IPS अफसर के खिलाफ झूठा हलफनामा देने पर महिला ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी बिना शर्त माफी, अदालत ने अवमानना कार्रवाई बंद की
एक आईपीएस अफसर पर जानलेवा हमला करने के झूठे आरोप लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को अदालत की अवमानना की कार्रवाई से आरोपमुक्त कर दिया।
बुधवार को सुनवाई के दौरान महिला ने मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ के सामने बिना शर्त माफीनामा पेश किया। उसने पीठ को बताया कि वो मानसिक रूप से ठीक नहीं है और उसका उपचार भी चल रहा है। इस आधार पर पीठ ने उसके खिलाफ अवमानना कार्रवाई को बंद कर दिया।
इससे पहले 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पश्चिम बंगाल कैडर के एक आईपीएस अधिकारी पर कथित रूप से जानलेवा हमला करने के प्रयास का आरोप लगाने वाली एक महिला के खिलाफ "गलत बयान" देने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना नोटिस जारी किया था। उसने शादी से इंकार करने के बाद फेसबुक-मित्र अधिकारी के खिलाफ 2018 में बलात्कार की एफआईआर दर्ज की थी।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली में दर्ज बलात्कार एफआईआर को स्थानांतरित करने और अधिकारी की मां द्वारा 15 लाख रुपये की कथित जबरन वसूली की शिकायत पर दर्ज
एफआईआर को पश्चिम बंगाल के बशीरहाट पुलिस स्टेशन से केंद्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित करने की अर्जी को खारिज कर दिया था।
जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने महिला द्वारा दायर एक याचिका पर अपना ये निर्देश पारित किया, जिसे उसकी पहचान की छिपाने के लिए एबीसीडी नाम दिया गया।
उसकी दलीलों के आधार पर अदालत ने नोट किया था कि बलात्कार के मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है। आरोपी के मोबाइल फोन का कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) बरामद किया गया लेकिन ललित होटल की लॉबी, रेस्तरां और कमरे के नंबर के 27 जनवरी से 29 जनवरी, 2018 के सीसीटीवी फुटेज को इसलिए हासिल नहीं किया जा सका क्योंकि तीन महीने के अंतराल के कारण उन्हें संरक्षित नहीं किया गया था।
महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी कथित रूप से अपराध करने के लिए उसे होटल ललित ले गया था जहां उससे बलात्कार किया।
मामले के दौरान महिला ने 18 अक्टूबर, 2019 को एक और एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें कहा गया था कि उसका जीवन खत्म हो जाएगा क्योंकि वह अधिकारी के लगातार रडार पर है और वह एक कार की चपेट में आकर घायल हो गई।
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच जिसने सीसीटीवी फुटेज को पुनः प्राप्त किया, ने कहा था कि वास्तव में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। इसके बजाय, "एक बच्चे द्वारा संचालित एक ठेला (गाड़ी) को शिकायतकर्ता के बाएं पैर को रगड़ते हुए देखा गया जब वह एक ऑटो को किराए पर लेने का प्रयास कर रही थी। वह गाड़ी की ओर देखती है और फिर दूर चली जाती है। उसने उसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया।
अदालत ने कहा, "जैसा कि यह सब प्रथम दृष्टया देखकर पता चला है, इसका मतलब है कि इस अदालत के सामने उसके शपथ बयान में आरोप सत्य नहीं थे।"
अदालत ने 14 जनवरी, 2020 को महिला की व्यक्तिगत उपस्थिति का आदेश जारी करते हुए कहा था कि शपथ पर गलत बयान देना और गलत सूचना प्रस्तुत करने के इरादे से लोक सेवक को नुकसान पहुंचाने के अपनी वैध शक्ति का उपयोग करना दंडनीय अपराध है।