सुप्रीम कोर्ट ने बीसीआई की ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा, 'कल्याण योजना' के लिए अधिक इनरोलमेंट फीस नहीं ले सकते

Update: 2023-07-05 07:40 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें राज्य बार काउंसिल द्वारा लिए गए इनरोलमेंट फीस को चुनौती देने वाली केरल, मद्रास और बॉम्बे उच्च न्यायालयों में लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने मौखिक रूप से इनरोलमेंट फीस दरों पर चिंता व्यक्त की। जब बीसीआई के प्रेसिडेंट सीनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि बार काउंसिल द्वारा ली जाने वाली फीस विभिन्न खर्चों और कल्याणकारी उपायों को कवर करती है तो सीजेआई ने टिप्पणी की कि कल्याण योजना की आड़ में ऊंची इनलोमेंट फीस नहीं ली जा सकती।

सीजेआई ने कहा, "मिस्टर मिश्रा आप मुसीबत में इनरोलमेंट आप नहीं कर सकते। आप कल्याण योजना आदि के रूप में पूछ सकते हैं, लेकिन इनरोलमेंट नहीं कर सकते।"

पीठ ने बीसीआई की ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी किया। हालांकि मिश्रा ने हाईकोर्ट में कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश देने की मांग की, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया।

सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा कि एक बार जब सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर याचिकाओं पर नोटिस जारी करता है तो हाईकोर्ट आम तौर पर कार्यवाही को स्थगित रखते हैं।

वर्तमान में इस मुद्दे को लेकर केरल हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं चल रही हैं।

हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ केरल को इनरोलमेंट के इच्छुक लॉ ग्रेजुएट्स से इनरोलमेंट फीस के रूप में केवल 750/- रुपये लेने का निर्देश दिया, जब तक कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया एक समान फीस स्ट्र्कचर पर विचार नहीं करती। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश एसवीएन भट्टी और जस्टिस बसंत बालाजी की खंडपीठ ने इनरोलमेंट फीस को 750 रुपये तक सीमित करने के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ केरल द्वारा दायर अपील में पारित किया था। याचिकाकर्ताओं ने अत्यधिक फीस को चुनौती दी थी।

केरल बार काउंसिल द्वारा 15,900/- रुपये की इनरोलमेंट फीस को याचिकाकर्ताओं इस आधार पर चुनौती दी कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24(1)(एफ) के तहत 750/- रुपए की फीस निर्धारित है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि बार काउंसिल ऑफ केरल द्वारा पारित कोई भी नियम, जो खुद को अधिक फीस लगाने का अधिकार देता है, उसकी शक्तियों के दायरे से बाहर है।

इसके अलावा मद्रास हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी को फिफ्थ ईयर के लॉ स्टूडेंट मणिमारन की याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है, जिसमें लॉ ग्रेजुएट्स से उसके द्वारा लिए जाने वाले इनरोलमेंट फीस को चुनौती दी गई है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी राजा और जस्टिस भरत चक्रवर्ती की पीठ ने प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की थी कि राशि अधिक है और याचिका पर नोटिस जारी किया था। कोर्ट की ओर से बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया गया था।

इसी तरह, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी एक वकील की याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें जनवरी 2020 से इनरोलमेंट फीस बढ़ाकर 15,000 रुपये करने के बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमजी) के फैसले को चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले राज्य बार काउंसिल से अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1)(ई) द्वारा निर्धारित फीस से अधिक फीस लेने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाया था। इस प्रावधान के अनुसार, स्टेट बार काउंसिल को देय इनरोलमेंट फीस 600 रुपए होनी चाहिए। इसी प्रकार बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 150 रुपए फीस देय होनी चाहिए। इसलिए अदालत ने निर्धारित फीस और विभिन्न राज्यों में ली जाने वाली फीस के बीच पर्याप्त असमानताओं पर आश्चर्य व्यक्त किया।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछली सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा था, " मुझे लगता है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया को हस्तक्षेप करना होगा क्योंकि राज्य बार काउंसिल इनरोलमेंट के लिए भारी रकम वसूल रहे हैं... एक दलित छात्र या ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र से इसे कैसे वहन करेंगे?

केस टाइटल : बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम अक्षय एम. सिवन | टीपी(सी) नंबर 001310 - 001312

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