[ समय सीमा का स्वत: संज्ञान लेकर विस्तार ] वाट्सएप द्वारा समन/ सेवा पर ' आरक्षण' : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन के कारण 23 मार्च से प्रभावी सीमा अवधि के विस्तार की प्रयोज्यता से संबंधित अपने स्वतः संज्ञान मामले पर सोमवार को सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार की ओर से दायर एक समेकित जवाब को रिकॉर्ड पर ले लिया जिसमें कई हस्तक्षेप आवेदनों पर अपना रुख विस्तार से दिया गया है। इसमें मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 29 ए और 23 (4) से संबंधित सीमाओं के संबंध में, वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 12A, सभी नोटिस, समन और उत्तरवाद ( प्लीडिंग) की सेवा और निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंटस एक्ट यानी परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत पहले से 23 मार्च के आदेश के संबंध में सीमा के विस्तार पर स्पष्टीकरण शामिल है।
अटॉर्नी जनरल केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए और कहा कि चूंकि एक वर्ष की अवधि के भीतर जिसे मध्यस्थता अवार्ड दिया जाना है, वह इस तरह की समय सीमा के तहत नहीं है, यह स्पष्ट किया जा सकता है कि धारा 29 ए के तहत समय अवधि को COVID-19 के कारण अगले आदेश तक विस्तारित किया जा रहा है।
फैक्स और ईमेल के माध्यम से वैधानिक नोटिस, समन और दलीलों की सेवा के मुद्दे पर, एजी ने प्रस्तुत किया कि इसे अगले आदेश तक अनुमति दी जाए।
HDFC द्वारा आवेदन जिसमें ये दलील दी गई थी कि यदि समय सीमा उन मामलों के संबंध में विस्तारित होती है, जहां लॉकडाउन के दौरान समय सीमा पहले ही समाप्त हो गई है या समाप्त होने वाली है, तो बैंक को हजारों उधारकर्ताओं से ऋण प्राप्ति के पत्र ( LAD) प्राप्त करने का एक बड़ा अभ्यास करना होगा, केंद्र ने कहा कि ऐसे सभी मामलों में लॉकडाउन की पूरी अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए।
एजी केके वेणुगोपाल:
" HDFC की याचिका के बारे में, चूंकि इसमें हजारों मामले शामिल हैं, और वे लॉकडाउन के दौरान कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, वे चाहते हैं कि विस्तार की अवधि पूरी अवधि के लिए बढ़ाई जाए। मेरा सुझाव 45 दिनों की अवधि विस्तारित करने का है। चूंकि अलग-अलग स्थानों में लॉकडाउन के अलग-अलग समय रहे हैं। हर जगह लॉकडाउन की कोई समान अवधि नहीं थी, जिसके कारण ऋण की प्राप्ति के पत्र प्राप्त करने के लिए 45 दिनों का विस्तार दिया जा सकता है। "
इसके अलावा, एजी ने यह भी कहा कि व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे अन्य ऐप के माध्यम से सेवा के मुद्दे के संबंध में, केंद्र के पास "आरक्षण" है क्योंकि इन गतिविधियों के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिए जाने और अश्लील सामग्री प्रसारित होने की आशंका है, भले ही ऐप्स एन्क्रिप्टेड होने का दावा करते हैं।
इसके अतिरिक्त, केंद्र ने यह भी कहा कि इस मामले में हर्ष नितिन गोखले बनाम RBI में पारित आदेश में कहा गया कि अधिनियम 1881 की धारा 138 के तहत सीमा विस्तार के संबंध में इस मुद्दे से निपटने के लिए RBI ही उपयुक्त निकाय है।
पीठ ने नोट किया कि केंद्र ने परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के विस्तार के तहत निर्णय लेने के लिए RBI को कहा है।
इस मौके पर, RBI की ओर से वरिष्ठ वकील वी गिरी उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि RBI एक चेक की वैधता को स्पष्ट करना चाहता है जिसे 6 महीने से घटाकर 3 महीने कर दिया गया है। गिरी ने RBI की ओर से चेक की वैधता के सीमित सवाल पर एक पेज के नोट में जवाब देने की अनुमति मांगी।
इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने एजी और RBI को उपरोक्त वर्णित मुद्दों पर 1 पेज का नोट प्रस्तुत करने की अनुमति के साथ मामले को 10 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया।
गौरतलब है कि 19 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समय सीमा को बढ़ाने और सरकार के लॉकडाउन प्रतिबंधों के उसके आदेश से आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत दोषी को डिफाल्ट जमानत लेने का अधिकार प्रभावित नहीं होगा।
8 जून को, कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल की एक अर्जी पर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से "चेक के अनादर" मामलों में डिमांड नोटिस की सेवा पर जवाब मांगा था।
COVID-19 महामारी के दौरान देश भर के न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में शारीरिक रूप से आवेदन दाखिल करने को कम करने के उद्देश्य से, 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक सामान्य आदेश पारित किया था, जिसमें 15 मार्च से प्रभावी कर अगले आदेश तक समय सीमा को बढ़ा दिया था चाहे वह क्षम्य हो या नहीं।
"इस तरह की कठिनाइयों को कम करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस न्यायालय सहित देश भर के संबंधित न्यायालयों / न्यायाधिकरणों में ऐसी कार्यवाही दायर करने के लिए वकीलों / वादियों को शारीरिक रूप से नहीं आना पड़े , इसके लिए यह आदेश दिया जाता है कि ऐसी सभी कार्यवाही में सीमा अवधि की परवाह किए बिना चाहे सामान्य कानून या विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा अवधि, चाहे वह माफ करने लायक हो या न हो, 15 मार्च 20 20 से तब तक विस्तारित की जाती है जब तक कि इस न्यायालय द्वारा आगे के आदेश / वर्तमान कार्यवाही में ये पारित किया जाए।"