परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में सभी सिरों से श्रृंखला पूरी होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराते हुए कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में "सभी सिरों से श्रृंखला पूरी होनी चाहिए, जिससे अभियुक्त के अपराध को इंगित किया जा सके और अपराध के किसी अन्य सिद्धांत को भी बाहर रखा जा सके," दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा रद्द कर दी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2010 में हत्या के मामले में अभियुक्तों को उक्त सजा दी थी।
अदालत परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट अपराध के मकसद और अंतिम बार देखे जाने की खोज से सहमत था, लेकिन उसने माना कि हमले में इस्तेमाल किए गए हथियार और खून से सने कपड़े की बरामदगी "अमान्य" है।
अदालत ने देखा,
"...यह भी (हाईकोर्ट) इस हद तक जाता है कि जो बरामदगी की गई है वह यह नहीं दर्शाती कि अपीलकर्ता ने अपराध किया है। फिर भी, यह देखा गया कि अंतिम बार देखे गए और मकसद के अपीलकर्ता के खिलाफ पूरे सरगम और अन्य पुख्ता सबूतों को देखते हुए सजा की पुष्टि की।”
अदालत ने आगे कहा,
हमें नहीं लगता कि हाईकोर्ट का ऐसा निष्कर्ष सख्ती से कानून के अनुरूप है।
शरद बिर्धीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य और शैलेंद्र राजदेव पासवान बनाम गुजरात राज्य आदि का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने दोहराया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में "श्रृंखला को सभी प्रकार से पूर्ण होना चाहिए, जिससे अभियुक्त के दोष का संकेत दिया जा सके।"
कोर्ट ने कहा,
इस प्रकार, यदि हाईकोर्ट ने पाया कि कोई लिंक गायब है और इस बिंदु पर स्थापित कानून के मद्देनजर साबित नहीं हुआ है तो दोषसिद्धि में हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।
नतीजतन, अपील की अनुमति दी गई और सजा और आजीवन कारावास की सजा रद्द कर दी गई।
केस टाइटल- लक्ष्मण प्रसाद @लक्ष्मण बनाम मध्य प्रदेश राज्य
साइटेशन : लाइवलॉ (एससी) 489/2023
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