सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना प्रतिकूल आदेश से किसी को सज़ा नहीं सुनाई जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Update: 2019-12-15 08:18 GMT

किसी भी व्यक्ति को सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना एक प्रतिकूल आदेश से सज़ा नहीं सुनाई जा सकती। चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा आपूर्तिकर्ता डेफोडिल्स से स्थानीय खरीद को रोकने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की।

यह आदेश यूपी सरकार के प्रधान सचिव द्वारा जारी किया गया था। यह कहते हुए कि डैफोडिल्स के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इसने अपराध किया है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) इस मुद्दे पर पूछताछ कर रही थी।

न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि कोई भी कार्यकारी निर्णय एक कठोर प्रतिकूल कार्रवाई का प्रस्ताव करता है, जैसे कि एक भ्रामक या ब्लैकलिस्टिंग आदेश। यह आवश्यक है कि प्रस्तावित कार्रवाई के खिलाफ उन पक्षों को सुनवाई और प्रतिनिधित्व का अवसर दिया जाए, जिनके के प्रभावित होने की संभावना है।

बेंच ने कहा कि निर्देश वास्तव में अनिश्चित काल के लिए डैफोडील्स से दवाओं की स्थानीय खरीद को रोकने के लिए दिया गया है।

बेंच ने कहा,

" वर्तमान मामले में भले ही कोई यह मानता हो कि लंबित आपराधिक मामले में आरोपी सुरेंद्र चौधरी शामिल था और आपत्तिजनक गतिविधियों में लिप्त में देखा गया था, लेकिन ipso facto (यह एक मात्र तथ्य) एकतरफा कार्रवाई का परिणाम नहीं हो सकता, जिस तरह से राज्य ने डैफोडिल्स के खिलाफ की। डैफोडिल्स को कभी भी सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया गया था या फिर लागू आदेश के खिलाफ उसे प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला।


अगर इस देश में न्यायिक क्षितिज को रोशन करने वाला कोई ध्रूवतारा है, तो यह है कि किसी भी व्यक्ति को सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना एक प्रतिकूल आदेश पर और उसे ऐसा उठाने से पहले पूर्व सूचित किए बिना सज़ा नहीं सुनाई जा सकती। जैसा कि राज्य ने इस मामले में किया। इस सिद्धांत को इस देश के कानूनी लोकाचार में उलझा दिया गया है।"


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