टेटस रिपोर्ट पेश की।

पीठ ने कहा कि वकील द्वारा प्रदान की गई जानकारी से पता चलता है कि श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार मामले में धारा 66 ए की वैधता के मुद्दे के बावजूद, 2000 अधिनियम की धारा 66 ए के प्रावधान पर कई अपराध और आपराधिक कार्यवाही अभी भी परिलक्षित होती है और नागरिक अभी भी अभियोजन का सामना कर रहे हैं।

पीठ ने मामले की गंभीरता पर गौर किया और कहा कि ऐसी कार्यवाही सीधे तौर पर श्रेया सिंघल के निर्देशों का उल्लंघन है।

पीठ ने निम्नलिखित निर्देश पारित किए,

1. इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि धारा 66ए संविधान के उल्लंघन में पाई जाती है और इस तरह आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कथित अपराधों के उल्लंघन के लिए किसी भी नागरिक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

2. सभी मामलों में जहां नागरिक धारा 66ए के उल्लंघन के लिए अभियोजन का सामना कर रहे हैं, सभी अपराधों से संदर्भ 66ए हटाया जाए।

3. हम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी पुलिस महानिदेशकों, गृह सचिवों और सक्षम अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि वे पूरे पुलिस बल को धारा 66ए के उल्लंघन के संबंध में कोई शिकायत दर्ज नहीं करने का निर्देश दें। यह निर्देश केवल धारा 66ए के संदर्भ में ही लागू होगा। यदि अपराध के अन्य पहलू हैं, जहां अन्य अपराध भी आरोपित हैं, तो उन्हें हटाया नहीं जाएगा।

4. जब भी कोई प्रकाशन, चाहे सरकारी, अर्ध सरकारी या निजी, आईटी अधिनियम के बारे में प्रकाशित किया जाता है और धारा 66 ए उद्धृत किया जाता है, पाठकों को पर्याप्त रूप से सूचित किया जाना चाहिए कि इस अदालत द्वारा 66 ए के प्रावधानों को संविधान का उल्लंघन करने के रूप में घोषित किया गया है।

इन निर्देशों के साथ पीयूसीएल द्वारा दाखिल आवेदन का निपटारा किया गया।

पूरा मामला

पीयूसीएल ने निम्नलिखित मुद्दों को उठाते हुए इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की सहायता से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था,

क) क्या श्रेया सिंघल बनाम यूओआई (2015) 5 एससीसी 1 के निर्णय का अनुपालन किया जा रहा है?

ख) क्या भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त हैं?

ग) गलत जांच और अभियोजन से बचने के लिए श्रेया सिंघल में फैसले के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है?

घ) यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए कि लोगों के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों में पारित न्यायालय के निर्णयों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए?

आवेदन के अनुसार, श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं।

इसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने फैसले को लागू करने के बजाय, यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लिया कि कार्यान्वयन की जिम्मेदारी राज्यों के साथ-साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भी है।

आवेदन में अदालत से अनुरोध किया गया कि वो श्रेया सिंघल में निर्णय की घोषणा के बाद से आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत पुलिस / कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दर्ज मामलों का विवरण एकत्र करने के लिए भारत संघ को निर्देश दें और जांच के चरण में राज्यों में पुलिस महानिदेशक और केंद्र शासित प्रदेशों के मामलों में प्रशासकों/लेफ्टिनेंट गवर्नरों को धारा 66ए के तहत आगे की जांच को खत्म करने का निर्देश दें।

याचिकाकर्ता ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से सभी अधीनस्थ न्यायालयों (दोनों सत्र न्यायालयों और मजिस्ट्रेट न्यायालयों) को धारा 66 ए के तहत सभी आरोपों / मुकदमे को खत्म करने और ऐसे मामलों और सभी उच्च न्यायालयों में अभियुक्तों को रिहा करने के लिए सलाह जारी करने के लिए प्रार्थना की।

सभी जिला न्यायालयों और मजिस्ट्रेटों को सूचित करने के लिए कि आईटी अधिनियम की निरस्त धारा 66 ए के तहत तत्काल कोई संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने सभी राज्यों के डीजीपी / सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों से पुलिस / कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने की प्रार्थना की, जो आईटी अधिनियम की निरस्त धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज करते पाए गए और उच्च न्यायालयों को धारा 66ए के तहत मामला दर्ज करने या इसकी जांच करने या मुकदमा चलाने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ स्वत: अवमानना कार्यवाही करने की मांग की, यह सूचित किए जाने के बावजूद कि धारा 66 ए को हटा दिया गया है।

केस टाइटल: पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया MA 901/2021 in W.P. (Crl). No. 199/2013

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