देवता के विश्राम काल में 'विशेष पूजा' पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, अमीर श्रद्धालुओं को दी जा रही तरजीह पर उठाया सवाल

Update: 2025-12-15 10:25 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मंदिरों में पैसे देकर कराई जाने वाली विशेष पूजा की प्रथा पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इससे देवता के विश्राम काल में बाधा उत्पन्न होती है। यह परंपरा के विरुद्ध है। अदालत ने विशेष रूप से इस बात पर आपत्ति जताई कि मंदिर बंद होने के बाद या देवता के विश्राम समय में केवल धनवान श्रद्धालुओं को विशेष पूजा की अनुमति दी जाती है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की पीठ वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर से जुड़ी रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में मुख्य रूप से मंदिर के दर्शन समय में किए गए बदलाव और देहरी पूजा जैसी कुछ आवश्यक धार्मिक परंपराओं को रोके जाने को चुनौती दी गई। इससे पहले अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की निगरानी में दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने दर्शन समय में बदलाव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ये समय-सीमाएं केवल प्रशासनिक व्यवस्था नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं और धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा हैं। उन्होंने दलील दी कि दर्शन समय में बदलाव से मंदिर के आंतरिक अनुष्ठानों पर भी असर पड़ा है, जिसमें देवता के जागने और विश्राम का समय भी शामिल है।

इस दौरान, चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने व्यापक टिप्पणी करते हुए कहा कि कई स्थानों पर मंदिर दोपहर में बंद होने के बाद भी देवता को विश्राम का अवसर नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि देवता का हर तरह से शोषण किया जा रहा है और जो लोग भारी रकम अदा कर सकते हैं। उन्हें विशेष पूजा की अनुमति दे दी जाती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि देवता के विश्राम का समय अत्यंत पवित्र है और उसमें किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जानी चाहिए।

इस पर सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने अदालत की इस चिंता से सहमति जताते हुए कहा कि देवता का विश्राम काल अत्यंत महत्वपूर्ण है और दर्शन व पूजा के समय को पवित्र मानकर सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले में इस प्रकार की किसी विशेष पूजा को लेकर कोई ठोस शिकायत नहीं है। हालांकि अदालत द्वारा जताई गई आशंका सही है। इसे अलग से संबोधित किया जा सकता है।

दीवान ने यह भी कहा कि पूजा और दर्शन के समय को केवल प्रशासनिक विषय के रूप में नहीं देखा जा सकता, क्योंकि वे परंपरा और आस्था से गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने चीफ जस्टिस की इस टिप्पणी का समर्थन किया कि देवता के विश्राम समय में किसी को भी विशेष या विशेषाधिकार प्राप्त दर्शन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति को नोटिस जारी किया जाए और मामले को जनवरी के पहले सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।

गौरतलब है कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 के तहत गठित समिति के संचालन पर रोक लगाते हुए मंदिर के दैनिक संचालन और निगरानी के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अशोक कुमार की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया। अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को लेकर चुनौती अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है और उसके निर्णय तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ही मंदिर का प्रबंधन देख रही है।

वर्तमान याचिका मंदिर की प्रबंधन समिति की ओर से गोपेश गोस्वामी और रजत गोस्वामी द्वारा दायर की गई, जिसे एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तन्वी दुबे के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।

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