हेट स्पीच मामला: सुप्रीम कोर्ट ने जितेंद्र त्यागी और यति नरसिंहानंद की गिरफ्तारी की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

Update: 2022-09-02 07:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हरिद्वार धर्म संसद में भड़काऊ भाषण मामले में सैयद वसीम रिजवी उर्फ ​​जितेंद्र त्यागी और यति नरसिंहानंद की गिरफ्तारी की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए याचिका दायर नहीं की जा सकती। जनहित याचिका भारतीय मुस्लिम शिया इस्ना आशारी जमात द्वारा दायर की गई थी।

जनहित याचिका में प्रतिवादियों की गिरफ्तारी के लिए प्रार्थना करने के साथ-साथ सैयद वसीम रिजवी (हिंदू के रूप में परिवर्तित हुआ और जितेंद्र त्यागी के रूप में नाम बदल दिया गया) द्वारा लिखित पुस्तक 'मुहम्मद' की बिक्री और प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने की भी प्रार्थना की गई थी। अदालत ने प्रतिवादियों को 'इस्लाम के धर्म के खिलाफ गलत बयानी करने और आहत करने वाली टिप्पणी करने' से रोकने के लिए कहा।

पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका के माध्यम से किसी व्यक्ति पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस संदर्भ में सीजेआई ललित ने कहा कि अदालत द्वारा इस तरह की कार्रवाई ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ होगी। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।

याचिकाकर्ता ने तब अदालत का ध्यान याचिका की प्रार्थना बी की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया कि सैयद वसीम रिजवी द्वारा लिखित पुस्तक 'मुहम्मद' की प्रतियां जब्त करने के लिए निर्देश पारित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संघ शायद इस पर विचार कर सकता है।

जस्टिस रवींद्र भट ने इस पर पूछा कि क्या याचिका ने इसके लिए संघ से संपर्क किया है।

याचिकाकर्ता ने जब नकारात्मक जवाब दिया तो पीठ ने याचिका खारिज करने की मंशा जाहिर की।

याचिकाकर्ता ने तब अदालत का ध्यान याचिका की प्रार्थना ई की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया कि अदालत सरकार को भारत के विधि आयोग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 267 में दी गई सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दे सकती है। उक्त सिफारिशें देश में अभद्र भाषा पर अंकुश लगाने के लिए की गई थीं।

सीजेआई ने इस पर टिप्पणी की कि विधि आयोग की सिफारिशें दिन के अंत में सिफारिशें हैं और इसमें परमादेश की प्रकृति नहीं है।

तदनुसार, याचिका को वापस लेने के रूप में खारिज कर दिया गया।

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