एनआई एक्ट- सेक्‍शन 139 के तहत प्र‌िजम्‍प्‍शन गारंटर चेक पर भी लागू होता है: केरल हाईकोर्ट

Update: 2020-01-09 07:09 GMT

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 139 के तहत गारंटर द्वारा जारी किए गए चेक पर भी प्रीजम्प्शन लागू होती है।

कोर्ट ने कहा कि गारंटर का चेक भी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (NI) एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक ही माना गया है, क्योंकि यह कानूनी रूप से लागू ‌किए गए ऋण के निर्वहन के लिए जारी किया जा रहा है। धारा 138 में यह कहीं नहीं कहा गया है कि यह केवल चेक आदेशक के दायित्व के निर्वहन के लिए प्रदान किया जाता है।

इस मामले में, मुख्य आरोपी केजी शीबा के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में निजी शिकायत दायर की गई थी, जिसमें एनआई एक्‍ट की धारा 138 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।

शिकायत में कहा गया था कि शीबा (शिकायतकर्ता के मित्र की पत्नी) ने नवंबर 2003 के अंत में शिकायतकर्ता भास्करन से रुपए 1,30,000/ ऋण लिया, जिसे वह एक महीने के भीतर वापस करने का वादा किया। वादे में विफल रहने के बाद उन्होंने

भास्करन के पक्ष में 13 अप्रैल 2004 को एक चेक जारी किया। हालांकि पर्याप्त धन न होने के कारण चेक डिसऑनर हो गया।

चूंकि शिकायतकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी का उसके साथ कोई वित्तीय लेन-देन था और विवादित पैसे का लेनदेन केवल भास्करन और उसके दोस्त (शीबा के पति) के बीच था, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।

ट्रायल कोर्ट के अनुसार, चेक को अभियुक्त शीबा के कानूनी दायित्व के निर्वहन में जारी नहीं माना जा सकता है।

ज‌स्ट‌िस टीवी अनिलकुमार ने कहा कि शीबा (मुख्य आरोपी) ने शिकायतकर्ता भास्करन के पक्ष में पति की देनदारी के निर्वहन के लिए चेक जारी किया। इस मामले में पत्नी गारंटर है।

कोर्ट ने कहा,"गारंटर द्वारा जारी किया गया चेक भी एनआई एक्ट की धारा 138 तहत कानूनी रूप से लागू ऋण के निर्वहन के लिए दिए जाने वाला एक चेक है। एनआई एक्ट की धारा 138 में कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि एक चेक केवल आदेशक की देनदारी के निर्वहन के लिए जारी किया जाता है।

यह "किसी भी ऋण या अन्य देनदारी" के निर्वहन के लिए जारी किया सकता है। दूसरे शब्दों में, एनआई अधिनियम की धारा 139 के तहत धारणा की विवेचना गारंटर के चेक पर भी लागू होती है।

शिकायतकर्ता को ब्लेंक चेक दिया गया, जिसे उसने भर दिया, जिससे ये लगा कि यह देनदारी को अदा करने के लिए दिया गया है। अदालत ने कहा कि एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत प्र‌िजम्प्शन की विवेचना को ब्लैंक चेक से नहीं जोड़ा जा सकता है और न ही यह शिकायतकर्ता को ये

मानने में मदद करता है कि चेक 1,30,000 रुपए की पूरी राशि की देनदारी के रूप में दिया गया था।

कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए और बरी के आदेशों की पुष्टि करते हुए कहा,

"मैं मानता हूं कि अभियुक्त को कम से कम उचित संदेह का लाभ पाने का हकदार है और वह एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी नहीं है। निचली अदालत का फैसला कि अभ‌ियुक्त ने एक लाख तीस हजार देनदारी के लिए चेक जारी किया था, साबित नहीं हो सका, पूरी तरह से ठीक है।

इसमें हस्तक्षेप करने का कोई जरूरत नहीं है। इस फैसले को बेकार या बेतुका नहीं माना जा सकता है। "

मामले का विवरण:

टाइटल: एके भास्करन बनाम केजी शीबा

केस नंबर: Crl.A.No. 782/2006

कोरम: ज‌स्टिस टीवी अनिलकुमार

वकील: एडवोकेट आर रामदास (अपीलकर्ता के लिए), एडवोकेट केएम सत्यनाथ मेनन ( रिस्पॉडेंट 1 के लिए)

एडवोकेट बी जयसूर्या ( रिस्पॉडेंट 2 के लिए)

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