गुजरात हाईकोर्ट के जज ने बर्खास्त IPS अफसर की जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

Update: 2019-09-04 05:47 GMT

गुजरात उच्च न्यायालय के एक जज ने मंगलवार को बर्खास्त IPS अधिकारी संजीव भट्ट द्वारा दायर जमानत याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। भट्ट को हिरासत में हुई मौत के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

जब भट्ट और एक अन्य दोषी प्रवीणसिंह जाला की जमानत याचिका सुनवाई पर आई तो न्यायमूर्ति वी बी मयानी, जो न्यायमूर्ति हर्षा देवानी के साथ पीठ में बैठे थे, ने कहा कि "मेरे सामने नहीं।" जज ने सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया। गौरतलब है कि भट्ट और जाला की सजा के खिलाफ अपील भी इसी डिवीजन बेंच के समक्ष लंबित है।

दरअसल जामनगर की एक सत्र अदालत ने भट्ट और जाला को 1990 में हिरासत में हुई एक मौत पर सजा सुनाई है। 30 अक्टूबर, 1990 को भट्ट जामनगर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक थे और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की 'रथयात्रा' को रोकने के खिलाफ 'भारत बंद' के बाद जामजोधपुर में एक सांप्रदायिक दंगे के बाद लगभग 150 लोगों को हिरासत में लिया गया था।

गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक, प्रभुदास वैश्नानी की पुलिस हिरासत से रिहाई के बाद अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। उनके भाई ने भट्ट और जाला (तब एक कांस्टेबल) सहित छह अन्य पुलिस अधिकारियों पर वैश्नानी को हिरासत में प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था।

2015 में सेवा से बर्खास्त भट्ट सितंबर 2018 से सलाखों के पीछे है क्योंकि एक अन्य मामले में उन पर ड्रग्स रखकर मएक व्यक्ति को फंसाए जाने का आरोप है।

दरअसल पुलिस सेवा में रहते हुए भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2002 फरवरी में गोधरा ट्रेन में आगजनी के बाद सीएम के आवास पर हुई एक बैठक में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को हिंदू समुदाय को अपना गुस्सा निकालने की अनुमति देने के लिए कहा था।

हालांकि 2002 के दंगों की जांच करने वाली विशेष जांच टीम ने निष्कर्ष निकाला कि भट्ट, एक जूनियर अधिकारी होने के नाते, इस बैठक में उपस्थित नहीं हो सकते थे और इसलिए उनका बयान विश्वसनीय नहीं है।  

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