वैवाहिक विवाद में लिप्त पक्षों की वास्तविक आय निर्धारित करने के लिए इनकम टैक्स रिटर्न सटीक गाइड नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-11-04 10:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद में शामिल पक्षों की वास्तविक आय का उचित आंकलन करने के ल‌िए आयकर रिटर्न सटीक मार्गदर्शक नहीं हो सकता।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि फैमिली कोर्ट को अपने सामने मौजूद सबूतों के समग्र आकलन पर वास्तविक आय का निर्धारण करना होगा।

मामले में फैमिली कोर्ट ने पति को अपनी पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह और बेटियों को 15,000 रुपये प्रति माह की दर से भरण-पोषण देने का आदेश दिया। यह इस खोज पर आधारित था कि वह मासिक आय के रूप में 2 लाख रुपये कमा रहा है। पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने देखा कि उसकी ओर से दायर आयकर रिटर्न के अनुसार वह प्रति वर्ष केवल 4.5 लाख रुपये कमाता है। आगे यह देखा गया कि फैमिली कोर्ट ने उस आधार का संकेत नहीं दिया था जिस पर उसने दो लाख रुपये प्रति माह की आय का आकलन किया था

अपील में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 

"पहले पहलू पर, यह अच्छी तरह से तय हो गया है कि आयकर रिटर्न वास्तविक आय का एक सटीक मार्गदर्शन प्रस्तुत नहीं करता है। विशेष रूप से, जब पक्ष वैवाहिक संघर्ष में लगे होते हैं, तो आय को कम आंकने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए, फैमिली कोर्ट पर यह है कि वह साक्ष्य के समग्र मूल्यांकन के बाद दूसरे प्रतिवादी की वास्तविक आय का निर्धारित करे ताकि अपीलकर्ता उस स्थिति के अनुरूप रहने में सक्षम हो सकें, जिस स्थिति में वे उस समय रहते थे, जबकि वे साथ थे और दोनों बच्चों की उम्र क्रमश: 17 और 15 साल थी..."

पीठ ने कहा कि इस आधार पर फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करना हाईकोर्ट के लिए न्यायोचित नहीं है। इसलिए अदालत ने पुनरीक्षण याचिका को नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट की फाइल में बहाल कर दिया।

केस डिटेलः किरण तोमर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 904 | CA 1865 Of 2022| 31 अक्टूबर 2022 | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली

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