किसी भी अधिकार का दावा करने के लिए अंतर विभागीय पत्राचार/ फाइल नोटिंग पर भरोसा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी अधिकार का दावा करने के आधार के तौर पर अंतर-विभागीय पत्राचार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा,
"किसी भी चीज के राज्य सरकार के आदेश रूप में तब्दील होने से पहले दो चीजें आवश्यक हैं। पहला, अनुच्छेद 166 के खंड (1) के अनुसार राज्यपाल के नाम पर आदेश जारी करना होगा और दूसरा, इसे संप्रेषित करना होगा।"
भारतीय सेना में एक सिपाही के रूप में सेवारत भेरू लाल को 1965 के भारत-पाक युद्ध में बारूदी सुरंग विस्फोट के कारण दाहिने पैर में जख्म हो गया था और उनका दाहिना पैर कट गया था, जिसके बाद उन्हें सेवा से बाहर कर दिया गया था। उन्होंने राजस्थान के दिव्यांग भूतपूर्व सैनिकों एवं मृत रक्षा कार्मिकों के आश्रितों को विशेष सहायता (भूमि आवंटन) नियम, 1963 के तहत दिव्यांग युद्धकर्मियों की श्रेणी में भूमि आवंटन के लिए आवेदन किया था। राज्य के राजस्व विभाग के सैनिक कल्याण अनुभाग ने एक पत्र भेजकर जिला कलेक्टर, उदयपुर को अवगत कराया कि ग्राम रोहिखेड़ा में 25 बीघा भूमि आवंटित करने का निर्णय लिया गया है। भेरू लाल की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने एक अभ्यावेदन दिया कि भूमि का कब्जा न तो उनके पति को सौंपा गया था और न ही उन्हें। बाद में उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मूल रूप से आवंटित जमीन पर कब्जा देने का निर्देश दिया।
अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि रिट याचिकाकर्ता के पक्ष में आवंटन का कोई पत्र नहीं था और अंतर-विभागीय पत्राचार को आवंटन पत्र नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा:
"यह अच्छी तरह से तय है कि अंतर-विभागीय पत्राचार उचित निर्णय के लिए विचार की प्रक्रिया का हिस्सा होता है और किसी भी अधिकार का दावा करने के आधार के तौर पर इसका भरोसा नहीं किया जा सकता है। इस कोर्ट ने 'ओंकार सिन्हा बनाम सहादत खान' मामले में दिये गये फैसले में उक्त प्रश्नों पर विचार किया था। 'बछित्तर सिंह बनाम पंजाब सरकार' मामले में दिये गये इस निर्णय पर भरोसा जताया गया जिसमें कहा गया था कि केवल फाइल पर कुछ लिखना आदेश नहीं माना जा सकता। किसी भी पत्राचार के राज्य सरकार के आदेश रूप में तब्दील होने से पहले दो चीजें आवश्यक हैं। पहला, अनुच्छेद 166 के खंड (1) के अनुसार राज्यपाल के नाम पर आदेश जारी करना होगा और दूसरा, इसे संप्रेषित करना होगा। जैसा कि पहले ही संकेत दिया गया है, राजस्व सचिव के निर्णय को संशोधित करने का कोई औपचारिक आदेश कभी नहीं जारी किया गया था। जब तक ऐसा आदेश नहीं होता है हमारी राय में, राज्य सरकार फाइल में किये गये पत्राचार से बाध्य नहीं मानी जा सकती।"
हाईकोर्ट के आदेश को 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार देते हुए बेंच ने इसे रद्द कर दिया और कहा:
"कार्यवाही से हाईकोर्ट द्वारा ली गई अतिरिक्त रुचि का भान होता है, और ऐसा न केवल भूमि के आवंटन के संबंध में, बल्कि उस भूमि के बारे में भी, जो कभी आवंटित की गई थी और अब राष्ट्रीय राजमार्ग के करीब है। जिस तरीके से मामले को निपटाया गया है वह दिव्यांग भूतपूर्व सैनिक की मदद की आड़ में हाईकोर्ट द्वारा किया गया निर्णय पूरी तरह से अनुचित है.. इसलिए, हम पाते हैं कि रिट याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पूरी तरह से गलत, संपार्श्विक उद्देश्यों के साथ हानिप्रद है, और इसमें पदाधिकारियों/अधिकारियों का प्रश्रय हो सकता है।"
मामले का विवरण
महादेव बनाम सोवन देवी | 2022 लाइव लॉ (एससी) 730 | सीए 5876/2022 | 30 अगस्त 2022 | जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ
हेडनोट्स
प्रशासनिक कानून - किसी भी अधिकार का दावा करने के आधार के तौर पर अंतर-विभागीय पत्राचार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है - केवल फ़ाइल पर कुछ लिखना आदेश की श्रेणी में नहीं आ सकता। कोई पत्राचार राज्य सरकार के आदेश में तब्दील हो उसके लिए दो बातें जरूरी हैं। पहला, अनुच्छेद 166 के खंड (1) के अनुसार राज्यपाल के नाम पर आदेश जारी करना होगा और दूसरा, इसे संप्रेषित करना होगा। (पैरा 14-15)
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