मुल्लापेरियार मामला: बांध की सुरक्षा की मांग को लेकर तमिलनाडु के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
मुल्लापेरियार बांध पर तत्काल सुरक्षा के लिए किसी भी केंद्रीय सुरक्षा बल को तैनात किए जाने को मांग को लेकर तमिलनाडु के एक वकील ने भारत के सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वकील ने अपनी याचिका में बांध की सुरक्षा के लिए भारत संघ को निर्देश देने की मांग की।
126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश की मांग करते हुए केरल स्थित याचिकाकर्ताओं (डॉ जो जोसेफ और अन्य बनाम भारत संघ) द्वारा दायर रिट याचिका में स्टालिन भास्करन द्वारा अभियोग के लिए एक आवेदन दायर किया गया।
आवेदक ने तर्क दिया गया कि इसकी सुरक्षा के लिए मुल्लापेरियार बांध पर किसी केंद्रीय सुरक्षा बल को तैनात करने की तत्काल आवश्यकता है।
यह तर्क दिया गया कि केरल सरकार के समर्थन से केरल की सभी पार्टियां और व्यक्तिगत रुचि रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता किसी भी समय मुल्लापेरियार बांध को ध्वस्त कर सकते हैं, जो तमिलनाडु में लाखों लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है।
आवेदक ने प्रस्तुत किया गया कि संकटग्रस्त स्थानों की पहचान करने के बाद केरल सरकार ने किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पुलिसकर्मियों को तैनात नहीं किया है। मुल्लापेरियार बांध में पर्याप्त पुलिस बल तैनात नहीं किया गया और केरल राज्य ने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा के लिए कोई एहतियाती कदम नहीं उठाया।
आवेदक के अनुसार मुल्लापेरियार बांध विवाद को भू-राजनीतिक संघर्ष के रूप में देखने के बजाय इसे क्षेत्र में एक संस्थागत, कानूनी और प्रशासनिक विफलता के रूप में निपटाया जाना चाहिए। साझा संसाधन के लाभों का समान वितरण प्राप्त करना असंभव कार्य नहीं है।
अधिवक्ता नरेंद्र कुमार वर्ना के माध्यम से दायर आवेदन में तर्क दिया गया कि केरल सरकार, राजनीतिक दल और व्यक्तिगत हित सामाजिक कार्यकर्ता मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा को लेकर जनता में दहशत फैला रहे हैं जो सच नहीं है।
आवेदक के अनुसार, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर के किसी भी अध्ययन और विशेषज्ञ रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि बढ़ते जल स्तर से बांध को खतरा है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि बांध रिक्टर पैमाने पर छह की तीव्रता का भूकंप नहीं झेल पाएगा और ऐसे भूकंप से दिल्ली, चेन्नई, मुंबई जैसे शहर भी सुरक्षित नहीं हैं।
आवेदक ने यह भी बताया कि सबसे ऊंचे और महत्वपूर्ण बांधों में से एक भाखड़ा नांगल बांध को 450 से अधिक सीआईएसएफ कर्मियों द्वारा संभावित आतंकी खतरे या तोड़फोड़ के प्रयास को विफल करने के लिए संरक्षित है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 नवंबर को मुल्लापेरियार बांध मामले में विवाद के सभी बिंदुओं के अंतिम समाधान के लिए शीघ्र सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की थी। इसके बाद मामले को 10 दिसंबर तक के लिए पोस्ट कर दिया था।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि 10 दिसंबर को मामले की सुनवाई दो अन्य चल रहे आंशिक सुनवाई के मामलों में सुनवाई के पूरा होने के अधीन होगी।
केरल सरकार ने तमिलनाडु के सुझाव पर पर्यवेक्षी समिति द्वारा अपनाए गए नियम वक्र पर विवाद करते हुए एक हलफनामा दायर किया था। केरल ने यह भी कहा कि समस्या का दीर्घकालिक समाधान एक नया बांध बनाने के लिए मौजूदा बांध को बंद करना था।
तमिलनाडु राज्य ने केरल के तर्कों का खंडन करते हुए एक जवाबी हलफनामा दायर किया। इसने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बांध को "हाइड्रोलॉजिकल, संरचनात्मक और भूकंपीय रूप से सुरक्षित" पाया गया और समिति की देखरेख में इसे बार-बार मजबूत किया गया।
(मामले : डॉ. जो जोसेफ और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य (डब्ल्यूपी (सी) 2020 का नंबर 880)।