सरकारी अधिकारी सेवा स्थिति और रिटायर होने के बाद मिलने वाले लाभों के बारे में उपभोक्ता मंचों पर शिकायत दायर नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा कहा है कि सरकारी सेवक 'उपभोक्ता'नहीं हैं और वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत नहीं आते। अदालत ने कहा कि सरकारी अधिकारी अपनी सेवा स्थितियों या ग्रेच्यूटी या जीपीएफ के भुगतान के बारे में या रिटायरमेंट से संबंधित किसी भी मुद्दे को लेकर इस अधिनयम के तहत शिकायत दायर नहीं कर सकते।
जल संसाधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। एनसीडीआरसी ने ज़िला मंच और राज्य आयोग के आदेश के ख़िलाफ़ उसकी समीक्षा याचिका ख़ारिज कर दी थी। मंत्रालय को इस आदेश में कहा गया था कि वह अपने एक कर्मचारी को मुआवज़े और जीपीएफ का देरी से भुगतान के कारण उस पर ब्याज दे और इस बारे में याचिका स्वीकार कर ली थी। राष्ट्रीय आयोग ने अपील दायर करने में देरी को माफ़ करने से भी मना कर दिया था।
जल संसाधन मंत्रालय बनाम श्रीपत राव कामदे के इस मामले में अदालत के समक्ष मुद्दा यह था कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभों के बारे में ज़िला उपभोक्ता मंच पर अपील दायर की जा सकती है या नहीं।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि जगमित्तर सेन बनाम निदेशक, स्वास्थ्य सेवा, हरियाणा (2013) 10 SCC 136 के वाद में इस मुद्दे को सुलझाया जा चुका है। इस फ़ैसले में अदालत ने कहा था कि सरकारी सेवक रिटायरमेंट के बारे में किसी भी मुद्दे को लेकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत किसी भी मंच पर शिकायत दायर नहीं कर सकते।
इस फ़ैसले के अनुसार,
"यह स्पष्ट है कि सरकारी सेवक अपनी सेवा स्थितियों, ग्रेच्यूटी या जीपीएफ का भुगतान या रिटायरमेंट लाभ के बारे में किसी भी विषय को लेकर कोई शिकायत इस अधिनियम के तहत किसी भी मंच पर दायर नहीं कर सकते। सरकारी सेवक इस अधिनियम की धारा 2(1)(d)(ii) के तहत 'उपभोक्ता' की परिभाषा में नहीं आते।
इस तरह के सरकारी नौकर इस उद्देश्य के लिए बनाए गए क़ानूनों के तहत ही इस तरह के लाभों के बारे में किसी तरह के दावे कर सकते हैं। उनके लिए इस तरह के किसी भी शिकायत के निपटारे का उचित मंच है। राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल या दीवानी अदालत पर किसी भी तरह से इस अधिनियम के तहत आने वाले मंच नहीं।
अदालत ने यह भी पाया कि सचिव, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, उड़ीसा बनाम संतोष कुमार साहू मामले में आए फ़ैसले में कहा गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनयम इस बात की जांच के लिए नहीं है कि कोई उम्मीदवार परीक्षा पास करके किसी कोर्स को सफलतापूर्वक पूरा किया है कि नहीं।"
याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा,
"जहां तक किसी सरकारी अधिकारी के बकाए और इस बकाए के लिए इस अधिनियम के तहत किसी प्रावधान का प्रयोग वह कर सकता है कि नहीं, इस बारे में क़ानून का निर्धारण किया जा चुका है। जगमित्तर सैन भगत मामले की इस अदालत ने सुनवाई की जब राज्य और राष्ट्रीय आयोग ने इस बारे में अपने फ़ैसले दिए। अपीलकर्ताओं ने यह मुद्दा उठाया कि इस अधिनियम के प्रावधान इस पर लागू नहीं हो सकते।
इस याचिका पर ग़ौर नहीं किया गया। इस अदालत ने जगमित्तर सैन भगत मामले में जिन सिद्धांतों का निर्धारण किया है उसके हिसाब से हम इस बात को दोहराते हैं कि इस मामले में दर्ज शिकायत पर इस अधिनियम के तहत ज़िला मंच पर ग़ौर नहीं किया जा सकता है।"