“सरकार अपनी ही नीति के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकती” : सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तियों के नाम पर राजस्थान के गांवों के नामकरण को किया रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए यह स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार ने अपनी ही बाध्यकारी नीति (binding policy) का उल्लंघन किया है, जब उसने नए बनाए गए राजस्व गांवों के नाम निजी व्यक्तियों के नाम पर रखे। कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के सिंगल जज के आदेश को बहाल करते हुए ऐसे नामकरण को रद्द कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद राजस्थान के बाड़मेर जिले के सोहड़ा गांव से जुड़ा है। राज्य सरकार ने 31 दिसंबर 2020 को राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 16 के तहत एक अधिसूचना जारी कर कई नए राजस्व गांव बनाए थे। इनमें “अमरगढ़” और “सगतसर” भी शामिल थे, जिन्हें मेघवालों की ढाणी से अलग किया गया था।
इन गांवों के गठन से पहले तहसीलदार (भूमि अभिलेख) ने प्रमाणित किया था कि सभी आवश्यक शर्तें पूरी हो चुकी हैं और कोई विवाद नहीं है। कुछ व्यक्तियों ने भूमि दान के लिए शपथपत्र भी दिए थे। हालांकि, वर्ष 2025 में ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन के दौरान ग्रामीणों ने आपत्ति उठाई कि इन गांवों के नाम व्यक्तियों (अमरराम और सगत सिंह) के नाम पर रखे गए हैं।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
ग्रामीणों ने 2020 की अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
11 जुलाई 2025 को सिंगल जज ने फैसला दिया कि गांवों का नामकरण 20 अगस्त 2009 की राज्य सरकार की परिपत्र (सर्कुलर) का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी राजस्व गांव का नाम किसी व्यक्ति, धर्म, जाति या उप-जाति के नाम पर नहीं रखा जा सकता।
सिंगल जज ने अधिसूचना को अमरगढ़ और सगतसर के संबंध में रद्द कर दिया और कानून के अनुसार नए नाम रखने की छूट दी।
हालांकि, 5 अगस्त 2025 को डिवीजन बेंच ने यह कहते हुए सिंगल जज का आदेश पलट दिया कि गांव गठन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इसलिए हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने डिवीजन बेंच के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि उसने 2009 के बाध्यकारी सर्कुलर की अनदेखी की है। कोर्ट ने दो टूक कहा:
“सरकारी नीति, भले ही कार्यकारी (executive) प्रकृति की हो, सरकार पर बाध्यकारी होती है। जब तक उसे विधिवत संशोधित या वापस न लिया जाए, तब तक सरकार उससे विपरीत कार्रवाई नहीं कर सकती। ऐसी नीति के उल्लंघन में की गई कार्रवाई मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।”
कोर्ट ने यह भी माना कि यह तथ्य निर्विवाद है कि अमरगढ़ और सगतसर के नाम उन व्यक्तियों के नाम से जुड़े हैं जिन्होंने भूमि दान की थी। इसलिए 2020 की अधिसूचना कानूनन टिकाऊ नहीं है।
डिवीजन बेंच के इस तर्क को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया कि मामला अंतिम रूप ले चुका था। कोर्ट ने कहा कि किसी लंबित विवाद (lis) का निपटारा उसके गुण-दोष के आधार पर होना चाहिए और राज्य सरकार किसी अवैध कार्रवाई को “अंतिमता” का बहाना बनाकर सही नहीं ठहरा सकती।
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने:
राजस्थान हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के 5 अगस्त 2025 के फैसले को रद्द कर दिया, और
सिंगल जज के 11 जुलाई 2025 के आदेश को बहाल कर दिया,
जिसके तहत अमरगढ़ और सगतसर नामक राजस्व गांवों के गठन संबंधी अधिसूचना को रद्द कर दिया गया था।
यह फैसला साफ संदेश देता है कि राज्य सरकारें अपनी घोषित नीतियों का उल्लंघन नहीं कर सकतीं, और ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना आचरण माना जाएगा।