(स्वत: जमानत) मद्रास हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के लिमिटेशन विस्तार आदेश के सीआरपीसी की धारा 167(2) पर लागू होने या न होने को लेकर प्रामाणिक निर्णय के लिए खंडपीठ गठित की

Update: 2020-05-14 05:10 GMT

 Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ए पी शाही ने एक खंडपीठ का गठन किया है जो इस विवादित मसले पर विचार करेगी कि लॉकडाउन अवधि के दौरान समय सीमा के विस्तार के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के 23 मार्च का आदेश स्वत: जमानत (डिफॉल्ट बेल) संबंधी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167(2) के तहत पुलिस जांच पर लागू होगा या नहीं।

मद्रास हाईकोर्ट के दो एकल पीठों के परस्पर विरोधी मतों के मद्देनजर यह रेफरेंस (संदर्भ) लाया गया है।

गत आठ मई को 'सेतु बनाम सरकार' मामले में निर्णय सुनाते हुए न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत आदेश मामले दर्ज करने से संबंधित समय सीमा पर ही लागू होगा।

न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का संबंधित आदेश सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत जांच पूरी करने के लिए निर्धारित समय सीमा के लिए लागू नहीं है। इसलिए, यह व्यवस्था दी गयी कि धारा 167(2) के तहत निर्धारित 60/90 दिनों की अनिवार्य अवधि समाप्त हो जाने के बाद अभियुक्त डिफॉल्ट जमानत का हकदार है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी 'विवेक शर्मा बनाम उत्तराखंड सरकार' मामले में इसी तरह का एक आदेश जारी किया था। न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने कहा था कि समय सीमा बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का यह मतलब नहीं कि उसने (सुप्रीम कोर्ट ने) सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत पुलिस जांच के लिए निधारित 60/90 दिनों की समय सीमा बढ़ा दी है।

हालांकि, मद्रास हाईकोर्ट के ही न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन ने 'एस कासी बनाम सरकार (पुलिस निरीक्षक के जरिये)' के मामले में उलट निर्णय दिया है। उन्होंने कहा कि समय सीमा से संबंधित सुप्रीम कोर्ट का आदेश जांच की अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के मामले में लागू न करना शीर्ष अदालत के आदेश का मजाक उड़ाने के समान है।

न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने कहा था कि। COVID-19 की वजह से उत्पन्न असाधारण स्थिति को ध्यान में रखते हुए सीआरपीसी की धारा 167 के तहत जांच की समय सीमा भी बढ़ जाएगी।

इसके बाद न्यायमूर्ति शाही ने अपने रेफरेंस में कहा,

"दो अलग-अलग आदेशों में दो परस्पर विरोधी मत सामने आये हैं और मेरा मानना है कि चूंकि अधीनस्थ अदालतों या खुद इस कोर्ट द्वारा जारी किये जाने वाले जमानत आदेशों पर इन आदेशों का सीधा असर होगा, इसलिए इस मसले का निर्धारण प्रामाणिक निर्णय द्वारा किया जाना चाहिए।"

इस मामले का निर्धारण हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ करेगी।

इस रेफरेंस के तहत जिन सवालों का निर्धारण करना है, वे हैं :-

"क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान वाली रिट याचिका (सिविल) संख्या 3/2020 में 23 मार्च, 2020 और 6 मई, 2020 को जारी ओदश सीआरपीसी की धारा 167(2) से जुड़े मामलों पर भी लागू होगा और 'सेतु मामला' और 'कासी मामला' में दो अलग-अलग न्यायाधीशों द्वारा दिये गये परस्पर विरोधी निर्णयों में से कौन सा निर्णय कानून-सम्मत है?"

आदेश की प्रति डाउनलोड  करने के लिए यहां क्लिक करें



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