केंद्र के खिलाफ फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची दिल्ली सरकार; सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सचिव का तबादला मंजूर नहीं
दिल्ली सरकार ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और शिकायत की है कि संविधान पीठ द्वारा एक दिन पहले सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली सरकार की शक्तियों (सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर) को बरकरार रखने के बावजूद केंद्र सरकार एक सचिव का ट्रांसफर करने के अपने फैसले को मंजूरी नहीं दे रही है।
सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार की ओर से पेश एडवोकेट शादान फरासत की सहायता से शुक्रवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष मामले को तत्काल सुनवाई के लिए रखा।
सिंघवी ने अनुरोध किया कि अपील की सुनवाई के लिए जल्द से जल्द एक खंडपीठ का गठन किया जाए, जिसे संविधान पीठ ने संदर्भ बिंदुओं का जवाब देने के बाद खंडपीठ को वापस भेज दिया।
सिंघवी ने कहा,
"वे (केंद्र) कह रहे हैं कि हम किसी का तबादला नहीं करेंगे। एक दिन पहले दिए गए फैसले के मद्देनजर मैं अवमानना याचिका दायर कर सकता हूं। लेकिन इसमें समय लगेगा। इसलिए कृपया मामले को सूचीबद्ध करें।"
सीजेआई अनुरोध पर विचार करने के लिए सहमत हुए।
इस मामले का मूल कारण 21 मई, 2015 को गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा जारी अधिसूचना है, जिसमें कहा गया कि एलजी के पास दिल्ली में "सेवाओं" का अधिकार होगा। संविधान पीठ के फैसले में अदालत ने विशेष रूप से 2015 की MHA अधिसूचना को रद्द नहीं किया।
संविधान पीठ ने कानून घोषित करने के बाद मामले को डिवीजन बेंच के समक्ष पोस्ट कर दिया। दिल्ली सरकार के अनुसार, केंद्र यह कहते हुए सेवा सचिव के तबादले को मंजूरी नहीं दे रहा है कि 2015 की अधिसूचना को अभी तक रद्द नहीं किया गया। इसलिए डॉ सिंघवी द्वारा डिवीजन बेंच के जल्द गठन की मांग की गई।
संविधान पीठ ने कानून निर्धारित करते हुए अपने फैसले में कहा-
"हमने 6 मई 2022 के आदेश द्वारा इस संविधान पीठ को संदर्भित मुद्दे का उत्तर दिया है। रजिस्ट्री प्रशासनिक पक्ष में सीजेआई के निर्देश प्राप्त करने के बाद निस्तारण के लिए नियमित पीठ के समक्ष इस अपील के कागजात रखेगी।"