वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले विचाराधीन कैदियों और दोषियों के परिवारों को परामर्श दिया जाना चाहिए: जस्टिस बी.आर. गवई
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा तैयार किए गए 'जेल सुधारों' पर मानक संचालन प्रक्रिया के लिए अपने संदेश में इस बात पर जोर दिया कि गरीब तबके से आने वाले विचाराधीन कैदियों/दोषियों के परिवार के सदस्यों को परामर्श दिया जाना चाहिए। उन्हें सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
जस्टिस गवई ने 19 अक्टूबर को गुजरात में न्यायिक अधिकारियों के लिए वार्षिक सम्मेलन में 'संस्थागत परिप्रेक्ष्य-स्व-मूल्यांकन और आत्म-विकास' विषय पर एक सभा को संबोधित किया। इस अवसर पर SOP भी जारी किया। एसओपी को गुजरात हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल-JSLA की संरक्षक और इसके कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस बीरेन ए. वैष्णव के मार्गदर्शन में विकसित किया गया।
SOP को भेजे अपने संदेश में जस्टिस गवई ने कहा,
"जेल सुधार गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा लंबे समय से सलाखों के पीछे बंद कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए तैयार किया गया आदर्श मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) है।"
न्यायाधीश ने आगे कहा कि समाज के सभी "कमजोर वर्गों" में कैदी अपने ऊपर लगे कलंक के कारण "सबसे खराब स्थिति" में रहते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आपराधिक मामले/अपील के साथ आगे बढ़ने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
संदेश में कहा गया,
"इसके अलावा, यह भी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गरीब तबके से आने वाले विचाराधीन कैदियों/दोषियों के परिवार के सदस्यों को उचित परामर्श और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान की जाए, जिससे वे अपना जीवन सुचारू रूप से चला सकें। गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा तैयार किए गए जेल सुधारों द्वारा यह सुनिश्चित किया गया।"
न्यायाधीश ने जेल सुधारों के लिए संस्थागत SOP बनाकर JSLA की पहल की सराहना करते हुए कहा,
"इसके साथ ही जेल के कैदियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया जा रहा है; कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपाय किए जा रहे हैं। योग्य दोषियों को छूट के लिए त्वरित और प्रभावी सहायता दी जा रही है।"