मेडिकल कॉलेज रिश्वत घोटालाः सुप्रीम कोर्ट ने CJAR पर लगे 25 लाख के जुर्माना को अदा करने में हुए विलंब को माफ किया

Update: 2021-01-20 06:39 GMT

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी शामिल थे, ने मेडिकल कॉलेज रिश्वत घोटाले में न्यायिक जवाबदेही और सुधार के लिए अभियान (CJAR) पर लगाए गए 25 लाख के जुर्माने, जिसमें उच्‍च न्यायलय के सेवानिवृत्त जज आईएम कुद्दुसी और अन्य शामिल थे, के भुगतान में देरी को माफ कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि CJAR ने घोटाले में एसआईटी जांच की मांग की थी और 2017 के जनहित याचिका दायरी की थी, ‌ जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था और जुर्माना लगाया था।

मामला

न्यायिक जवाबदेही और सुधार के लिए अभियान (CJAR) ने 2017 में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें आईएम कुद्दुसी और अन्य के खिलाफ मेडिकल कॉलेज रिश्वत घोटाले में कथित साजिश और रिश्वत के भुगतान की जांच के लिए भारत के एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। CBI ने आरोपी व्यक्तियों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 8 और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत गिरफ्तार किया था।

जनहित याचिका में मांग की गई थी कि सीबीआई को निर्देश दिए जाएं कि वह इस मामले में एकत्र सभी साक्ष्य और सामग्री नियुक्त एसआईटी को सौंपे।

उच्चतम न्यायालय की तीन जजों की पीठ, जिसमें जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एएम खानविल्कर शामिल थे, ने 01.12.2017 के आदेश के जर‌िए CJAR पर फालतू याचिका दायर करने पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए, CJAR को 6 सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) वेलफेयर एसोसिएशन में राशि को जमा करने का निर्देश दिया था।

जुर्माना लगाते समय, न्यायालय का ने कहा था कि याचिका न केवल पूर्णतया तुच्‍छ है, बल्कि अवमानना ​पूर्ण और अनुचित थी, जिसका उद्देश्य देश की उच्चतम न्यायिक प्रणाली को बिना किसी उचित आधार के अपमानित करना है।

जुर्माने के भुगतान में हो रहे विलंब की माफी के लिए आवेदन

CJAR ने सुप्रीम कोर्ट में जुर्माने के भुगतान में देरी के लिए माफी का आवेदन दायर किया था। आवेदन के अनुसार, CJAR ने कहा था कि नियत समय के भीतर भुगतान नहीं किया जा सकताा क्योंकि उसके पास बैंक खाता नहीं था और उसके सदस्यों द्वारा किए गए योगदान से उनका काम चल रहा है। यह भी कहा गया कि उन्होंने चंदे से कुल 11 लाख रुपए जुटाए हैं।

CJAR ने न्यायालय से जुर्माने के आदेश को वापस लेने की भी प्रार्थना की क्योंकि इससे संगठन के साथ जुड़े लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।

अदालत में जिरह

इस मामले की सुनवाई के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और प्रशांत भूषण CJAR की ओर से पेश हुए थे। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि संगठन जुर्माने पर विवाद नहीं करता है।

उन्होंने कहा, "हम लोगों का समूह सेवानिवृत्त न्यायाधीशों सहित बार के बहुत प्रतिष्ठित लोगों का समूह है। वे अपने नाम या किसी संगठन के तहत 30 साल से मुकदमा लड़ रहे हैं।" देरी की माफी की प्रार्थना (सी) का उल्लेख करते हुए धवन ने कहा, "मैं अनुकरणीय जुर्माने के आदेश को वापस लेने के संबंध में आपके समक्ष अपनी प्रार्थना रखना चाहता हूं।"

इस पर, अध‌िवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ से CJAR को एससीबीए को 25 लाख रुपए की राशि जमा करने का निर्देश देने की मांग की। पीठ ने, आवेदकों को बताया कि आज केवल आधिकारिक रिपोर्ट का निस्तारण किया जाएगा, जो 01.12.2017 के आदेशों के संदर्भ में जुर्माने के भुगतान में देरी से संबंधित है।

हालांकि, जब पीठ ने पूछा कि मामले में प्रतिवादी की ओर से कौन पेश हो रहा है, तो CJAR द्वारा सूचित किया गया कि चूंकि मामले में नोटिस जारी नहीं किया गया था, इसलिए यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ था।

इसलिए, पीठ ने आदेश दिया, "जुर्माना देने की गई देरी को माफ किया जाता है। आवेदक को गए अटॉर्नी जनरल के कार्यालय में एक अग्रिम प्रति पेशा करने अनुमति दी जाती है, जो 2017 की रिट पिटीशन (Crl) No 169 में पेश हुए थे।"

इस मामले पर अब दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी।

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