मासिक अवकाश विवाद: कर्नाटक हाईकोर्ट जनवरी 2026 में करेगा याचिकाओं पर सुनवाई, कहा- मामला सार्वजनिक महत्व का

Update: 2025-12-10 07:09 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा सभी पंजीकृत औद्योगिक प्रतिष्ठानों में महिलाओं को सवेतन मासिक धर्म अवकाश (मेनस्ट्रुअल लीव) देने संबंधी आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई जनवरी 2026 में करने का फैसला किया।

अदालत ने बुधवार (10 दिसंबर) को कहा कि यह विषय सार्वजनिक महत्व का है और इस पर विस्तृत सुनवाई आवश्यक है।अगली सुनवाई की तारीख 20 जनवरी, 2026 तय की गई।

यह मामला जस्टिस ज्योति एम की पीठ के समक्ष सुनवाई में है। इससे पहले मंगलवार को अदालत ने राज्य सरकार की अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी थी लेकिन कुछ ही घंटों बाद आदेश को वापस ले लिया गया।

राज्य के एडवोकेट जरनल शशि किरण शेट्टी ने अदालत में पेश होकर कहा कि अंतरिम आदेश सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय के विपरीत है तथा वह स्वयं अगली सुनवाई में अंतरिम राहत पर अपना पक्ष रखेंगे।

दरअसल बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन और एवीराटा एएफएल कनेक्टिविटी सिस्टम्स लिमिटेड ने 20 नवंबर को जारी उस सरकारी अधिसूचना को चुनौती दी, जिसमें विभिन्न श्रम कानूनों के तहत पंजीकृत औद्योगिक प्रतिष्ठानों को सभी महिला कर्मचारियों स्थायी, संविदा और आउटसोर्स को प्रतिमाह एक दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश देने का निर्देश दिया गया।

बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने याचिका पर अपनी आपत्तियां दाखिल कर दी हैं।

अदालत ने पूछा कि क्या यह अधिसूचना सभी क्षेत्रों पर लागू होगी जिस पर एडवोकेट जनरल शेट्टी ने जवाब दिया कि यह सभी पर लागू है। वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि यह अधिसूचना केवल पांच प्रकार के प्रतिष्ठानों से संबंधित है।

एडवोकेट जरनल ने संविधान के अनुच्छेद 42 का हवाला देते हुए कहा कि यह न्यायसंगत और मानवीय कार्य परिस्थितियों तथा मातृत्व राहत के प्रावधान से जुड़ा है। साथ ही उन्होंने अनुच्छेद 15(3) और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लेख किया, जिनमें राज्यों को महिलाओं के लिए ऐसे कल्याणकारी कदम उठाने का निर्देश दिया गया।

शेट्टी ने कहा कि हमारी विधानसभा प्रगतिशील है। दुनिया के कई देशों में ऐसा अवकाश उपलब्ध है। इस विषय पर विधि आयोग ने भी विचार किया है और अधिसूचना जारी करने से पहले सभी हितधारकों की बात सुनी गई।

अदालत ने इस स्तर पर कहा कि दोनों पक्षों की दलीलें सुनना जरूरी है और याचिकाकर्ताओं को सरकार की आपत्तियों पर प्रत्युत्तर दाखिल करने का अवसर दिया गया।

याचिकाकर्ता पक्ष ने आग्रह किया कि अंतरिम अवधि में सरकार अधिसूचना को लागू न करे, लेकिन महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि हम इसे पूरी तरह लागू करेंगे।

अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सार्वजनिक महत्व का मामला है और शीतकालीन अवकाश के बाद इस पर सुनवाई होगी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत बी.के. ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार की शक्ति पर आपत्ति नहीं है, लेकिन इस बात पर आपत्ति है कि बिना किसी विधायी प्रावधान के केवल कार्यकारी आदेश से मासिक धर्म अवकाश लागू किया जा रहा है।

उनके अनुसार विभिन्न श्रम कानूनों और मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर्स के तहत पहले से ही अवकाश का व्यापक ढांचा मौजूद है जिसमें फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 समेत अन्य कानूनों के तहत भुगतानयुक्त छुट्टियों की व्यवस्था की गई। सामान्यतः वार्षिक अवकाश 12 दिन तक सीमित है। ऐसे में किसी विशेष कानून के अभाव में सरकार के पास कार्यकारी आदेश से नया अवकाश अनिवार्य करने का अधिकार नहीं है।

याचिका में यह भी कहा गया कि एसोसिएशन के लगभग 1540 सक्रिय सदस्य प्रतिष्ठान हैं जिनके हितों की रक्षा के लिए यह याचिका दायर की गई।

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मौजूदा कानून कर्मचारियों के स्वास्थ्य कल्याण और कार्य परिस्थितियों को पर्याप्त रूप से विनियमित करते हैं, इसलिए राज्य सरकार की अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और अल्ट्रा वायर्स है।

अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (AICCTU) और अन्य पक्षों ने मामले में हस्तक्षेप की अर्जी दाखिल की है। इस पर याचिकाकर्ताओं को आपत्ति दाखिल करने के लिए समय दिया गया।

अब इस अहम और बहुचर्चित मामले पर विस्तृत सुनवाई 20 जनवरी 2026 को होगी, जिसमें मासिक धर्म अवकाश को कार्यकारी आदेश के जरिए लागू किए जाने की वैधता पर फैसला लिया जाएगा।

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