मणिपुर हिंसा | हाईकोर्ट के पास अनुसूचित जनजाति सूची के लिए जनजाति की सिफारिश करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की शक्ति नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-05-09 03:44 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि मणिपुर हाईकोर्ट के पास राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची के लिए जनजाति की सिफारिश करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ मणिपुर राज्य में चल रही अशांति से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान उक्त टिप्पणी की गई।

खंडपीठ दो याचिकाओं पर विचार कर रही थी- एक, मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली द्वारा दायर याचिका, जिसमें हिंसा की एसआईटी जांच और पीड़ितों के लिए राहत की मांग की गई; दूसरा, मणिपुर विधानसभा की पहाड़ी क्षेत्र समिति (HAC) के अध्यक्ष, डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दायर अन्य याचिका, इसमें मणिपुर हाईकोर्ट के उक्त निर्देश को चुनौती दी गई जिसमें कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने की सिफारिश को आगे बढ़ाया जाए।

गौरतलब है कि मेइती को एसटी दर्जे से जुड़े मुद्दे पर पिछले हफ्ते राज्य में दंगे भड़क गए थे।

गंगमेई की याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची के लिए जनजाति की सिफारिश करने का निर्देश देना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े इस मामले में मूल याचिकाकर्ता (हाईकोर्रट के समक्ष) की ओर से पेश हुए। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि हाईकोर्ट किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का निर्देश नहीं दे सकता।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता उन निर्णयों को हाईकोर्ट के संज्ञान में लाने के लिए बाध्य है।

सीजेआई ने हेगड़े से कहा,

"आपने हाईकोर्ट को कभी नहीं बताया कि उसके पास यह शक्ति नहीं है- यह राष्ट्रपति की शक्ति है।"

सीजेआई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकारें या अदालतें या न्यायाधिकरण या कोई अन्य प्राधिकरण अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित या बदल नहीं सकते हैं।

मणिपुर हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ में एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने अपने विवादित आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि राज्य अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने की सिफारिश करने पर विचार करेगा। उक्त आदेश मणिपुर में चल रही मौजूदा अशांति के केंद्र में है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खंडपीठ को सूचित किया कि मणिपुर राज्य उस संबंध में सक्षम फोरम में जाकर उक्त आदेश के संबंध में उचित कदम उठा रहा है।

गंगमेई द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि इस आदेश के परिणामस्वरूप मणिपुर में अशांति फैल गई है, जिसके कारण 19 लोगों की मौत हुई है।

याचिका के अनुसार,

"आदेशित आदेश के कारण दोनों समुदायों के बीच तनाव हुआ और राज्य भर में हिंसक झड़पें हुईं। इसके परिणामस्वरूप अब तक 19 आदिवासी मारे गए हैं, राज्यों में विभिन्न स्थानों को अवरुद्ध कर दिया गया है, इंटरनेट पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और अधिक लोगों को अपनी जान गंवाने का खतरा है।"

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