निज़ामुद्दीन में धार्मिक मण्डली में भाग लेकर राज्य में आने वालों की पहचान हो : कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कोरोनावायरस के प्रसार से बचने के लिए 21 दिनों की लॉकडाउन अवधि के दौरान राज्य सरकार को तुरंत कार्रवाई करना होगी और किसानों की मदद करनी होगी। राज्य सरकार को निज़ामुद्दीन में धार्मिक मण्डली में भाग लेने के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों का तुरंत पता लगाने और और उन्हें क्वारंटीन करने के लिए भी निर्देशित किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई की, जिसमें पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) द्वारा दायर एक आवेदन शामिल है, जिसमें ग्रामीण इलाकों में संकट के बारे में विभिन्न राहतें मांगी गई हैं। आवेदन में दावा किया गया है कि किसानों द्वारा अपनी उपज बेचने में असमर्थता के कारण, वे उपज को फेंकने के लिए मजबूर हैं।
इस पर पीठ ने कहा,
"हम राज्य सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह तुरंत कार्रवाई करेगी और किसान समुदाय की मदद करेगी ताकि कृषि कार्यों और कृषि / बागवानी उत्पादों के सुचारू संचालन और बिक्री से किसानों को न केवल मदद मिल सके, बल्कि राज्य में नागरिकों को कृषि / बागवानी उत्पादों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में भी इससे मदद मिले।"
27 मार्च को गृह मंत्रालय के आदेश (लॉकडाउन ऑर्डर) के अनुसार, 24 मार्च के आदेश में कुछ अपवादों को जोड़ा गया जिसमें खेती के संचालन की अनुमति के साथ-साथ MST परिचालनों सहित कृषि उपज विपणन समितियों के कार्यालयों को खुला रखने की अनुमति दी गई है। यहां तक कि कृषि उपज विपणन समिति द्वारा संचालित मंडियों (बाजारों) को खुला रखने की अनुमति भी दी गई है। साथ ही
उर्वरकों, कीटनाशकों और बीजों की विनिर्माण और पैकेजिंग इकाइयों को खुला रखने की अनुमति है। संयुक्त हार्वेस्टर और अन्य बागवानी / कृषि औजार जैसी च बुवाई से संबंधित मशीनों के लिए अंतर- शहर और अंतर- राज्यीय परिवहन की अनुमति दी गई है।
हालांकि, PUCL ने दावा किया कि यद्यपि राज्य सरकार ने पुलिस को सलाह दी है कि कृषि / बाग़वानी उत्पादों को ले जाने वाले वाहनों को गुजरने की अनुमति दी जाए, लेकिन उक्त सलाह को लागू नहीं किया जा रहा है। अदालत ने कहा, कि राज्य सरकार को 27 मार्च को लागू किए गए संशोधन को प्रभावी करने के लिए सभी संभव कदम उठाने चाहिए।
इसके अलावा गिरीश भारद्वाज और गीता मिश्रा द्वारा दिल्ली के निजामुद्दीन में धार्मिक मण्डली में भाग लेने वाले और कर्नाटक राज्य में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के संबंध में दो आवेदन अदालत में पेश किए गए।
अदालत ने कहा
"राज्य सरकार केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के संबंधित अधिकारियों से डेटा प्राप्त करने के लिए सभी प्रयास करेगी और कर्नाटक राज्य में उन व्यक्तियों का पता लगाने और उन्हें क्वारंटीन करने व आगे कदम कार्रवाई करने के लिए तत्काल कदम उठाएगी।"
पीठ ने राज्य सरकार को 24 मार्च को दिए गए आदेश के खंड (9) के कार्यान्वयन के लिए किए गए उपायों को स्थापित करने, तालाबंदी अवधि के दौरान सभी धार्मिक मण्डलों पर पूर्ण प्रतिबंध के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने का भी निर्देश दिया है।
इसके अलावा, अदालत ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि वे या तो स्वंय या अपने वालेंटियरों के माध्यम से
