COVID-19 : 50 साल से अधिक उम्र के कैदियों को इमरजेंसी पैरोल देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2020-03-31 03:03 GMT

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें जेल से ऐसे कैदियों को रिहा करने के निर्देश देने की मांग की गई है, जिनकी उम्र 50 साल से अधिक है और साथ ही ऐसे लोग जो किसी बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें मेडिकल शर्तों पर कोरोना वायरस के संकट को देखते हुए आपातकालीन पैरोल या अंतरिम जमानत पर छोड़ने के निर्देश देने की मांग की गई है।

शीर्ष अदालत द्वारा 23 मार्च को दिए गए एक आदेश का हवाला देते हुए, जिसमें कई दिशा-निर्देश दिए गए थे कि जेलों में भीड़ भाड़ कम करने के प्रयास में कुछ श्रेणियों के कैदियों को ज़मानत देनी चाहिए।

23 मार्च को मुख्य न्यायाधीश एस. ए .बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे 'उच्च स्तरीय समिति गठित करें, जो कैदियों की उस श्रेणी का निर्धारण कर सके, जिनको चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सके। यह भी कहा गया था कि जेलों में भीड़ कम करने के लिए उन कैदियों को पैरोल दी जा सकती है, जिनको सात साल तक की सजा हो चुकी है या जिन पर ऐसे आरोपों के तहत केस चल रहा है, जिनमें सात साल तक की सजा का प्रावधान है।

याचिकाकर्ता का मानना ​​है कि इस श्रेणी की भेद्यता को अदालत के नोटिस में नहीं लाया गया था। याचिकाकर्ता, अधिवक्ता अमित साहनी ने अपनी बात रखने के लिए 20 मार्च को भारत सरकार द्वारा जारी एक ज्ञापन के साथ इस आदेश को युग्मित किया है। उस आदेश के अनुसार, सरकार ने उन अधिकारियों को कमिटेड छुट्टी देने का निर्देश दिया था जो 50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और मधुमेह, श्वसन संबंधी समस्याओं, गुर्दे की बीमारियों और अन्य जानलेवा बीमारियों से पीड़ित हैं।

साहनी ने कहा कि जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने के पीछे का उद्देश्य था, "देशभर की जेलों में COVID-19 के प्रसार को रोकना और ... COVID 19 के कारण जेल में मौत से बचना था।"

हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्यों की सरकारों ने इस श्रेणी की भेद्यता का मुद्दा न्यायालय के समक्ष नहीं उठाया और परिणामस्वरूप, अदालत संबंधित सरकारों को इस पर विचार करने के लिए कहने के लिए कोई आदेश पारित नहीं कर सकी। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि चूंकि अदालत ने इस मामले को उठाया और इन लोगों के संबंध में कोई निर्देश पारित नहीं किया, इसलिए सरकार उनकी रिहाई पर विचार नहीं करेगी।

यह प्रार्थना की गई है कि न्यायालय न केवल सरकार को ऐसे मामलों पर विचार करने का निर्देश दे, बल्कि उन्हें न्याय, इक्विटी और अच्छे विवेक के हित में तत्काल आधार पर उठाए। 

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