यति नरसिंहानंद की धर्म संसद में कोई नफरत फैलाने वाला भाषण न हो, यह सुनिश्चित करें : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी प्रशासन से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (19 दिसंबर) को उत्तर प्रदेश प्रशासन और पुलिस के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर विचार करने से इनकार किया। यह याचिका कथित तौर पर 17 से 21 दिसंबर के बीच गाजियाबाद में यति नरसिंहानंद द्वारा आयोजित की जा रही धर्म संसद को रोकने के लिए कदम उठाने में विफल रहने के लिए दायर की गई। यति नरसिंहानंद मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर सांप्रदायिक बयान देने का इतिहास रखते हैं।
साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के जिला अधिकारियों से कहा कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाएं कि कोई नफरत फैलाने वाला भाषण न हो।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जाए।
सीजेआई ने यूपी राज्य की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा,
"कृपया इस बात पर नज़र रखें कि क्या हो रहा है, कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग होनी चाहिए, सिर्फ़ इस तथ्य का मतलब यह नहीं है कि हम सुनवाई नहीं कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि उल्लंघन होना चाहिए।"
मामला सुनवाई के लिए आया तो सीजेआई खन्ना ने याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि वे अधिकारियों से संपर्क करें। भूषण ने जवाब दिया कि अधिकारियों को अभ्यावेदन दिए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सीजेआई ने तब कहा कि हाईकोर्ट से संपर्क किया जा सकता है। सीजेआई ने विचार व्यक्त किया कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करने वाला पहला न्यायालय नहीं होना चाहिए। उन्होंने बताया कि पहले भी नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामलों में न्यायालय ने इसी तरह का रुख अपनाया था।
भूषण ने जब कहा कि यति नरसिंहानंद कई नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामलों में जमानत पर हैं तो सीजेआई ने कहा कि उल्लंघन होने पर जमानत रद्द करने की मांग की जा सकती है।
पीठ ने आदेश में कहा,
"हम सुनवाई के लिए इच्छुक नहीं हैं। हम पहले के आदेशों को दोहराते हैं कि जिला अधिकारी अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सभी एहतियाती उपाय करें।"
पूर्व सिविल सेवकों और कार्यकर्ताओं सहित याचिकाकर्ताओं ने बताया कि वेबसाइट और 'धर्म संसद' के विज्ञापनों में इस्लाम धर्म के अनुयायियों के खिलाफ नफरत भरे भाषण शामिल हैं और उनके खिलाफ हिंसा भड़काने वाले हैं। उन्होंने तर्क दिया कि गाजियाबाद जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश पुलिस नफरत भरे भाषणों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार कार्य करने में विफल रही है।
याचिकाकर्ताओं में अरुणा रॉय, रिटायर आईएएस, अशोक कुमार शर्मा, देब मुखर्जी और नवरेखा शर्मा, सेवानिवृत्त आईएफएस, सईदा हमीद, पूर्व सदस्य योजना आयोग और एनसीडब्ल्यू प्रमुख और विजयन एमजे, सामाजिक शोधकर्ता और नीति विश्लेषक शामिल हैं।
2021 में यति नरसिंहानंद द्वारा आयोजित 'धर्म संसद' कार्यक्रमों ने सांप्रदायिक टिप्पणियों के लिए विवाद खड़ा कर दिया था। उन्हें दर्ज किए गए नफरत भरे भाषण के मामलों में गिरफ्तार किया गया था। बाद में कुछ दिनों की हिरासत के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के खिलाफ उनकी टिप्पणियों पर आपराधिक अवमानना मामले में उन्हें नोटिस जारी किया।
केस टाइटल: अरुणा रॉय एवं अन्य बनाम अजय कुमार मिश्रा एवं अन्य | डायरी नंबर 58833/2024