केवल जीवन पर खतरे की रिपोर्ट के चलते एक किशोर (Juvenile) को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2020-08-03 03:45 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते (27 जुलाई) सुनाये एक जमानत आदेश में एक किशोर (Juvenile) की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए यह कहा कि निचली अदालतों द्वारा याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने से इंकार करते हुए दिया गया कारण उचित नहीं था।

दरअसल, निचली अदालतों ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया था कि यदि किशोर को जमानत पर रिहा किया जाता है तो हत्या कर दिए गए व्यक्ति के परिवार के सदस्यों के हाथों उसको (किशोर को) शारीरिक खतरा पहुंचाए जाने का अंदेशा है और किशोर/याचिकाकर्ता के दृष्टिकोण से यह न्यायोचित नहीं होगा।

दरअसल न्यायमूर्ति जी. एस. संधावालिया की एकल पीठ के समक्ष वर्तमान आपराधिक रिवीजन याचिका, याचिकाकर्ता ने अपनी मां के माध्यम से दायर की थी।

इस यचिका में, प्रधान न्यायाधीश, किशोर न्याय बोर्ड,मनसा द्वारा 16-12-2019 को पारित आदेश को चुनौती दी गयी थी। दरअसल, उसे धारा 302 और 34 आईपीसी के तहत दिनांक 24-11-2019 को पुलिस स्टेशन सिटी 1, जिला मानसा में दर्ज की गई एफआईआर संख्या 200 में जमानत का लाभ नहीं प्राप्त हुआ था।

इसी याचिका में, बाल न्यायालय (सत्र न्यायाधीश), मनसा द्वारा दिनांक 7-2-2020 को पारित आदेश को भी चुनौती भी दी गई थी, जिसके तहत सत्र न्यायाधीश द्वारा, याचिकाकर्ता द्वारा 16-12-2019 के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था।

क्या था यह मामला?

मृतक जसप्रीत सिंह @ घाघरा के पिता सूरत सिंह द्वारा एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी, जिसमे यह बताया गया था कि विवाद इस तथ्य के कारण उत्पन्न हुआ था कि मृतक के भाई ने राजू कौर के साथ प्रेम विवाह किया था जिससे एक बच्चा पैदा हुआ था।

राजू कौर का परिवार इस तथ्य से सामंजस्य नहीं बना सका और उसके भाई, मृतक और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को लगातार धमका रहे थे। मौजूदा याचिकाकर्ता ने मृतक को इस बहाने अपने घर पर बुलाया था कि वे उक्त संबंध के बारे में कुछ चर्चा करना चाहते हैं और उसके बाद वह 23-11-2019 की शाम (समय लगभग 6:00) के बाद से लापता हो गया था।

दिनांक 24-11-2019 की सुबह, गुरजीत सिंह और जशन सिंह ने शिकायतकर्ता (मृतक जसप्रीत सिंह @ घाघरा के पिता सूरत सिंह) से मुलाकात की थी और उन्हें बताया था कि उन्होंने उसके बेटे को आग लगाकर उसकी हत्या कर दी थी।

तत्पश्चात उस स्थान की खोज करके, जहाँ मृतक को अंतिम बार देखा गया था, वह मृत पाया गया था और उसका शरीर आधा जला हुआ था और उसके मुंह और उसकी बाहों पर कपड़ा बंधा हुआ था। इसके परिणामस्वरूप तीन व्यक्तियों को अभियुक्त के रूप में नामित किया गया था जिसमें याचिकाकर्ता भी शामिल था।

निचली अदालत का मत

निचली अदालतों द्वारा याचिकाकर्ता-किशोर को जमानत पर रिहा न किये जाने के लिए दिया गया प्रमुख तर्क यह था कि यदि याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है तो हत्या कर दिए गए व्यक्ति के परिवार के सदस्यों के हाथों उसको (किशोर को) शारीरिक खतरा पहुंचाए जाने का अंदेशा है और किशोर/याचिकाकर्ता के दृष्टिकोण से ऐसा करना न्यायोचित नहीं होगा।

