समय से पहले रिहाई को कैदी के पात्र होने से तीन महीने के भीतर निपटा जाए, समय- पूर्व रिहाई में मनमानी ना हो : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा

Update: 2023-02-07 08:46 GMT

उत्तर प्रदेश राज्य में दोषियों को समय से पहले सजा में छूट से संबंधित एक मामले में ये नोट करते हुए कि एक जैसे मामलों में मनमाने मानदंड अपनाने से संसाधनों की कमी वाले लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होगी, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने इसे रोकने के लिए प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिए कई निर्देश जारी किए।

न्यायालय द्वारा जारी एक महत्वपूर्ण निर्देश यह है कि समय से पहले रिहाई के मामलों को कैदी के पात्र होने की तारीख से तीन महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए। इससे पहले, अदालत ने निर्देश दिया था कि अधिकारियों को छूट पर विचार करने के लिए कैदी से औपचारिक आवेदन के लिए जोर देना चाहिए।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य के महानिदेशक (कारागार) को रशीदुल जाफर बनाम यूपी राज्य मामले में दिए गए फैसले के अनुसरण में उठाए गए कदमों को दर्शाने वाला एक व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था, जिसमें इस संबंध में कैदियों की सजा में छूट के कई निर्देश जारी किए गए थे।

अदालत ने पाया कि 31 दिसंबर 2022 तक यूपी राज्य में 1,15,163 कैदी हैं, जिनमें से 18,429 विचाराधीन कैदी हैं। इसके अलावा, 26,734 दोषी हैं, जिनमें से 16,262 आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इसके अतिरिक्त, 2,228 सजायाफ्ता कैदियों ने वास्तविक कारावास के 14 साल पूरे कर लिए हैं और समय से पहले रिहाई के लिए विचार किए जाने के पात्र हैं।

पुलिस महानिदेशक द्वारा दायर हलफनामे में संकेत दिया गया है कि पिछले 5 वर्षों में, समय से पहले रिहाई की विभिन्न व्यवस्थाओं के तहत उत्तर प्रदेश राज्य में 3,729 कैदियों को रिहा किया गया है।

अदालत ने यह देखते हुए कि यूपी राज्य समान रूप से रखे गए दोषियों के लिए अलग-अलग नीतियां लागू कर रहा है , अपने आदेश में कहा-

"उत्तर प्रदेश राज्य, समय से पहले रिहाई के मामलों को तय करने के लिए एक क़ानून, नियम और एक स्थायी नीति तैयार करने के बाद, कानून के अपने स्वयं के निर्माण से बंधा हुआ है। एक बार जब कानूनी प्रावधान हो जाते हैं, तो यह राज्य के लिए खुला नहीं होता है कि समयपूर्व रिहाई के मामलों को लेने के लिए एक मनमाना मानदंड अपनाया जाए और उसे अपनी नीतियों के अनुरूप होना चाहिए, यह ध्यान में रखते हुए कि कानून का एक मौलिक सिद्धांत है कि छूट उस नीति के अनुसार है जो सजा के दौरान मौजूद थी और बाद में उदारीकरण को संशोधित रूप में लागू किया जाना है ।"

बेंच ने आदेश में जोड़ा-

"राज्य द्वारा अपनाया गया एक मनमाना तरीका एक ऐसी स्थिति को जन्म देने के लिए उत्तरदायी है जहां संसाधनों की कमी वाले व्यक्ति, या उस मामले के लिए पर्याप्त शिक्षा और जागरूकता में कमी वाले सबसे अधिक पीड़ित होंगे। बार-बार के उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए जो अदालत के सामने आ रहे हैं, संविधान के अनुच्छेद 32 का आह्वान करते हुए, हम उत्तर प्रदेश राज्य में शासी वैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में और प्रक्रिया की प्रभावी निगरानी के लिए समय से पहले रिहाई पर विचार करने के लिए प्रक्रिया को संस्थागत बनाने का इरादा रखते हैं।"

तदनुसार, निम्नलिखित निर्देश जारी किए गए थे-

1. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के अध्यक्ष को जिला और राज्य कारागारों से उन दोषियों की जानकारी एकत्र करनी चाहिए जो समय से पहले रिहाई के लिए लागू नियमों/नीतियों के अनुसार पात्र हो गए हैं।

2. प्रत्येक जेल अधीक्षक को ऐसी सूचना डीएलएसए के सचिव को उपलब्ध करानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समय पूर्व रिहाई की प्रक्रिया प्रभावी एवं पारदर्शी तरीके से लागू की जा सके।

3. डीएलएसए सचिवों को 1 मई, 1 अगस्त और 1 अक्टूबर को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए.) को जानकारी एकत्र करनी है और जमा करनी है। डीएलएसए द्वारा दायर रिपोर्ट का आकलन करने के लिए राज्य निकाय के अध्यक्ष को एक बैठक बुलानी चाहिए। बैठक में गृह विभाग के सचिव और महानिदेशक (डीजी), कारागार भी शामिल होने चाहिए।

4. राज्य सरकार दोषियों की समयपूर्व रिहाई को नियंत्रित करने वाली नीति में निहित प्रावधानों का कड़ाई से पालन करेगी।

5. कैदियों की समय से पहले रिहाई पर विचार करने के सभी मामलों का निपटारा कैदी के समय से पहले रिहाई के लिए पात्र होने के तीन महीने के भीतर किया जाएगा।

केस : राजकुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | विविध आवेदन संख्या 2169/2022 डब्लूपी (सीआरएल) नंबर 36/2022

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