उचित मामलों में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट आगे की जांच/पुनः जांच का आदेश दे सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-10-13 06:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट किसी उपयुक्त मामले में आगे की जांच या पुन: जांच का निर्देश दे सकता है।

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा,

"धारा 173 (8) सीआरपीसी के प्रावधान आगे की जांच या पुन: जांच के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित करने के लिए हाईकोर्ट की ऐसी शक्तियों को सीमित या प्रभावित नहीं करते हैं, यदि हाईकोर्ट संतुष्ट है कि न्याया पाने के लिए ऐसा कार्य आवश्यक है।"

अदालत ने कहा कि ऐसी शक्तियों का प्रयोग संयम से, सावधानी के साथ और असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए।

मामला

मौजूदा मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया था कि वह बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक पर लगे आरोपों के संबंध में सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत मामले की और जांच करने और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए पुलिस को निर्देश दें।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में अपीलकर्ता ने निम्नलिखित मुद्दा उठाया, 

क्या हाईकोर्ट द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मजिस्ट्रेट को आगे की जांच का आदेश देने के लिए निर्देश जारी करना उचित था, जबकि जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल की गई थी और जिसने संज्ञान लिया था, उसने ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई?

अदालत ने कहा कि जहां मजिस्ट्रेट की राय है कि उसके समक्ष दायर रिपोर्ट में जांच का नतीजा संतोषजनक नहीं है, वह सीआरपीसी की धारा 156(3) और/या 173(8) के तहत जांच का आदेश दे सकता है या वह सीआरपीसी की धारा 190(1)(सी) के तहत संज्ञान ले सकता है।

पीठ ने इस पहलू पर विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा,

a) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का लक्ष्य एक निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है और यह निष्पक्ष और न्यायपूर्ण जांच के बाद ही शुरू होगी। प्रत्येक अन्वेषण और जांच का अंतिम उद्देश्य, पुलिस करे या मजिस्ट्रेट, यह सुनिश्चित करना है कि वास्तविक अपराधियों को सही ढंग से बुक किया गया है और निर्दोष लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए आरोपित नहीं किया गया है।

b) धारा 156 सीआरपीसी के संदर्भ में उचित जांच सुनिश्चित करने के लिए मजिस्ट्रेट की शक्तियों को मान्यता दी गई है, जिसमें जांच की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद धारा 173 (8) सीआरपीसी के संदर्भ में आगे की जांच का आदेश देने की शक्ति शामिल है। आगे की जांच का आदेश दिया जाना चाहिए या नहीं, यह मजिस्ट्रेट के विवेक पर निर्भर करता है, जिसका प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों पर और कानून के अनुसार किया जाना है।

c) यहां तक ​​​​कि जब एक मामले में, जहां चार्ज शीट फाइल की जा चुकी हो, आगे की जांच को निर्देशित करने की मूल शक्ति मजिस्ट्रेट के पास है, और इसका प्रयोग धारा 173 (8) सीआरपीसी की सीमाओं के अधीन है,

एक उपयुक्त मामले में, जहां हाईकोर्ट को लगता है कि जांच उचित दिशा में नहीं है और जहां मामले के तथ्यों की मांग है, वहां पूर्ण न्याय करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग आगे की जांच या यहां तक ​​कि पुन: जांच को निर्देशित करने के लिए किया जा सकता है।

धारा 173 (8) सीआरपीसी के प्रावधान आगे की जांच या पुन: जांच के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित करने की हाईकोर्ट की ऐसी शक्तियों को सीमित या प्रभावित नहीं करते हैं, यदि हाईकोर्ट संतुष्ट है कि इस तरह कार्य न्याय पाने के लिए आवश्यक है।

d) यहां तक ​​​​कि जब धारा 482 सीआरपीसी के संदर्भ में हाईकोर्ट की व्यापक शक्तियों को आगे की जांच या पुन: जांच के आदेश के लिए मान्यता दी जाती है, तो ऐसी शक्तियों का प्रयोग सावधानी से, और असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए।

e) धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियां असीमित या बेरोक नहीं हैं और अनिवार्य रूप से वास्तविक और पर्याप्त न्याय के लिए हैं। ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, हाईकोर्ट ऐसे निर्देश जारी नहीं कर सकता है जो अन्य अधिकारियों की शक्ति और अधिकार क्षेत्र को प्रभावित करे। उदाहरण के लिए, हाईकोर्ट राज्य के आगे की जांच या पुन: जांच का आदेश देते समय लोक अभियोजक से यह सलाह लेने के लिए कि कानून के किस प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति पर आरोप लगाया जाना चाहिए और मुकदमा चलाया जाना चाहिए, राज्य को निर्देश जारी नहीं कर सकता है ; और यह केवल एक विशेष कोण से मामले की जांच के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता है।

साधारण परिस्थितियों में ऐसी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, हाईकोर्ट विशेष रूप से यह निर्देश नहीं दे सकता है कि आगे की जांच या पुन: जांच के परिणामस्वरूप, किसी विशेष व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जाए।

अदालत ने मामले के तथ्यों पर ध्यान देते हुए कहा कि वह संतुष्ट है कि वर्तमान मामला असाधारण और विशेष विशेषताओं का एक ऐसा मामला था जहां हाईकोर्ट ने आगे की जांच का आदेश दिया, विशेष रूप से अपीलकर्ता की भूमिका के लिए।

कोर्ट ने कहा,

"हमारा विचार है कि मौजूदा तथ्यों और परिस्थितियों में, हालांकि हाईकोर्ट ने आगे की जांच का निर्देश देने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया है, लेकिन ऐसी टिप्पणियों को उचित नहीं ठहराया जा सकता है, जो एक स्वतंत्र जांच के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ती हैं और जिसमें अपीलकर्ता के लिए पूर्वाग्रह पैदा करने की सभी संभावनाएं होती हैं।"

केस डिटेलः देवेंद्र नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 835 | CrA 1768 of 2022 | 12 अक्टूबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और ज‌‌स्टिस अनिरुद्ध बोस


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