निचली अदालतों ने मूल रूप से किशोर की सामाजिक पृष्ठभूमि की रिपोर्ट पर भरोसा किया था, जिसे बाल कल्याण पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसमें यह देखा गया था कि विधि के साथ संघर्षरत किशोर (Child in conflict with law) को यदि रिहा कर दिया गया तो उसका जीवन खतरे में होगा।

दरअसल, किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 12 के तहत अपवाद प्रदान किये गये हैं जब एक किशोर को रिहा नहीं किया जाना है। ये अपवाद हैं,

(i) जब यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार प्रतीत होते हैं कि उसके ऐसे छोड़े जाने से यह संभाव्य है कि उसका संसर्ग किसी ज्ञात अपराधी से होगा;

(ii) वह नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक रूप से खतरे में पड़ जायेगा; और

(iii) या उसके छोड़े जाने से न्याय के उद्देश्य विफल हो जायेंगे।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर गौर किया कि यह स्पष्ट है कि निचली अदालतों का तर्क (कि किशोर को जमानत पर रिहा न किया जाए) इस तथ्य के कारण है कि चूँकि विवाद परिवारों के बीच है और यह विवाद हॉनर किलिंग से उत्पन्न हुआ है, तो किशोर शारीरिक रूप से खतरे में पड़ जायेगा।

आवेदक द्वारा दिए गए तर्क

आवेदक के लिए हाईकोर्ट में पेश अधिवक्ता ने यह प्रस्तुत किया कि किशोर की आयु प्राथमिकी के पंजीकरण की तारीख को 16 वर्ष 1 माह और 8 दिन थी और वह कम आयु का है।

यह आगे प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को बाल अवलोकन गृह, फरीदकोट में रखा गया है और वह जमानत पर छूटने का हकदार है क्योंकि 2015 अधिनियम कानून का एक लाभकारी कानून है।

आगे यह भी तर्क दिया गया कि किशोर के खिलाफ कोई अन्य मामला नहीं है और अधिवक्ता ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 के प्रावधानों पर भरोसा करते हुए प्रस्तुत किया कि केवल असाधारण परिस्थितियों में जमानत से इनकार किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट का मत

अदालत ने इस बात को रेखांकित किया कि जाहिर है, याचिकाकर्ता-किशोर की उम्र कम है पर केवल शिकायतकर्ता की तरफ से धमकी के कारण, यह इस तरह उचित नहीं होगा कि उसे इस पहलू के चलते जुवेनाइल होम में हिरासत में रखा जाना चाहिए।

अदालत ने देखा कि यह तय सिद्धांत है कि किशोर को जमानत देना एक नियम है और उसका कोई आपराधिक आधार नहीं है क्योंकि यह दर्ज नहीं किया गया है कि याचिकाकर्ता का कोई भी आपराधिक मामला है या उसके माता-पिता भी असंगत गतिविधियों में शामिल हैं। इस प्रकार, यह न्याय के हित में है कि याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के साथ रहे, क्योंकि वह कम आयु का है।

अदालत ने मुख्य रूप से देखा कि,

"अगर वह जमानत पर रिहा नहीं किया जाता है, तो वह केवल अन्य बच्चों के संपर्क में होगा, जिन्होंने अलग-अलग अपराध किए हैं। अगर याचिकाकर्ता को मामले के परिक्षण (Trial) के लंबित रहते जुवेनाइल होम में रखा जाता है तो यह न्यायोचित नहीं होगा।"

आगे अदालत ने कहा कि

"यदि किशोर के जीवन के लिए कोई खतरा है, तो यह उसके परिवार के लिए है कि वे अपने साधन के जरिये राज्य से संपर्क करें ताकि आवेदक को खतरे की धारणा से बचाया जा सके और यह न्याय के हित में होगा कि वह जुवेनाइल होम के बजाय अपने माता-पिता की देखरेख में रहे।"

अदालत ने अत में यह स्पष्ट रूप से देखा कि वर्तमान रिवीजन याचिका को अनुमति दी जानी चाहिए और 16-12-2019 और 7-2-2020 को निचली अदालतों द्वारा पारित आदेशों को रद्द किया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता को रिहा किया जाना चाहिए।

मामले का विवरण:

केस नं: CRR No. 665 of 2020

केस शीर्षक: X बनाम पंजाब राज्य

कोरम: न्यायमूर्ति जी. एस. संधावालिया 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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