'मैंने सोच-समझकर बयान दिया है': प्रशांत भूषण ने बयान पर विचार करने लिए समय देने के सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव को ठुकराया
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट के पक्ष में दिए गए बयान पर पुनर्विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दो ट्वीटों के कारण अवमानना का दोषी माना है।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने गुरुवार को उनकी सजा पर सुनवाई की, जिसमें भूषण ने कहा कि उनका बयान पर्याप्त "सोच और समझ" के बाद दिया गया है। उन्होंने कहा कि वह अपने बयान पर पुनर्विचार नहीं करना चाहते और उन्हें विचार करने लिए समय देने का कोई उपयोगी उद्देश्य नहीं होगा।
उन्होंने कहा, "मैं बयान पर पुनर्विचार नहीं करना चाहता। समय देने के संबंध में, मुझे नहीं लगता कि यह कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा करेगा।"
'Should we not give an opportunity to #PrashanthBhushan to think over and come back to us after 2-3 days?' Justice Arun Mishra asks Attorney General.#JusticeMishra #PrashanthBhushan @pbhushan1
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
श्री भूषण ने जस्टिस मिश्रा द्वारा उन्हें अपने बयान पर विचार करने और 2-3 दिनों के बाद वापस आने का अवसर देने की पेशकश के बाद यह टिप्पणी की। जस्टिस मिश्रा ने दोहराया कि न्यायालय उन्हें विचार करने के लिए समय दे रहा है, जिस पर भूषण ने कहा:
" योर लॉर्डशिप, अगर आपका मुझे समय देना चाहता हैं, तो आपका स्वागत है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह किसी उपयोगी उद्देश्य की पूर्ति करेगा और यह न्यायालय के समय की बर्बादी होगी। बहुत संभावना नहीं है कि मैं अपना बयान बदलूंगा।"
Justice Gavai asks Bhushan : Would you like to reconsider your statement?
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
Bhushan : I don't want to reconsider the statement. As regards giving time, I don't think it will serve any useful purpose.#JusticeMishra #PrashanthBhushan @pbhushan1
जस्टिस मिश्रा ने कहा, "हम आपको दो-तीन दिन का समय देंगे। सोचें। आपको सोचना चाहिए। हमें अभी फैसला नहीं देना चाहिए।"
We will give you two-three days time. Think over. You must think over. We should not give verdict right now : Justice Mishra.#PrashanthBhushan #Bhushan #JusticeMishra
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
प्रशांत भूषण ने आज की सुनवाई में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि "व्यक्तिगत और व्यावसायिक मूल्यों पर" अदालत की गरिमा को बरकरार रखने के प्रयासों के बावजूद, उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया।
"मेरे ट्वीट कुछ भी नहीं थे, बल्कि हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर, जिसे मैं अपना सर्वोच्च कर्तव्य मानता हूं, उसे निभाने का एक छोटा सा प्रयास थे। मैंने बिना सोचे-समझे ट्वीट नहीं किया था। यह मेरी ओर से निष्ठारहित और अवमाननापूर्ण होगा कि मैं उन ट्वीट्स के लिए माफी की पेशकश करूं, जिन्होंने उन्हें व्यक्त किया जिन्हें, मैं अपने वास्तविक विचार मानता रहा हूं, और जो अब भी हैं।
#Bhushan says that his statement was "well-considered and well thought of".
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
"If your lordships want to give me time, I welcome. But I don't think it will serve any useful purpose and it will be a waste of time of Court. It is not very likely that I will change my statement".
