मणिपुर हिंसा- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र राज्य को सड़क मार्ग में रुकावट के बीच लोगों को आवश्यक चीज़ों की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, एयर ड्रॉपिंग का सुझाव

Update: 2023-09-01 11:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत सरकार और मणिपुर राज्य सरकार को मणिपुर हिंसा से प्रभावित लोगों को भोजन, दवाएं और अन्य आवश्यक वस्तुओं जैसी बुनियादी आपूर्ति का वितरण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने लोगों तक राशन न पहुंचने देने वाली नाकाबंदी से निपटाने का भी निर्देश दिया और सरकार से ऐसा करने के लिए सभी विकल्प तलाशने का आग्रह किया, जिसमें लोगों के लिए एयर ड्राप से राशन पहुंचाने का विकल्प भी शामिल है।

मामले के मानवीय पहलुओं से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित न्यायाधीशों की समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने पीठ को दो मुद्दों की जानकारी दी।

पहला, मणिपुर के मोरेह क्षेत्र में नाकाबंदी, जिससे लोगों को बुनियादी राशन प्राप्त करने से रोका और दूसरा कुछ राहत शिविरों में खसरा और चिकनपॉक्स के प्रकोप के कारण मेडिकल सुविधाएं पहुंचाना।

सीजेआई ने अरोड़ा से पूछा कि समिति सीधे सरकार तक पहुंचने के बजाय अदालत के सामने क्यों पेश हो रही है। इसके बाद सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता को समिति में नियुक्त नोडल अधिकारियों का औपचारिक नोटिस भेजने का निर्देश दिया ताकि समिति सीधे सरकार तक पहुंच सके।

इस समय प्रतिवादियों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने हस्तक्षेप किया और कहा कि जब नाकेबंदी की बात आई तो समिति कुछ नहीं कर सकी। एसजी ने इसमें यह भी कहा कि यह समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा,

" मोरेह क्षेत्र में खाने का सामान नहीं है, समस्या नाकाबंदी है। समिति सशस्त्र बलों को नाकाबंदी हटाने का निर्देश नहीं दे सकती...अन्यथा हम खाने के सामान की आपूर्ति दे सकते हैं। "

सीजेआई ने कहा कि नाकाबंदी हटाना 'कहना ज्यादा आसान' है और यह एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है जिस पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि ये नाकाबंदी अक्सर स्थानीय व्यक्तियों या समूहों द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा कि सरकार को जमीनी हकीकत का मूल्यांकन करने के बाद स्थिति से निपटने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा-

" नाकाबंदी हटाना सशस्त्र बलों को ऐसा करने का निर्देश देने के बारे में नहीं है। संवेदनशील मुद्दे हैं। हम जो करेंगे वह यह है कि हम कहेंगे कि सरकार इस तथ्य से अवगत है और सरकार स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद उचित कदम उठाएगी क्योंकि नाकेबंदी भी लोगों ने ही की है। ''

एक अन्य वकील ने अदालत से इस बात पर ध्यान देने का आग्रह किया कि इस तरह की नाकाबंदी न केवल मोरेह बल्कि राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (जो दीमापुर (नागालैंड) से इंफाल तक है) सहित अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रही है। पीठ ने इसे ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया-

" हम भारत सरकार और मणिपुर सरकार को भोजन, दवा और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बुनियादी आपूर्ति वितरित करने का निर्देश देते हैं ताकि बुनियादी मानव सुविधाओं से कोई बाधाअ न हो। नाकाबंदी से कानून प्रवर्तन के तहत निपटा जाना है। हालांकि मामले के मानवीय पहलू पर विचार करते हुए सरकार को जरूरत पड़ने पर एयर ड्रॉपिंग समेत सभी विकल्प तलाशने चाहिए। अदालत को अगली सुनवाई में स्थिति सुधारने के लिए उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाएगा।' '

एसजी मेहता ने समिति की रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए थोड़े समय के स्थगन की मांग की। इसकी अनुमति दी गई और मामला 06.09.2023 को सूचीबद्ध किया गया।

अदालत के समक्ष वकीलों ने क्षेत्र से उत्पन्न अन्य मुद्दों को भी रेखांकित किया। उदाहरण के लिए सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने कहा कि राज्य में तोड़फोड़ की घटनाओं से संबंधित एक हस्तक्षेप आवेदन (आईए) दायर किया गया। पीठ ने आईए की एक प्रति एसजी को देने का निर्देश दिया ताकि वह मामले में मणिपुर राज्य से निर्देश ले सकें।

सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी राज्य में 602 चर्चों में तोड़फोड़ से संबंधित एक याचिका में पेश हुए। इस पर सीजेआई ने कहा-

" हमने समिति से स्कूलों, प्रार्थना स्थलों के मुद्दे पर भी विचार करने का अनुरोध किया था - ताकि बहाली हो सके...हमने 602 चर्चों के विनाश पर याचिका पर मिस्टर हुज़ेफ़ा अहमदी को सुना है। याचिका की प्रति मिस्टर राज बहादुर को दी जाएगी, जो एसजी को निर्देश दे रहे हैं। नोट समिति और राज्य सरकार को भेजा जाए ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। ''

पीठ ने कार्यवाही समाप्त करते हुए एसजी से पीड़ितों को मुआवजे के मुद्दे पर निर्देश लेने के लिए भी कहा और कहा कि पीठ अगली सुनवाई में निर्देश देगी कि मणिपुर मुआवजा योजना को NALSA योजना लाई जानी चाहिए।

सीजेआई ने कहा, " जब NALSA की योजना तैयार हो जाएगी तो इसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। "

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि सरकार को मुर्दाघरों में लावारिस पड़े शवों पर निर्णय लेना होगा क्योंकि इससे बीमारियां फैल सकती हैं। सीजेआई ने कहा- '' आखिरकार, शवों के साथ सम्मानजनक तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए। ''

इस मामले की सुनवाई अब 6 सितंबर, 2023 को होगी। इसमें पीठ समिति के निष्कर्षों पर विचार करेगी।

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