[मोटर दुर्घटना मुआवजा] सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा, 15-25 वर्ष आयु समूह के लिए 18 ही होगा मुआवजा गुणक
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि 15 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लिए मोटर दुर्घटना मुआवजे की गणना करते हुए गुणक 18 ही होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया दो फैसलों में इस आधार पर मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश में संशोधन किया गया है।
मोहित गोयल की जब दुर्घटना हुई थी और तत्पश्चात उसकी मौत हो गयी थी, तब वह 23 साल का बैचलर था। उसके माता-पिता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के समक्ष दावा याचिका दायर की थी। न्यायाधिकरण ने कुल मुआवजा 25 लाख 48 हजार पच्चास रुपये तय किया था, लेकिन 50 फीसदी अंशदायी लापरवाही के कारण उसने दावाकर्ता को मुआवजे की आधी रकम ही भुगतान करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने भी एमएसीटी के आदेश को बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने अंशदायी लापरवाही से संबंधित तथ्य को जायज ठहराया, लेकिन यह कहा:
''हमने विवादित फैसले और उसके अन्य पहलुओं की भी समीक्षा की है और दो पहलुओं को छोड़कर कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई है: (ए) मुआवजा निर्धारण से संबंधित मल्टीप्लायर (गुणक) के तौर पर 13 का इस्तेमाल किया गया है, जबकि 'सरला वर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम एवं अन्य (2009) 6 एससीसी 121' मामले में दिये गये फैसले के अनुसार यह मल्टीप्लायर 18 होना चाहिए। (दूसरा) फैसले में छह प्रतिशत की ब्याज दर मंजूर की गयी है, जो आमतौर पर नौ प्रतिशत होती है।"
उपरोक्त टिप्पणियों के संदर्भ में खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में संशोधन किया।
कोर्ट ने इस सप्ताह 'एरुधाया प्रिया बनाम स्टेट एक्सप्रेस ट्रांसपोर्ट्स कॉरपोरेशन लिमिटेड' मामले में जारी एक अन्य फैसले में भी इसी तरह की टिप्पणी की थी। उस मामले में दावाकर्ता खुद पीड़ित था, जो 23 वर्ष की उम्र में हुई एक दुर्घटना के कारण दिव्यांग हो गया था।
हाईकोर्ट ने उस फैसले में मुआवजे का गुणक 17 इस्तेमाल किया था। उस आदेश को संशोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था :
"नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी एवं अन्य' के मामले में दिये गये फैसले पर भरोसा करते हुए अपीलकर्ता की उम्र के आधार पर मल्टीप्लायर में बढ़ोतरी को 23 वर्ष किये जाने की मांग की गयी है। संबंधित फैसले के पैरा 42 में, संविधान पीठ ने गुणक विधिक के संबंध में 'सरला वर्मा (श्रीमती) एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम एवं अन्य 2' के मामले में दी गयी गयी सारिणी की प्रभावी तरीके से पुष्टि की है। पंद्रह से 25 वर्ष आयुवर्ग में दिव्यांगता की सीमा के गुणक के साथ यह आंकड़ा 18 होना चाहिए।"
'सरला वर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम (2009) 6 एससीसी 121' मामले में मल्टीप्लायर के मानकीकरण से पहले अदालतों द्वारा मल्टीप्लायर के अलग-अलग पैमाने का इस्तेमाल किया जाता था, जिसके कारण निरंतरता नहीं रहती थी। सरला वर्मा मामले में यह कहा गया था:
इसलिए हम मानते हैं कि इस्तेमाल किये जाने वाले गुणक सुसम्मा थॉमस, त्रिलोकचंद्र और चार्ली मामलों के फैसलों के अनुरूप तैयार की गयी सारिणी के कॉलम (4) के अनुरूप होना चाहिए। इस सारिणी में ऑपरेटिव मल्टीप्लायर की शुरुआत (15 से 20 वर्ष और 21 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लिए) 18 गुणक से होती है, जो प्रत्येक पांच साल बाद एक यूनिट कम हो जाता है, उदाहरण के तौर पर 26 से 30 वर्ष के लिए गुणक-17, 31 से 35 वर्ष के लिए गुणक 16, 36 से 40 वर्ष के लिए गुणक 15, 41 से 45 वर्ष के लिए गुणक 14 और 46 से 50 वर्ष के लिए गुणक-तेरह। इसके बाद प्रत्येक पांच वर्ष की अवधि के लिए गुणक में दो यूनिट की कमी आती है, जैसे- 51 से 55 वर्ष के लिए गुणक 11, 56 से 60 वर्ष के लिए गुणक नौ, 61 से 65 के लिए गुणक सात और 66 से 70 वर्ष के लिए गुणक-पांच।
इस सारिणी को बाद में 'नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी एवं अन्य [(2017) 16 एससीसी 680]' मामले में वैध ठहराया गया था।
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