इसलिए, मैं केवल विनम्रतापूर्वक वही कह सकता हूं, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने ट्रायल में कहा था: मैं दया नहीं मांगता। मैं उदारता की अपील नहीं करता। इसीलिए, मैं यहां हूं, इसीलिए, किसी भी दण्ड, जो कि न्यायालय ने अपराध के लिए निर्धारित किया है, के लिए मुझे कानूनी रूप से दंडित किया जा सकता है, और जो मुझे प्रतीत होता है कि वह एक नागरिक का सर्वोच्च कर्तव्य है।"
भूषण की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि सजा सुनाए जाने से पहने "व्यक्ति (अवमाननकर्ता) की प्रकृति" को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, सजा के लिए दो कारक महत्वपूर्ण हैं, 1. अपराध की प्रकृति और 2. व्यक्ति / अवमाननकर्ता की प्रकृति
Dhavan says the nature of the person also should be taken into consideration.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
He says the Kurle case was a "nasty case".@pbhushan1 #PrashantBhushan #contemptofcourt
उन्होंने कहा कि एडवोकेट प्रशांत भूषण के चरित्र और योगदान, जिन्होंने न्यायिक सुधार और न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई मुकदमों निशुल्क लड़ा, उन्हें सजा देते हुए ध्यान में रखना चाहिए।
धवन ने कहा, "इन कार्यवाहियों ने उन ट्वीट्स, जो कि क्षणभंगुर हैं, की तुलना में अधिक ध्यान आकर्षित किया है।" उन्होंने कहा कि न्यायालय को श्री भूषण की प्रकृति पर विचार करना चाहिए और आकलन करना चाहिए कि क्या वह अदालत पर हमला कर रहे हैं या न्याय प्रशासन में सुधार के लिए इसकी आलोचना कर रहे हैं।
इस नोट पर, उन्होंने कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स अधिनियम की धारा 13 क्लॉज (ए) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत अदालत की अवमानना के लिए कोई सजा नहीं देगी जब तक कि वह संतुष्ट न हो जाए कि अवमानना ऐसी प्रकृति की है कि यह पर्याप्त रूप से हस्तक्षेप करती हो, या न्याय के नियत क्रम में हस्तक्षेप करने के लिए पर्याप्त हो।
धवन ने कहा कि अवमानना कानून के तहत, अदालत के लिए यह कहना पर्याप्त नहीं है कि टिप्पणी "अपमानजनक" है। न्यायालय को यह बताना होगा कि टिप्पणियों ने "प्रशासन न्याय में पर्याप्त हस्तक्षेप" किया है। धवन ने तर्क दिया, "कुछ तकनीकी अवमानना का होना पर्याप्त नहीं है। यह बताया जाना चाहिए कि अवमानना कार्य ने न्याय प्रशासन के साथ हस्तक्षेप किया है।"
It is not enough that there should be some technical contempt. It must be shown that that the act of contempt must "substantially interfere with the administration of justice" : Dhavan says referring to Section 13 of the Contempt of Courts Act.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
इन प्रस्तुतियों के आधार पर जस्टिस मिश्रा को श्री भूषण द्वारा उठाए गए मामलों की "प्रभावशाली सूची" पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया, और उन्होंने अटॉर्नी जनरल से परामर्श किया कि श्री भूषण को इस मामले पर फिर से सोचने का समय दिया जाए।
एजी ने अदालत के सुझाव से सहमति व्यक्त की, न्यायमूर्ति गवई ने श्री भूषण से पूछताछ की कि क्या उन्हें कुछ और समय दिया जाना चाहिए, जिससे उन्होंने इनकार कर दिया।
हालांकि खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक वह अपने बयानों पर पुनर्विचार नहीं करते तब तक वह श्री भूषण को दंडित नहीं करने के प्रस्ताव पर विचार नहीं करेगा। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि पीठ को इस पर विचार करना होगा कि क्या भूषण का बयान 'बचाव या उत्तेजना' था।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, "जब हम सजा सुनाते हैं ..तो व्यक्ति को यह महसूस करना चाहिए कि उसने कुछ गलती की है। यह अहसास व्यक्ति को होना चाहिए।"
It is not enough that there should be some technical contempt. It must be shown that that the act of contempt must "substantially interfere with the administration of justice" : Dhavan says referring to Section 13 of the Contempt of Courts Act.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 20, 2020
"हमें व्यक्तियों को दंडित करने में आनंद नहीं आता है। मेरे लिए सजा का उद्देश्य निंदा है। गलतियां किसी के द्वारा भी की जा सकती हैं। ऐसे में, व्यक्ति को यह महसूस करना चाहिए और उसे स्वीकार करना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "जब यह सजा की बात आती है, तो हम तभी उदार हो सकते हैं जब व्यक्ति माफी मांगता है और वास्तविक अर्थों में गलती का अहसास करता है ... इस तथ्य से कि आप कई अच्छी चीजें कर रहे हैं इसका मतलब यह नहीं है कि आपके गलत तरीके बेअसर हो सकते हैं।"
पूरी बहस पढ़ने के लिए क्लिक करें।