हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट के धारा 302 के तहत दर्ज मामले में जमानत को खारिज करने के आदेश को पलटने से पहले कुछ कारण बताना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने देखा है कि हत्या के मामले (धारा 302 आईपीसी) में हाईकोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को उलटने के लिए कम से कम कुछ कारण बताए, जिसने तर्कपूर्ण आदेश द्वारा जमानत आवेदन को खारिज कर दिया था।
जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2 अगस्त, 2021 जमानत के आदेश के खिलाफ दायर एसएलपी पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की। आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
हाईकोर्ट ने जमानत देने का कोई कारण बताए बिना जमानत देते हुए कहा था, "अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, अभियुक्त की मिलीभगत, सजा की गंभीरता, पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलों को ध्यान में रखते हुए और मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, इस न्यायालय का विचार है कि आवेदक मुकदमे के लंबित रहने के दौरान जमानत पाने का हकदार है।"
मामले में अपील मृतक के भाई ने की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को निरस्त करते हुए कहा, "आक्षेपित आदेशों का महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित आदेशों में जमानत देने का कोई कारण नहीं बताया गया है। हत्या के मामले में (भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत) यह अपेक्षित है कि कम से कम ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को उलटते समय कोई कारण दिया जाएगा, जिसने एक तर्कपूर्ण आदेश के जरिए जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। मौजूदा मामले में, अपराध की प्रकृति बहुत गंभीर है यानि धारा 302 आईपीसी के तहत हत्या का मामला है और यदि ऐसे मामले को जमानत देने के लिए स्वीकार कर लिया जाए, तो शायद सभी मामलों में जमानत दे दी जाएगी।"
पीठ ने ट्रायल कोर्ट को आदेश की प्रति प्राप्त होने के आठ महीने के भीतर मुकदमे में तेजी लाने और इसे समाप्त करने का हर संभव प्रयास करने का निर्देश दिया।
अदालत ने अपीलकर्ताओं से निचली अदालत के समक्ष स्थगन की मांग नहीं करने को भी कहा। इसने प्रतिवादी को 8 महीने के भीतर मुकदमे को समाप्त करने में अदालत की विफलता पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत के लिए एक नया आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता भी दी।
केस शीर्षक : साबिर बनाम भूरा @ नदीम और अन्य| विशेष अनुमति याचिका (Crl.) No(s).6941/2021
कोरम : जस्टिस विनीत सरन और अनिरुद्ध बोस