ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने नालसा के फैसले को स्पष्ट करने की याचिका पर विचार करने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 मार्च) को आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्पष्टीकरण मांगा गया कि NALSA मामले में 2014 के फैसले के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण क्षैतिज आरक्षण है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने हालांकि आवेदक को मांगी गई राहत के लिए कानून में अन्य उपायों (जैसे एक अलग मूल याचिका दायर करने) का लाभ उठाने की स्वतंत्रता दी। आवेदन ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता ग्रेस बानू द्वारा दायर किया गया।
आवेदक की ओर से सीनियर एडवोकेट जयना कोठारी ने पैरवी की।
आवेदक ने बताया कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में मानने और उन्हें शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण प्रदान करने का निर्देश दिया। हालांकि, कोर्ट ने यह नहीं बताया कि आरक्षण कैसे लागू किया जाना चाहिए। इसलिए आवेदक ने कहा कि कई राज्यों ने अभी तक इस तरह के आरक्षण को लागू नहीं किया।
आवेदक ने कहा कि एनएएलएसए के फैसले से यह आभास होता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ओबीसी वर्ग के तहत माना जाना चाहिए। इसलिए उनका आरक्षण वर्टिकल होगा। यदि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण को वर्टिकल आरक्षण के रूप में माना जाता है, तो यह कई समस्याओं को जन्म देगा।
आवेदक ने कुछ मुद्दों का वर्णन इस प्रकार किया:
1. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित ट्रांसजेंडर व्यक्ति को यह चुनना होगा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कोटा या ओबीसी कोटे का दावा करना है या नहीं।
2. यदि ऐसे व्यक्ति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कोटा चुनते हैं तो वे ट्रांसजेंडर कोटे का लाभ खो देंगे और उन्हें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग में अन्य लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिससे उन्हें नुकसान होगा।
3. यदि ऐसे व्यक्ति पहले से ही ओबीसी श्रेणी से हैं तो उन्हें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के रूप में सकारात्मक कार्रवाई का और लाभ नहीं मिलेगा।
आवेदक ने तर्क दिया कि ट्रांसजेंडर और इंटर-सेक्स व्यक्तियों के लिए आरक्षण देने का प्रभावी तरीका जेंडर और विकलांगता के आधार पर है, जैसा कि महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों के मामले में किया गया है।
आवेदन में कहा गया कि सामाजिक न्याय मंत्रालय ने ओबीसी कैटेगरी में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करने के लिए सितंबर 2021 में एक कैबिनेट नोट पेश किया। तमिलनाडु सरकार ने उन्हें अति पिछड़ा वर्ग की कैटेगरी में शामिल करने का फैसला किया। कर्नाटक एकमात्र राज्य है, जहां उन्हें 1% की सीमा तक क्षैतिज आरक्षण दिया गया है।
आवेदक ने आगे प्रार्थना की कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण में कट-ऑफ अंक, आयु में रियायतें शामिल होनी चाहिए।
आवेदन में निम्नलिखित राहते मांगी गईं:
1. रिट याचिका (सिविल) नंबर 400/2012 में पारित निर्णय दिनांक 15.04.2014 को स्पष्ट/संशोधित करें कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण क्षैतिज आरक्षण हैं।
2. रिट याचिका (सिविल) नंबर 400/2012 में पारित निर्णय दिनांक 15.04.2014 को स्पष्ट/संशोधित करें कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण भी आयु, कट-ऑफ मार्क्स और शारीरिक मानदंड में रियायत के लिए प्रदान किया जाना चाहिए, जैसा कि अन्य आरक्षित श्रेणियों में प्रदान किया गया है;
3. रिट याचिका (सिविल) नंबर 400/2012 में पारित निर्णय दिनांक 15.04.2014 को स्पष्ट/संशोधित करें कि आवास स्थलों, योजनाओं के आवंटन में सार्वजनिक रोजगार और सार्वजनिक शिक्षा के अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए भी आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
आवेदन एडवोकेट डॉ आनंदिता पुजारी द्वारा तैयार और दायर किया गया।