"नहीं चाहता कि इस मामले को एक छाया के नीचे सुना जाए" : एमिक्स क्यूरी हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले से खुद को अलग किया
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शुक्रवार को COVID-19 महामारी के मद्देनज़र ऑक्सीजन की आपूर्ति, दवा की आपूर्ति, वैक्सीन नीति से संबंधित मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए स्वत: संज्ञान मामले में एमिकस क्यूरी बनने से खुद को अलग कर लिया।
साल्वे ने कहा,
"मैं नहीं चाहता कि इस मामले को एक छाया के नीचे सुना जाए कि मुझे सीजेआई के साथ स्कूल की दोस्ती के कारण नियुक्त किया गया था। मुझे नहीं पता था कि हमारा बार उद्योगों के लिए और इसके खिलाफ आने वाले अधिवक्ताओं के बीच विभाजित है। मैं नहीं चाहता कि संदेह व्यक्त किया जाए।"
उन्होंने आगे कहा,
"आज, हम उस भाव को खो चुके हैं जब मामलों को गरिमापूर्ण तरीके से से लड़ा जाता था।" इस पर, सीजेआई ने जवाब दिया कि ये सुनकर उनको भी पीड़ा हुई और हालांकि वे यह पढ़कर खुश नहीं थे कि वरिष्ठ वकीलों ने क्या लिखा है, लेकिन सभी की अपनी राय है।"
वह बार में विभिन्न वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा दिए गए बयानों का जिक्र कर रहे थे, जो इस मामले में एमिकस के तौर पर उनकी नियुक्ति की आलोचना कर रहे थे।
सीजेआई ने साल्वे से कहा,
"हम समझते हैं कि आपको पीड़ा है। हम यह पढ़कर खुश नहीं थे कि कथित तौर पर वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने क्या कहा।"
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने जोर देकर कहा कि साल्वे को मीडिया में बनाए गए दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए और अदालत से इस तरह की अनुचित आलोचना को देखने का आग्रह किया।
"हम देश में ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक दुर्भावनापूर्ण प्रतिस्पर्धा हो। किसी दिन न्यायपालिका के किसी व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की इस प्रवृत्ति का संज्ञान लेना होगा।"
एसजी ने कहा,
" मैंने डिजिटल मीडिया पर लोगों को सचमुच गाली देते हुए देखा। इस पर गौर करने की जरूरत है। एक वकील को इस तरह की रणनीति के आगे नहीं झुकना चाहिए। श्री साल्वे को पुनर्विचार करना चाहिए। ये सिद्धांत का सवाल है।"
इस बिंदु पर सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने साल्वे से सिद्धांत के मामले पर पुनर्विचार नहीं करने का अनुरोध किया और कहा कि किसी को भी इस तरह की रणनीति के आगे नहीं झुकना चाहिए।
सुनवाई से खुद को अलग करने का कदम एक दिन बाद उठाया गया है जब भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, और जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने मामले को उठाया और कोर्ट की सहायता के लिए साल्वे को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया।, जबकि देश भर के उच्च न्यायालयों ने महामारी के कुप्रबंधन से निपटने के लिए विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए हैं, सुप्रीम कोर्ट के इस मुद्दे पर संज्ञान लेने के फैसले की कानूनी बिरादरी के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा भारी आलोचना की गई।
इसके अलावा, साल्वे को नियुक्त करने के लिए शीर्ष अदालत का कदम बहुत से लोगों को अच्छा नहीं लगा क्योंकि उनकी "दिन की सरकार से निकटता" है जैसा कि वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ( एससीबीए) ने कहा।
दवे ने कहा,
"मैं वास्तव में परेशान हूं कि मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने श्री साल्वे को एमिकस के रूप में नियुक्त किया है जबकि वह देश में उपलब्ध नहीं हैं।
इस देश में कई शीर्ष, स्वतंत्र वकील हैं, और श्री साल्वे की दिन की सरकार से निकटता अच्छी तरह से जानी जाती है।" वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र श्रीवास्तव और विकास पाहवा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि साल्वे के स्थान पर अटॉर्नी-जनरल की नियुक्ति क्यों नहीं की गई।"
बॉम्बे और दिल्ली उच्च न्यायालयों द्वारा बुधवार रात को COVID-19 रोगियों को ऑक्सीजन और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करने और केंद्र सरकार की आलोचना करने के बाद इन मुद्दों को लेने के सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण कदम उठाया था।
इसके प्रकाश में, एससीबीए ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष एक अर्जी भी दायर की है, जिसमें उच्च न्यायालयों को स्थानीय स्तर पर COVID-19 संबंधित मुद्दों से निपटने की अनुमति देने का आग्रह किया गया है क्योंकि वे स्थानीय प्रशासन से तत्काल रिपोर्ट लेने और दिशा निर्देश देने की बेहतर स्थिति में हैं।