वैवाहिक बलात्कार: पत्नी के बलात्कार की शिकायत पर पति के खिलाफ धारा 376 के तहत आरोप तय, कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले खिलाफ पति की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया। हाईकोर्ट ने पत्नी की ओर से पति के खिलाफ दायर वैवाहिक बलात्कार के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
हाईकोर्ट ने पत्नी की शिकायत पर पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप तय करने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा था। सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सुनवाई की कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया।
याचिकाकर्ता-पति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने कहा कि सुनवाई 29 मई से शुरू हो रही है।
कैविएट पर पत्नी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने स्थगन का विरोध किया और पीठ को सूचित किया कि मुकदमे पर 5 साल से अधिक समय से रोक लगाई गई थी और पत्नी सुनवाई शुरू होने के लिए अनिश्चित काल से इंतजार कर रही थी।
"ध्यान दें, हमें मामले की सुनवाई करनी है", CJI ने जयसिंह से कहा। पीठ ने मामले को जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए पोस्ट किया।
हाईकोर्ट ने पति के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार वैवाहिक बलात्कार के अपवाद के कारण उसके खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि छूट असीमित नहीं हो सकती।
हाईकोर्ट ने कहा था,
"विद्वान वरिष्ठ वकील का तर्क है कि यदि पुरुष पति है, तो दूसरे व्यक्ति जैसा ही कार्य करने पर उसे छूट दी जाएगी। मेरे विचार में ऐसे तर्क का समर्थन नहीं किया जा सकता। एक आदमी,आदमी है; एक कृत्य, कृत्य है; बलात्कार बलात्कार है, वह पुरुष 'पति' ने किया हो या महिला 'पत्नी' ने किया हो।"
गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 375 से छूट 2 की संवैधानिकता पर हाईकोर्ट ने फैसला नहीं सुनाया है। यह भी याद किया जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में वैवाहिक बलात्कार से छूट के खिलाफ याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुरक्षित रखा है।
कोर्ट ने कहा,
"इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में इस प्रकार के हमले/बलात्कार करने पर पति की छूट असीमित नहीं हो सकती है, क्योंकि कानून में कोई भी छूट इतनी असीमित नहीं हो सकती है कि यह समाज के खिलाफ अपराध करने का लाइसेंस बन जाए।",
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार की छूट "प्रतिगामी" है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत के विपरीत है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,
"संविधान में समानता सभी कानूनों का स्रोत है, जबकि संहिता में ऐसा नहीं है। संहिता में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लिप्त हर पुरुष को दंडित किया जाता है लेकिन, जब आईपीसी की धारा 375 की बात आती है तो अपवाद आ जाता है। मेरे विचार से यह अभिव्यक्ति प्रगतिशील नहीं बल्कि प्रतिगामी है, जिसमें एक महिला को पति का अधीनस्थ माना जाता है, यह अवधारण समानता के खिलाफ है।"
कोर्ट ने कहा,
"अगर एक पुरुष, एक पति को आईपीसी की धारा 375 के आरोपों से छूट दी जा सकती है तो कानून के ऐसे प्रावधान से असमानता फैलती है। इसलिए, यह अनुच्छेद 14 में निहित प्रावधान के विपरीत होगा।"
पृष्ठभूमि
पत्नी ने पति के खिलाफ 21.03.2017 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। जिसके बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 506, 498ए, 323, 377 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो एक्ट) की धारा 10 के तहत दंडनीय अपराधों का मामला दर्ज किया गया।
पुलिस ने जांच के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। आरोप पत्र दाखिल करते समय, आईपीसी की धारा 498ए, 354, 376, 506 और पोक्सो एक्ट, 2012 की धारा 5(एम) और (एल) सहपठित धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों में आरोप तय किए गए।
विशेष अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 10.08.2018 को दिए आदेश के तहत आईपीसी की धारा 376, 498ए और 506 और पोक्सो एक्ट की धारा 5(एम) और (एल) सहपठित धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप तय किए, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उक्त प्रार्थनाओं के साथ इस कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
केस शीर्षक: ऋषिकेश साहू और कर्नाटक और अन्य राज्य | SLP (Crl) 4063/2022