COVID- 19: निजी प्रयोगशालाओं में टेस्ट के 4500 रुपये तय करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें नागरिकों के सरकारी और निजी सभी प्रयोगशालाओं में COVID- 19 टेस्ट की नि: शुल्क सुविधा प्रदान करने के लिए भारत सरकार को दिशा-निर्देश मांगे गए हैं।
यह याचिका वकील शशांक देव सुधी ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर की है और उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा जारी किए गए 17 मार्च की एडवाइजरी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के लिए मनमानी और असंवैधानिक उल्लंघन के रूप में घोषित करने की मांग की है जिसमें COVID-19 के असाधारण स्वास्थ्य संकट में परीक्षण सुविधाओं की पहुंच में भेदभाव किया गया।
याचिका में सभी उत्तरदाताओं जिसमें भारत संघ, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और अन्य शामिल हैं, को निर्देश देने की मांग की गई है कि वो जल्द से जल्द कोरोना के परीक्षण सुविधाओं को तेज करेंं।
याचिका में आगे कहा गया है कि COVID-19 से संबंधित सभी परीक्षण नेशनल एक्रिडेशन बोर्ड फोर टेस्टिंग एंड कॉलिब्रेशन लेबोरिटीज़ (NABL) मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं के तहत हा आयोजित किए जाने चाहिए, क्योंकि गैर-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं है।
याचिका में आगे कहा गया है कि उत्तरदाताओं को अपने डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ सहित सभी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों को समायोजित करने के लिए कहा जाए ताकि वे प्रभावी रूप से महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो सकें।
याचिका में कहा गया है कि
"हमारे देश की सरकार पूरी तरह से दुविधा में है और 4500 / - रुपये की दर से निजी अस्पताल / प्रयोगशालाओं में COVID -19 के परीक्षण की सुविधा के संबंध में मनमाने ढंग से कैपिंग का एक तर्कहीन निर्णय लेने के लिए मजबूर है। प्रतिवादी का यह निर्णय अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।"
याचिका में कहा गया है कि यह महामारी खतरनाक विपत्ति के साथ देश के नागरिक के जीवन को असाधारण रूप से खतरे में डाल रही है और इसने लोगों के स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को उजागर कर दिया है।
देश की सरकार पूरी तरह से दुविधा में फंस गई है और मनमाने ढंग से इस तरह का एक तर्कहीन निर्णय लेने के लिए मजबूर है और निजी अस्पताल / प्रयोगशालाओं में COVID-19 के परीक्षण की सुविधा का सम्मान किया जा रहा है, याचिका में कहा गया है।
याचिका में ये भी कहा गया है कि प्रतिवादी द्वारा लिया गया निर्णय अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पूरे देश को बंद कर दिया गया है और सरकारी अस्पताल क्षमता से अधिक भरे हुए हैं।