संबंधित जिलों के विभिन्न हिस्सों में कुछ शिविरों का दौरा करें और प्रवासी कामगारों के लिए बुनियादी सुविधाओं और सुविधाओं के संदर्भ में उक्त शिविरों की स्थिति का पता लगाएं। ये आदेश राज्य सरकार द्वारा सक्रिय राहत शिविरों और आश्रय स्थलों, रखे गए व्यक्तियों की संख्या, भोजन शिविरों की संख्या और भोजन करने वाले लोगों की संख्या और नियोक्ता / उद्योगों द्वारा प्रदान किए जाने वाले कामगारों की रिपोर्ट देने के बाद दिया गया।
PUCL ने अपने आवेदन में दावा किया है कि 10718 प्रवासी श्रमिकों को राशन नहीं मिला है। जिस पर अदालत ने कहा कि राज्य को उक्त प्रवासी श्रमिकों द्वारा की गई शिकायतों से निपटने में सक्षम बनाने के लिए, PUCL राज्य को आवश्यक सत्यापन करने और कार्रवाही करने के लिए इनका ब्योरा दे।
अदालत ने सैयद सुहैल अली शुट्टारी द्वारा दायर एक याचिका की भी अनुमति दी, जिसने शिकायत की थी कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान, पुलिस नागरिकों को डॉक्टरों से संपर्क करने या किराने की खरीद के लिए अथवा दूध, दवाइयों आदि के लिए नागरिकों को दो पहिया या चार पहिया वाहनों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दे रही है।
राज्य ने स्पष्ट किया कि लॉकडाउन के उचित कार्यान्वयन के लिए पुलिस द्वारा निर्देश जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि
"यदि कोई नागरिक अपने दो पहिया या चार पहिया वाहन का उपयोग चिकित्सा सहायता लेने के लिए या किराने, दवाइयों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए कर रहा है, यदि वह पुलिस को खुलासा करता है कि वह उस विशिष्ट वस्तु के लिए वाहन का उपयोग कर रहा है, पुलिस उस सीमित उद्देश्य के लिए मना नहीं कर रही है। "
अदालत ने वर्तमान लॉकडाउन के दौरान पालतू जानवरों की स्थिति और दुर्दशा का मुद्दा उठाते हुए PUCL द्वारा दायर एक अन्य आवेदन की भी अनुमति दी। यह बताया गया कि पालतू जानवरों की दुकानों में फंसे जानवरों को भोजन, पानी इत्यादि के बिना पीड़ित होने और मरने की संभावना है, इसलिए, राज्य पशु कल्याण बोर्ड को अन्य NGO की मदद से जानवरों को निकालने के लिए एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए, जिसका नेतृत्व जिलाधिकारी करते हैं।
पीठ ने जिला मजिस्ट्रेटों और जिला प्रशासन को राज्य पशु कल्याण बोर्ड के साथ समन्वय करने और दुकानों में बंद जानवरों की स्थिति का पता लगाने के लिए राज्य भर में सभी पालतू जानवरों की दुकानों को खोलने की तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया। जब तक राज्य सरकार पालतू पशुओं की दुकानों को खुली रखने की अनुमति नहीं देती है, तब तक जिला मजिस्ट्रेट और पशु कल्याण बोर्ड यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे जानवरों की उचित देखभाल के लिए भोजन, पानी, दवाइयां इत्यादि उपलब्ध कराए जाएं। राज्य सरकार पालतू जानवरों की दुकानों को खोलने पर विचार करे ताकि पालतू जानवरों को भोजन और दवाइयां उपलब्ध कराई जा सकें।
साथ ही आवारा पशुओं के संबंध में अदालत ने कहा कि प्राधिकरण को गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को उपयुक्त पास देने पर विचार करना चाहिए जो पूरे राज्य में आवारा जानवरों को खाना खिलाने का काम कर रहे हों।
पीठ ने केंद्र सरकार को आवारा पशुओं और पालतू जानवरों के संबंध में PUCL द्वारा उठाए गए मुद्दे पर विचार करने का निर्देश दिया है और ये विचार करने को कहा है कि क्या लॉकडाउन के 24 मार्च के आदेश में किसी भी तरह के संशोधन की आवश्यकता है।
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