सौहार्दपूर्ण समझौते का तथ्य सजा की मात्रा में कमी के उद्देश्य से प्रासंगिक कारक हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-01-09 05:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सजा की मात्रा में कमी के उद्देश्य से सौहार्दपूर्ण समझौते का तथ्य एक प्रासंगिक कारक हो सकता है।

इस मामले में, एक अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 324 और 341 के तहत तीन महीने के कठोर कारावास की सजा दी गई थी, और अन्य अभियुक्तों को आईपीसी की धारा 307 और 341 के तहत दोषी ठहराया गया था और पांच वर्षों के सश्रम कारावास की दी गई थी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोषसिद्धि को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील के लंबित रहने के दौरान, पक्षों ने सौहार्दपूर्ण समझौते में प्रवेश किया। हालांकि, अदालत ने उल्लेख किया कि अपराध में समझौता योग्य नहीं हो सकता क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 में कंपाउंडेड अपराधों की सूची के तहत धारा 324 और 307 आईपीसी को सम्मिलित नहीं किया गया है।

पीठ ने रामपूजन बनाम यूपी राज्य [(1973) 2 एससीसी 456] और ईश्वर सिंह बनाम एमपी राज्य [(2008) 15 एससीसी 667], और पहले के कुछ फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें पक्षकारों के बीच समझौते को गंभीर नॉन-कंपाउंडेबल अपराधों ( समझौता न होने योग्य अपराध) में भी दोषी की सजा कम करने के लिए संज्ञान में लिया गया था।

इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने देखा:

"इसके बावजूद, यह हमें प्रतीत होता है कि सौहार्दपूर्ण समझौते का तथ्य सजा की मात्रा में कमी के उद्देश्य के लिए एक प्रासंगिक कारक हो सकता है। कानून की इस स्थिति और बाद की घटनाओं से उत्पन्न अजीबोगरीब परिस्थितियों को देखते हुए, हम मानते हैं कि यह एक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखने और अपीलकर्ताओं को दी गई सजा की मात्रा पर पुनर्विचार करने के लिए एक उपयुक्त मामला है।"

अदालत ने यह भी देखा कि

1) विवाद के पक्षों ने अपने झगड़े को आपसी रज़ामंदी से खत्म कर दिया है

2) कि घटना के समय, पीड़ित कॉलेज का छात्र था, और दोनों आरोपी भी 22 वर्ष से अधिक उम्र के नहीं थे

3) उनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है, कोई पिछली दुश्मनी नहीं है, और आज वो विवाहित हैं और उनके बच्चे हैं

4) उन्होंने अपनी सदा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा काट लिया है।

इन सभी अनूठे कारकों को ध्यान में रखते हुए, पक्षकारों के बीच समझौता सहित, हम अपीलकर्ताओं को दी गई सजा की मात्रा को कम करने के लिए उपयुक्त मानते हैं, पीठ ने पहले ही काटी जा चुकी सजा की अवधि तक सजा को कम करते हुए कहा।

केस: मुरली बनाम राज्य [क्रिमिनल अपील नंबर 24 / 2020]

पीठ : जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

उद्धरण: LL 2021 SC 11

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