पैगंबर पर टिप्पणी विवाद : उत्तर प्रदेश में प्रतिशोध के तौर पर तोड़फोड़ के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी के विवाद और उसके बाद होने वाली तोड़फोड़ पर एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और विध्वंस न किया जाए।
आवेदक ने उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा अधिनियमित कानून और नगरपालिका कानूनों के उल्लंघन में कथित रूप से ध्वस्त किए गए घरों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश मांगे हैं।
दिल्ली के जहांगीरपुरी में विध्वंस अभियान के खिलाफ अपनी पिछली याचिका में ही दायर दो आवेदनों के माध्यम से ये राहत मांगी गई है।
कोर्ट ने 21 अप्रैल को दंगा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) द्वारा शुरू किए गए विध्वंस अभियान के खिलाफ नोटिस जारी किया था और यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।
एडवोकेट कबीर दीक्षित और एडवोकेट सरीम नावेद के माध्यम से दायर आवेदन में उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश देने की मांग की गई है कि अतिरिक्त कानूनी दंडात्मक उपाय के रूप में किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी की आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति के खिलाफ कानपुर जिले में कोई प्रारंभिक कार्रवाई ना की जाए।
आवेदन में कहा गया है कि कुछ दिनों पहले दो राजनीतिक नेताओं द्वारा कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी जिससे देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। दोनों राजनीतिक नेताओं की टिप्पणी के बाद, विरोध में कानपुर जिले में लोगों के एक समूह द्वारा बंद का आह्वान किया गया था।
आगे कहा गया है कि विरोध के दिन, हिंदू और मुस्लिम धार्मिक समुदाय के बीच हाथापाई हुई और दोनों समुदायों के बीच पथराव हुआ।
आवेदक ने आरोप लगाया है कि कानपुर में हुई हिंसा के बाद, कई अधिकारियों, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, उन्होंने मीडिया में कहा है कि संदिग्धों/आरोपी की संपत्तियों को जब्त और ध्वस्त कर दिया जाएगा। उन्होंने मीडिया में कहा था कि आरोपियों के मकानों को बुलडोजर से गिराया जाएगा।
आवेदक के अनुसार, किसी भी प्रकृति का विध्वंस अभ्यास सख्ती से लागू कानूनों के अनुसार किया जाना चाहिए, और केवल
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर देने के बाद ही किया जाना चाहिए।
आवेदक के अनुसार, वर्तमान स्थिति अधिक चिंताजनक है क्योंकि वर्तमान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही उत्तर पश्चिमी दिल्ली में समान परिस्थितियों में एक दंडात्मक उपाय के रूप में किए जा रहे विध्वंस पर रोक लगाने का आदेश दिया था।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया है कि इस तरह के अतिरिक्त कानूनी उपायों को अपनाना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट वर्तमान मामले की सुनवाई कर रहा है।
आवेदक ने तर्क दिया है कि अभियुक्त व्यक्तियों की संपत्तियों के विध्वंस के साथ आगे बढ़ने का निर्णय स्पष्ट रूप से अवैध है और बिना सुनवाई का अवसर प्रदान किए ऐसा करना राज्य के नगरपालिका कानूनों का उल्लंघन है, साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
आवेदन में कहा गया है, 'इसलिए, प्रतिशोध के साथ आगे बढ़ने की राज्य की ऐसी योजनाएं हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं और परिणामस्वरूप, राज्य की न्याय वितरण प्रणाली को कमजोर करती हैं।