बीमा अनुबंध में संशय की स्थिति में छूट के खंड को बीमाकर्ता के खिलाफ माना जाएः सुप्रीम कोर्ट
मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति मामले में दिए एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा अनुबंधों में उत्तरदायित्व खंड में छूट की अस्पष्टता को बीमा कंपनी के खिलाफ माना जाए।
मामले में जस्टिस आरएफ नरीमन और एस रवींद्र भट की बेंच ने कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) सिद्धांत का उपयोग कर फैसला दिया और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की देनदारी को बहाल किया, जिसमें एक मोटर दुर्घटना में लगभग 37.6 लाख रुपए के मुआवजा और ब्याज के भुगतान का आदेश दिया गया।
23 साल पुरानी दुर्घटना में डॉ अल्पेश गांधी की मौत हो गई थी। वह रोटरी आई इंस्टीट्यूट, नवसारी में 'मानद' नेत्र सर्जन थे। रोटरी आई इंस्टीट्यूट की एक मिनी-बस में यात्रा करते समय हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। दुर्घटना ड्राइवर की लापरवाही के कारण हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या डॉ गांधी को रोटरी आई इंस्टीट्यूट का नियमित कर्मचारी माना जाना चाहिए या अनुबंध पर सेवा दे रहा एक स्वतंत्र पेशेवर। बीमाकर्ता का दायित्व इसी प्रश्न से तय होना थी, क्योंकि बीमा अनुबंध के अनुसार, बीमाकर्ता रोटरी आई इंस्टीट्यूट के कर्मचारियों के दावों के लिए उत्तरदायी नहीं था।
मामले में बीमा धारक, रोटरी आई इंस्टीट्यूट ने IMT-5 एन्डॉर्स्मन्ट के अनुसार, अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान भी किया था, जिसके अनुसार बीमाकर्ता, बीमाधारक के कर्मकार मुआवजा अधिनियम, 1923 के दायरे में शामिल कर्मचारियों के अलावा, किसी भी यात्री को आई शारीरिक चोट के लिए मुआवजे देने का उत्तरदायी था। यदि डॉक्टर रोटरी आई इंस्टिट्यूट के कर्मचारी होते तो बीमा अनुबंध के अनुसार उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाता।
मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने अपने फैसले में डॉक्टर और हॉस्पिटल के बीच रोजगार की व्यवस्था को "अनुबंध की सेवा" के बजाय "अनुबंध के लिए सेवा" बताया था और बीमाकर्ता को उत्तरदायी ठहराया था। हालांकि बीमाकर्ता की अपील पर हाईकोर्ट ने उल्टा फैसला दिया, जिसे चुनौती देते हुए डॉ गांधी की विधवा ने सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सबसे पहले डॉ गांधी और आई इंस्टिट्यूट के बीच अनुबंध की जांच की कि यह "सेवा के लिए अनुबंध" है या "सेवा का अनुबंध" है। "सेवा का अनुबंध" से तात्पर्य यह है कि वह मालिक-नौकर संबंध पर आधारित होता है, जबकि "अनुबंध के लिए सेवा" बराबरी का संबंध होता है और व्यावसायिक शर्तों पर आधारित होता है।
"अनुबंध सेवा के लिए" का निर्धारण करने के लिए परीक्षणों की व्याख्या से संबंधित निर्णयों के एक समूह की जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि डॉ गांधी को आई इंस्टिट्यूट का नियमित कर्मचारी नहीं माना जा सकता है।"
"अनुबंध की शर्तों से यह स्पष्ट होता है अनुबंध सेवा के लिए है। अनुबंध कि, डॉ गांधी अब संस्थान के नियमित कर्मचारी नहीं होंगे, उनकी सेवाएं अब एक नियमित कर्मचारी के रूप में नहीं बल्कि एक स्वतंत्र पेशेवर के रूप में हैं, उसी तारीख से प्रभावी है, जिस तारीख से यह शुरू होता है।"
बेंच ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच अनुबंध एक संस्थान और एक स्वतंत्र पेशेवर के बीच का अनुबंध है। कोर्ट ने इस बिंदु पर कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) सिद्धांत का उपयोग किया और कहा कि छूट के खंड को बीमाकर्ता के खिलाफ समझा जाए।
बेंच ने अपने फैसले में इंडस्ट्रियल प्रमोशन एंड इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ उड़ीसा लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2016) 15 एससीसी 315, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम ओरिएंट ट्रेजर्स (पी) लिमिटेड (2016) 3 एससीसी 49, जनरल एश्योरेंस सोसायटी लिमिटेड बनाम चंदूमल जैन (1966) 3 एससीआर 500, जैसे मिसालों को उद्धृत किया, जिसने सिद्धांत स्पष्ट किया।
"जहां पॉलिसी में अस्पष्टता होगी, वहां कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) का सिद्धांत लागू होगा, जिसका मतलब यह है कि पॉलिसी में अस्पष्टता उस पार्टी के खिलाफ होगी, जिसने अनुबंध तैयार किया है।"
कोर्ट ने जनरल एश्योरेंस सोसाइटी लिमिटेड बनाम चंदूमल जैन (1966) 3 एससीआर 500 के फैसले को उद्धृत किया, "बीमा के अनुबंध में प्रचुर मात्रा में विश्वास की आवश्यकता होती है यानी आश्वासन पर पूरा भरोसा और अनुबंध को कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) माना जा सकता है, जिसका अर्थ यह कि अस्पष्टता या संदेह की स्थिति कंपनी के खिलाफ होगी।"
कोर्ट ने कहा, "यह मानते हुए कि मामले में अस्पष्टता है, इसलिए यहां कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum)का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए, इस प्रकार यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यहां 'रोजगार' से तात्पर्य केवल संस्थान के नियमित कर्मचारियों से है, जो कि डॉ अल्पेश गांधी निश्चित रूप से नहीं थे।"
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