दिल्ली कोर्ट ने निजता का अधिकार माना, पत्नी के अफेयर के आरोप में होटल की सीसीटीवी फुटेज मांगने वाली याचिका खारिज

Update: 2025-05-23 06:29 GMT

दिल्ली कोर्ट ने भारतीय सेना के मेजर द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उसने अपनी पत्नी और एक अन्य मेजर के कथित अफेयर को लेकर होटल की सीसीटीवी फुटेज मांगी थी।

पटियाला हाउस कोर्ट के सिविल जज वैभव प्रताप सिंह ने पत्नी और उसके कथित प्रेमी के निजता का अधिकार बरकरार रखते हुए कहा,

“होटल में अकेले रहने का और निजता का अधिकार वहां उपस्थित किसी तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध आम क्षेत्रों में भी लागू होता है विशेष रूप से जब वह व्यक्ति वहां मौजूद ही नहीं था। उसके पास अतिथि का डेटा प्राप्त करने का कोई वैध कानूनी अधिकार नहीं है। यही बात बुकिंग डिटेल्स पर भी लागू होती है।”

जज ने यह भी कहा कि किसी अन्य पुरुष द्वारा पत्नी का प्रेम चुराने का विचार मानो महिला को अपने प्रेम का निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं हो यह पुराना और अस्वीकार्य है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ के मामले में खारिज कर दिया।

“यह पुराना विचार कि कोई पुरुष किसी अन्य की पत्नी को छीन सकता है। महिला की कोई भूमिका न मानते हुए महिलाओं के अधिकार को नकारता है। उन्हें मानवीय दृष्टिकोण से कमतर करता है।”

अदालत ने ग्रैहम ग्रीन के उपन्यास The End of the Affair का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय संसद ने भी इस सोच को खारिज किया, जब उसने उपनिवेशकालीन कानून को हटाते हुए भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) में व्यभिचार (Adultery) को अपराध के रूप में शामिल नहीं किया। इससे यह स्पष्ट है कि आधुनिक भारत में लिंग-हीन भावना और पितृसत्तात्मक सोच के लिए कोई जगह नहीं है।

अदालत ने उस पति की याचिका खारिज की, जिसमें उसने होटल के खिलाफ आदेश देने की मांग की थी कि उसे बुकिंग डिटेल्स और आम क्षेत्रों की सीसीटीवी फुटेज सौंपी जाए।

पति का दावा था कि उसकी पत्नी, जिससे उसका वैवाहिक विवाद और तलाक का मामला चल रहा है, अपने प्रेमी के साथ होटल गई।

जज ने कहा कि होटल का कर्तव्य होता है कि वह अपने मेहमानों की निजता बनाए रखे, जिसमें बुकिंग डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज भी शामिल हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी और उसके कथित प्रेमी इस मामले में मुख्य पक्ष हैं। पर उन्हें इस मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया गया, जिससे उनके पक्ष को सुने बिना कोई भी जानकारी साझा करना संविधानिक रूप से गलत होगा।

“यह गंभीर रूप से सवाल उठाता है कि क्या इन व्यक्तियों को पक्षकार बनाए बिना होटल को यह जानकारी साझा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है?”

इसके अलावा जज ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालय निजी विवादों की जांच एजेंसी नहीं है और न ही इसका उद्देश्य निजी कार्यवाहियों में साक्ष्य एकत्र करने का साधन बनना है, खासकर तब जब उस साक्ष्य की कोई स्पष्ट कानूनी पात्रता नहीं हो।

कोर्ट ने कहा कि आर्मी एक्ट 1950 और लागू नियमों में शिकायतों को दर्ज करने और साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया निर्धारित है। पति को वही उपाय अपनाने चाहिए। कोर्ट इन आंतरिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने या उनकी जगह नहीं ले सकता।

केस टाइटल: [पति बनाम होटल प्रबंधन] — नाम गोपनीय रखा गया

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