मौजूदा स्थिति लोन मोराटोरियम को 31 मार्च 2021 तक बढ़ाये जाने की मांग करती है: तारीख बढ़ाये जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
लोन मोराटोरियम की अवधि 31 मार्च 2021 तक बढ़ाये जाने के दिशानिर्देश दिये जाने की मांग को लेकर एक संशोधन अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी है।
सुप्रीम कोर्ट लोन मोराटोरियम की अवधि बढ़ाये जाने और चक्रवृद्धि ब्याज माफ किये जाने को लेकर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है।
इन याचिकाकर्ताओं में से शामिल वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचिका की मूल मांग में संशोधन का अनुरोध किया है। उन्होंने पहले मोराटोरियम की अवधि 31 दिसम्बर तक बढ़ाये जाने की मांग की थी, लेकिन अब उन्होंने यह कहते हुए इसे 31 मार्च 2021 तक बढ़ाने का अनुरोध किया है कि मौजूदा स्थिति और जरूरतें इसकी अवधि बढ़ाये जाने की मांग कर रही हैं।
इसके साथ ही याचिका में यह भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गये हैँ कि कर्ज देने वाले संस्थान लोन किस्त वसूली के लिए कर्जदारों के साथ गैर-कानूनी, हिंसक, धमकाने वाले या उत्पीड़ित करने वाले तरीके न अपनायें। कोर्ट से यह भी निर्देश देने की मांग की गयी है कि यदि ऋणदाता संस्थान इस तरह के तरीके अपनाते हैँ तो उनके खिलाफ कानून के दायरे में कड़ी कार्रवाई की जाए।
इस परिप्रेक्ष्य में यह दलील दी गयी है कि 31 दिसम्बर 2020 नजदीक ही है और महामारी की मौजूदा स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।
याचिका में कहा गया है कि लोगों के जहां काम धंधे बंद हैं वहीं विभिन्न क्षेत्रों में कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इतना ही नहीं वकील जैसे प्रोफेशनल वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं क्योंकि कोर्ट नियमित रूप से काम नहीं कर रहे हैं।
याचिका में आगे कहा गया है कि पर्यटन और परिवहन उद्योग जैसे अन्य सेक्टर भी कारोबार में गिरावट का सामना कर रहे हैं क्योंकि प्रतिबंधों के कारण लोग यात्रा करने और अन्य पर्यटन स्थलों तक जाने से कतरा रहे हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है,
"इन सेक्टरों को वित्तीय संकट से उबरने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। मौजूदा स्थितियों में ये लोग बैंकों/एनबीएफसी से लिये गये कर्ज के एवज में अपनी मासिक किस्तें नहीं दे पा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लागू की गयी रिस्ट्रक्चरिंग स्कीम से कर्जदारों को कोई राहत नहीं है, क्योंकि इस बारे में सम्पूर्ण अधिकार बैंकों को दिये गये हैं ।"
गत 19 नवम्बर को केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी की खंडपीठ से अपील की थी कि न्यायालय इस मामले में और हस्तक्षेप न करे और संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कर्जदारों को और आगे कोई राहत का निर्देश न दे, क्योंकि सरकार ने पहले से ही बहुत अधिक राहत दी हुई है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को कहा था कि अनेक राहत पैकेजों और योजनाओं पर तकनीकी विशेषज्ञों के साथ विचार किया गया था और वित्तीय नीतिगत मामलों में कोर्ट के हस्तक्षेप की अपेक्षा नहीं की जा रही है।
बेंच ने चक्रवृद्धि ब्याज माफी मामले में याचिकाओं का निपटारा कर दिया था जहां याचिकाकर्ता चक्रवृद्धि ब्याज माफी के निर्णय से संतुष्ट थे। बेंच इस संशोधन याचिका की सुनवाई आज कर सकती है।