फर्जी दुर्घटना दावा याचिकाएं: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को दोषी अधिवक्ताओं के नाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ साझा करने का निर्देश दिया

Update: 2021-11-20 05:06 GMT

पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 05.10.2021 के एक आदेश में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और कामगार मुआवजा अधिनियम के तहत फर्जी दावा याचिका दायर करने के लिए अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की आलोचना की थी।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार/एसआईटी को उन अधिवक्ताओं के नाम अग्रसारित करने का निर्देश दिया, जिनके खिलाफ संज्ञेय अपराधों के मामलों का खुलासा 15 नवंबर, 2021 तक एक सीलबंद लिफाफे में किया जाता है, ताकि उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए बीसीआई भेजा जा सके।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 16.11.2021 के एक आदेश में कहा कि 05.10.2021 के पहले के आदेश में कड़ी टिप्पणियों के बावजूद बार काउंसिल ऑफ यूपी की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ है।

खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में जहां अधिवक्ताओं के खिलाफ फर्जी दावा याचिका दायर करने के आरोप हैं, सख्त टिप्पणियों के बावजूद बार काउंसिल ऑफ यूपी अपने वकील को निर्देश न देकर "उदासीनता और असंवेदनशीलता" दिखा रही है। 16 नवंबर 2021 को भी बार काउंसिल ऑफ यूपी की ओर से कोई पेश नहीं हुआ।

इसने कहा,

"फर्जी दावा याचिका दायर करना एक बहुत ही गंभीर मामला है। यह अंततः पूरी संस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। कानूनी पेशे को हमेशा एक बहुत ही महान पेशा माना जाता है और अदालतों में फर्जी दावा याचिका दायर करने की ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जा सकती हैं। यह राज्य की बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कर्तव्य है कि वह गरिमा बनाए रखे और कानूनी पेशे की महिमा को बहाल करे। वर्तमान मामले में, दुर्भाग्य से बार काउंसिल ऑफ यूपी बिल्कुल भी गंभीर नहीं है, जैसा कि ऊपर की असंवेदनशीलता का जिक्र किया गया है।"

पीठ ने यह भी कहा कि एसआईटी द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट के अनुसार,

"अब तक विभिन्न जिलों में दर्ज कुल 92 आपराधिक मामलों में से, 55 मामलों में 28 अधिवक्ताओं को आरोपी व्यक्तियों के रूप में नामित किया गया है, 32 मामलों में जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दायर किये गये हैं। शेष में मामलों की जांच लंबित बताई जा रही है।"

बेंच ने कहा कि यह बहुत "दुर्भाग्यपूर्ण" है कि इस तथ्य के बावजूद कि वर्ष 2016-2017 में प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, जांच अभी भी लंबित है और यहां तक कि उन मामलों में जहां आरोप पत्र दायर किया गया है, निचली अदालतों द्वारा कोई आरोप तय नहीं किया गया है।

बेंच ने कहा,

"एसआईटी का गठन हाईकोर्ट द्वारा फर्जी दावा याचिकाओं दाखिल करने की जांच के लिए और विशिष्ट उद्देश्य के साथ किया गया था। फिर भी अधिकांश मामलों/प्राथमिकी में जांच लंबित होने की सूचना है। हम 4-5 साल बाद भी जांच पूरी नहीं करने और प्राथमिकी दर्ज करने में एसआईटी की ओर से की गयी लापरवाही और देरी की निंदा करते हैं।"

बेंच ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के वकील के प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दिया कि चूंकि बार काउंसिल ऑफ यूपी फर्जी दावों को दाखिल करने की अवैध गतिविधियों में लिप्त अधिवक्ताओं के नाम भेजने में सहयोग नहीं कर रहा है, इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी।

इस हद तक जाकर, बेंच ने निर्देश दिया है कि,

"एसआईटी आज से तीन दिनों की अवधि के भीतर फर्जी दावों को दर्ज करने में शामिल अधिवक्ताओं की सूची बीसीआई के वकील को भेजेगी, ताकि बीसीआई द्वारा आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।"

इसने एसआईटी के जांच अधिकारी को झूठे / फर्जी दावा याचिका दायर करते समय अपनाए गए तौर-तरीकों पर 2-3 पेज का नोट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने एसआईटी के जांच अधिकारी और यूपी बार काउंसिल के अध्यक्ष और सचिव को कोर्ट की मदद के लिए सुनवाई की अगली तारीख को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।

सुनवाई की अगली तिथि आठ दिसम्बर है।

केस शीर्षक: सफीक अहमद बनाम आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य| विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 1110/2017

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