कर्नाटक सरकार ने कहा कि 'रोहिंग्याओं को निर्वासित करने की कोई योजना नहीं': सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा फाइल किया
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कर्नाटक सरकार ने रोहिंग्याओं को निर्वासित करने की अपनी योजना से संबंधित एक नया हलफनामा दायर किया। इस हलफनामे में राज्य सरकार ने अपने पहले के रुख को संशोधित करते हुए कहा कि वह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किसी भी आदेश का पालन करेगी। इससे पहले राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उसकी राज्य में रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने की कोई योजना नहीं है।
हलफनामे में कहा गया कि राज्य में 126 रोहिंग्याओं की पहचान की गई है। कर्नाटक राज्य पुलिस ने रोहिंग्याओं को अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी शिविर या हिरासत केंद्र में नहीं रखा है। पिछले हलफनामे में यह संख्या 72 बताई गई थी।
पहले हलफनामे में कहा गया था,
"बेंगलुरु शहर में पहचाने गए 72 रोहिंग्या विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और बेंगलुरु सिटी पुलिस ने अभी तक उनके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की है। उन्हें निर्वासित करने की भी कोई योजना नहीं है।"
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक रिट याचिका में कर्नाटक राज्य द्वारा दायर एक जवाबी हलफनामे के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसमें एक वर्ष के भीतर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं सहित सभी अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों को तत्काल निर्वासित करने की मांग की गई।
सरकार के गृह विभाग बेंगलुरु के सचिव के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया कि रिट याचिका में उनके खिलाफ आरोपों का कोई विशेष आधार नहीं है। इस प्रतिवादी के खिलाफ किसी राहत का दावा नहीं किया गया। राज्य ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो भी आदेश पारित किया गगया उसका पालन करने का संकल्प लिया है।
अधिवक्ता वीएन रघुपति के माध्यम से दायर नए जवाबी हलफनामे में कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में रह रहे 126 रोहिंग्या शरणार्थियों का विवरण दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य वाली रिट याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को रोहिंग्या शरणार्थियों सहित सभी अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है। इसके लिए सरकारी अधिकारियों को संबंधित कानूनों में संशोधन करने के लिए निर्देश दिए जाने की भी मांग की गई। अवैध प्रवास और घुसपैठ, एक संज्ञेय गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध; जाली/बनाए गए पैन कार्ड, आधार कार्ड और ऐसे अन्य दस्तावेजों को बनाने को गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध घोषित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए जाने की भी मांग की गई।
जस्टिस सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने मार्च 2021 में उक्त मामले पर नोटिस जारी किया था।
केस शीर्षक: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य