1984 Anti-Sikh Riots : सुप्रीम कोर्ट ने मामलों की सुनवाई रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की आलोचना की, ट्रायल में तेजी लाने के निर्देश दिए
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित 11 में से 3 मामलों की सुनवाई पर रोक लगाने पर निराशा व्यक्त की, जहां कार्यवाही विशेष जाँच दल द्वारा पुनः जांच और आरोपपत्र दाखिल करने के बाद शुरू हुई थी।
उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल से इन मामलों की पैरवी के लिए "राज्य के सर्वश्रेष्ठ विधि अधिकारियों" को तैनात करने का आह्वान करते हुए कोर्ट ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह इन मामलों की बारी-बारी से और शीघ्रता से सुनवाई करे।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा,
"वास्तव में चिंता की बात यह है कि जिन 11 मामलों में विशेष जांच दल (SIT) द्वारा दायर आरोपपत्रों के आधार पर सुनवाई शुरू हुई, उनमें से तीन मामलों में हाईकोर्ट ने सुनवाई पर रोक लगा दी। हालांकि, हम किसी संदिग्ध/आरोपी के आरोपपत्र रद्द करने सहित अन्य उपायों का लाभ उठाने के अधिकार को प्रभावित नहीं करना चाहते, फिर भी हम हाईकोर्ट से बस इतना अनुरोध करते हैं कि वह इन मामलों को बारी-बारी से और कानून के अनुसार शीघ्रता से निपटाए।"
न्यायालय ने आगे कहा कि इन मामलों में सुनवाई पूरी होने में कुछ उचित समय लगने की संभावना है, जिसके दौरान गवाहों की उपलब्धता मुश्किल हो सकती है।
आगे कहा गया,
"इस न्यायालय के बार-बार प्रयासों के कारण ही जांच फिर से शुरू हुई, विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया और अब आरोपपत्र दाखिल किए जा चुके हैं...न्यायालय को इस बात का अहसास है कि सुनवाई पूरी होने में कुछ उचित समय लगेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समय बीतने के साथ गवाहों की उपलब्धता एक मुश्किल काम बन जाती है।"
यह आदेश उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा दायर अनुपालन रिपोर्ट के अवलोकन के बाद पारित किया गया, जिसमें पता चला कि FIR (दिनांक 09.11.1984) की सामग्री CFSL द्वारा भी प्राप्त नहीं की जा सकी। CFSL से प्राप्त रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि कुछ धाराओं को छोड़कर FIR की अन्य सभी सामग्री खंडित थी।
अपने पिछले आदेशों और CFSL रिपोर्ट पर विचार करते हुए न्यायालय इस बात से संतुष्ट था कि इस स्तर पर कोई अन्य कार्रवाई नहीं की जा सकती। हालांकि, उसने यह भी कहा कि जब भी एजेंसियों को FIR की डुप्लिकेट प्रति आदि मिल जाए तो उसे न्यायालय के संज्ञान में लाया जाना चाहिए।
जहां तक अभियुक्तों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली हाईकोर्ट में दायर चार अपीलों का प्रश्न है, न्यायालय ने स्थिति रिपोर्ट से पाया कि इन अपीलों पर गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के लिए सक्रिय रूप से प्रयास किया जा रहा है। अतः, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल को आवश्यक विशेषज्ञता वाले "राज्य के सर्वश्रेष्ठ विधि अधिकारियों" को नियुक्त करने के लिए कहा।
अप्रैल में भी जब अदालत को बताया गया कि हाईकोर्ट ने दो मामलों में कार्यवाही पर रोक लगा दी तो कोई स्पष्ट राय दर्ज नहीं की गई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य को इन मामलों में उपस्थित होने और उनके शीघ्र अंतिम निपटारे में हाईकोर्ट की सहायता के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि उसे इस बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि हाईकोर्ट इन मामलों का शीघ्रता से निपटारा करेगा और उन्हें "समय से पहले" लेगा।
Case Title: DELHI SIKH GURDWARA MANAGEMENT COMMITTEE (PETITIONER NO. 01) AND ANR. Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(Crl.) No. 45/2017