'यह बैक डोर एंट्री (पीछे का रास्ता) प्रदान करती है': सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे कर्मचारियों की LARSGESS स्कीम की समाप्ति को मंजूरी दी

Update: 2021-02-02 05:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे कर्मचारियों की, सुरक्षा कर्मचारियों के लिए गारंटीकृत रोजगार के लिए उदार सक्रिय सेवानिवृत्ति (LARSGESS) योजना की समाप्ति को बरकरार रखा है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने रेलवे की सेवा में बैक डोर एंट्री के प्रदान करने के लिए दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। अदालत ने इस प्रकार इस योजना के तहत नियुक्ति की मांग करने वाले कुछ व्यक्तियों द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया।

LARSGESS योजना वर्ष 2004 में शुरू की गई और वर्ष 2010 में संशोधित ने रेलवे के कुछ कर्मचारियों (सुरक्षा, ड्राइवर, गैंगमैन, आदि से संबंधित नौकरियों) को 55-57 के आयु वर्ग तक पहुंचने के बाद या 33 साल की पूर्ण योग्यता सेवा करने वालों को 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' प्राप्त करने में सक्षम बनाया। इसके साथ ही वे अपने वार्ड (बच्चों) की नियुक्ति की तलाश कर सकते हैं।

साल 2017 में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने देखा कि इस योजना ने संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 की आवश्यकता के अनुरूप प्रतिस्पर्धी चयन किए बिना सेवा देने वाले कर्मचारियों के कुछ वार्डों में प्रवेश के लिए सेवा प्रदान की थी। यह योजना रेलवे द्वारा सार्वजनिक नियोजन में बैक-डोर (पीछे के रास्ते से) प्रविष्टियां करने और सार्वजनिक रोजगार में समानता के खिलाफ है। उच्च न्यायालय ने सरकार को इस योजना पर फिर से ध्यान देने (गौर करने) का निर्देश दिया था।

5 मार्च 2019 को, भारत सरकार ने इस योजना को समाप्त कर दिया, जब सुप्रीम कोर्ट के ( पंजाब और हरियाण हाईकोर्ट फैसले के खिलाफ SLP पर विचार करते हुए) ने इस संबंध में निर्णय लेने का निर्देश दिया।

रिट याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि वे इस तरह की योजना के तहत निहित अधिकार या वैध उम्मीद का दावा नहीं कर सकते हैं।

आगे कहा कि,

"इस योजना को समाप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक सचेत निर्णय लिया गया है। यह न्यायालय के आदेश में 6 मार्च, 2019 को देखा गया है। 5 मार्च 2019 को यह निर्णय लेते हुए भारत सरकार ने कहा था कि जहां वार्डों ने 27 अक्टूबर 2017 (योजना को समाप्त करने की तारीख) से पहले सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं और उन्हें फिट पाया गया था। क्योंकि यह मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन था। आगे के निर्देश, कोर्ट के आदेश के अनुसार लागू किए जाएंगे। उपरोक्त निर्णय को सूचित करते हुए न्यायालय ने 6 मार्च, 2019 के अपने आदेश में विशेष रूप से यह देखा कि चूंकि यह योजना समाप्त हो चुकी है और अब अस्तित्व में नहीं है, इसलिए इस मामले में कुछ और किए जाने की आवश्यकता नहीं है। यह योजना रेलवे की सेवा में बैक डोर (पीछे के रास्ते से) प्रवेश प्रदान करता है। यह योजना संविधान के अनुच्छेद 16 के खिलाफ होगा। केंद्र सरकार ने इस योजना को औचित्य के साथ बंद कर दिया है। याचिकाकर्ता इस तरह की स्कीम के तहत न तो निहित अधिकार और न ही वैध अपेक्षा का दावा करें। योजना पर आधारित सभी दावों को अब बंद किया जाना चाहिए। "

"उपरोक्त तथ्यात्मक पृष्ठभूमि के मद्देनजर, हम अनुच्छेद 32 के तहत याचिका को सुनने के लिए इच्छुक नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं को राहत देने के लिए केवल उन्हें इस अदालत के आदेशों के विपरीत एक बैक डोर एंट्री लेने में सक्षम होना चाहिए। सरकार ने योजना को सही ढंग से समाप्त कर दिया है और यह निर्णय जारी है।"


केस: मंजीत बनाम भारत सरकार [WP (Civil) No .78/2021]

कोरम: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना

वकील: एओआर राज किशोर चौधरी, एडवोकेट शकील अहमद

Citation: LL 2021 SC 56


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